5.72 करोड़ रुपये के 'तैरते सोने' के साथ गिरफ्तार किसान, तस्करी नेटवर्क में शामिल होने का संदेह

5.72 करोड़ रुपये के 'तैरते सोने' के साथ गिरफ्तार किसान, तस्करी नेटवर्क में शामिल होने का संदेह

सूरत सिटी पुलिस के स्पेशल ऑपरेशंस ग्रुप (SOG) के DCP राजदीप सिंह नाकुम ने कहा कि वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 के तहत भारत में इस तरह का व्यापार प्रतिबंधित है. फिलहाल, विपुल बंभनिया को आगे की जांच के लिए गुजरात वन विभाग को सौंप दिया गया है. वन विभाग उसे हिरासत में लेकर पूरे तस्करी नेटवर्क का पता लगाने की कोशिश करेगा.

Ambregris recovered from a farmer's house in SuratAmbregris recovered from a farmer's house in Surat
क‍िसान तक
  • Surat,
  • Sep 21, 2025,
  • Updated Sep 21, 2025, 12:07 PM IST

सूरत शहर पुलिस के स्पेशल ऑपरेशंस ग्रुप (SOG) ने एम्बरग्रीस की तस्करी के एक बड़े रैकेट का पर्दाफाश किया है और भावनगर के एक किसान को गिरफ्तार किया है. किसान के पास से 5.72 किलोग्राम एम्बरग्रीस बरामद हुआ, जिसकी अंतरराष्ट्रीय बाजार में कीमत लगभग 5.72 करोड़ रुपये है. यह पदार्थ, जो व्हेल की आंतों में पाया जाता है, हिंदी में 'तैरता हुआ सोना' भी कहलाता है. सूरत पुलिस को शक है कि आरोपी विपुल भंभनिया, जिसे भावनगर के हाथब गांव के समुद्र तट से यह कीमती पदार्थ बरामद होने के बाद गिरफ्तार किया गया, वह राज्यों के बीच तस्करी करने वाले नेटवर्क का सदस्य है. चूंकि भारत में वन्यजीव संरक्षण अधिनियम के तहत इस पदार्थ का व्यापार प्रतिबंधित है, इसलिए जांच अब गुजरात वन विभाग को सौंप दी गई है.

करोड़ों रुपये की कीमत वाला एम्बरग्रीस

पूरे राज्य का ध्यान अभी विपुल भूपतभाई बांभनिया पर है, जिसे सूरत सिटी पुलिस के स्पेशल ऑपरेशन ग्रुप (SOG) ने एम्बरग्रीस तस्करी मामले में गिरफ्तार किया है. SOG ने उसे सूरत के वराछा इलाके के हीराबाग सर्कल से पकड़ा. भावनगर का यह साधारण किसान, करोड़ों रुपये की कीमत वाला एम्बरग्रीस (सेपर्म व्हेल का कीमती पदार्थ) रखने के कारण चर्चा में है, जिससे कई सवाल खड़े हो गए हैं. विपुल बांभनिया कौन है और उसे यह कीमती पदार्थ कहां से मिला? शुरुआती पूछताछ में विपुल ने पुलिस को बताया कि उसका काम मजदूरी और खेती है, लेकिन उसके पास पाया गया एम्बरग्रीस यह बताता है कि वह कोई साधारण किसान नहीं है. पुलिस ने उसके मोबाइल फोन की जांच की तो पता चला कि वह ऐसे दुर्लभ और प्रतिबंधित सामान खरीदने वालों के संपर्क में था. यह भी पता चला कि विपुल को ऐसे दुर्लभ और कीमती पदार्थों के बारे में अच्छी जानकारी है.

समुद्र तट पर मिला था एम्बरग्रीस का टुकड़ा

इस जानकारी के आधार पर, वे इस कीमती पदार्थ की पहचान कर पाए. विपुल ने पुलिस को बताया कि उसे यह एम्बरग्रीस का टुकड़ा लगभग चार महीने पहले भावनगर के हाथब गांव के समुद्र तट पर मिला था. उसे पता था कि यह बहुत कीमती है. उसने इसे भावनगर में बेचने की कोशिश की, लेकिन नाकाम रहा, इसलिए वह इसे सूरत में बेचने के लिए वहां आया. लेकिन, सूरत सिटी पुलिस के स्पेशल ऑपरेशंस ग्रुप (SOG) ने खरीदार मिलने से पहले ही उसे गिरफ्तार कर लिया. पुलिस ने विपुल के पास से 5.720 किलोग्राम एम्बरग्रीस बरामद किया, जिसकी अंतरराष्ट्रीय बाजार में कीमत लगभग 5.72 करोड़ रुपये बताई जा रही है. यह मोमी पदार्थ, जो व्हेल की पाचन-तंत्र से निकलता है, परफ्यूम इंडस्ट्री में इस्तेमाल होता है और इसे "तरता हुआ सोना" भी कहा जाता है.

गुजरात वन विभाग को सौंपा गया आगे का जिम्मा

सूरत सिटी पुलिस के स्पेशल ऑपरेशंस ग्रुप (SOG) के DCP राजदीप सिंह नाकुम ने कहा कि वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 के तहत भारत में इस तरह का व्यापार प्रतिबंधित है. फिलहाल, विपुल बंभनिया को आगे की जांच के लिए गुजरात वन विभाग को सौंप दिया गया है. वन विभाग उसे हिरासत में लेकर पूरे तस्करी नेटवर्क का पता लगाने की कोशिश करेगा. पुलिस को शक है कि विपुल अंतरराज्यीय तस्करी गिरोह का सदस्य हो सकता है और उसके फोन में मिले कॉन्टैक्ट से इस अवैध गतिविधि में शामिल अन्य लोगों को भी गिरफ्तार किया जा सकता है. यह घटना इस बात का उदाहरण है कि जो लोग साधारण किसान दिखते हैं, वे भी आपराधिक गतिविधियों में शामिल हो सकते हैं.

क्या है एम्बरग्रीस? 

एम्बरग्रीस एक प्राकृतिक, मोमी पदार्थ है जो शुक्राणु व्हेल के पाचन तंत्र से निकलता है. यह कभी-कभी समुद्र तट पर आ जाता है या समुद्र में तैरता हुआ पाया जाता है. शुरू में इसकी गंध बहुत तेज़ और अप्रिय होती है, लेकिन समय के साथ इसमें एक मीठी और आकर्षक खुशबू आ जाती है. इसीलिए इसका इस्तेमाल परफ्यूम इंडस्ट्री में किया जाता है, क्योंकि यह खुशबू को और बेहतर और लंबे समय तक बनाए रखने में मदद करता है. अंतर्राष्ट्रीय बाजार में इसकी भारी मांग और बहुत अधिक कीमत के कारण इसे अक्सर "तैरता हुआ सोना" कहा जाता है. भारत सहित कई देशों में, 1972 के वन्यजीव संरक्षण अधिनियम के तहत इस पदार्थ का व्यापार अवैध है. (संजय सिंह राठौड़ का इनपुट)

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