उत्तर भारत में सर्दियों से पहले बढ़ते वायु प्रदूषण के लिए पंजाब को वर्षों से जिम्मेदार ठहराया जाता रहा है. लेकिन इस बार एक नया ट्रेंड उभर कर सामने आया है. पश्चिमी उत्तर प्रदेश, खासकर मथुरा और अलीगढ़, पराली जलाने के मामलों में तेजी से आगे बढ़ रहे हैं, जबकि पंजाब ने पिछले छह वर्षों की सबसे स्वच्छ शुरुआती कटाई अवधि दर्ज की है.
आईसीएआर-आईएआरआई (ICAR–IARI) के CREAMS बुलेटिन (5 अक्टूबर, 2025) के अनुसार, 15 सितंबर से 5 अक्टूबर के बीच पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, राजस्थान और मध्य प्रदेश में कुल 210 पराली जलाने की घटनाएं दर्ज की गईं.
बुलेटिन में मथुरा और अलीगढ़ को यूपी के टॉप बर्निंग जिले बताया गया है. 5 अक्टूबर को अकेले यूपी में 32 घटनाएं दर्ज हुईं — यह पिछले 6 वर्षों की दूसरी सबसे बड़ी दैनिक संख्या है.
उदाहरण के लिए ये आंकड़े देखिए. पंजाब में इसी अवधि के दौरान 2020 में 1,764, 2023 में 754 और 2024 में 193 पराली जलाने की घटनाएं दर्ज की गईं. इस वर्ष यह गिरावट पांच वर्षों के औसत से 87 प्रतिशत कम है. अधिकारी इसका श्रेय वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग को देते हैं, जिसने जून में पंजाब और हरियाणा के गैर-एनसीआर जिलों में ईंट भट्टों में धान की पराली से बने बायोमास पेलेट के उपयोग को अनिवार्य करने का निर्देश जारी किया था.
हरियाणा में भी भारी गिरावट देखी गई, इस सीजन में अब तक केवल सात मामले सामने आए हैं, जबकि पिछले साल 127 और 2023 में 190 मामले सामने आए थे. इन दोनों राज्यों ने मिलकर इस क्षेत्र की कुल संख्या में कमी ला दी है, लेकिन उत्तर प्रदेश में आई तेजी ने इस सफलता की भरपाई कर दी है. राज्य में 88 मामले 2024 (23) की तुलना में लगभग चार गुना ज्यादा हैं और 2020 में छह साल के उच्चतम स्तर 89 के बराबर हैं.
विशेषज्ञों का मानना है कि यह बदलाव केंद्रीय वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (CAQM) के सख्त निर्देशों और कार्रवाई का परिणाम है.
जून 2025 में CAQM ने ईंट भट्टों में पराली से बने बायोमास पैलेट्स का अनिवार्य उपयोग तय किया.
सितंबर 25-26 की समीक्षा बैठकों में उड़न दस्तों की तैनाती, अवशेष प्रबंधन और प्रवर्तन को मजबूत करने की सिफारिश की गई थी. इन प्रयासों के चलते, पंजाब और हरियाणा दोनों में पराली जलाने की घटनाएं घट गईं.
हालांकि पंजाब और हरियाणा के प्रदर्शन से क्षेत्रीय आंकड़े सुधरे हैं, पर यूपी की तेजी से बढ़ती घटनाओं ने चिंता बढ़ा दी है. 2020 में यूपी ने 89 घटनाएं दर्ज की थीं — इस बार 88 घटनाएं, लगभग बराबर. 28 सितंबर से लेकर 5 अक्टूबर तक यूपी में प्रतिदिन पराली जलाने की घटनाएं तेजी से बढ़ीं.
जहां एक ओर पंजाब ने अनुशासन और नीतिगत बदलावों के चलते वायु प्रदूषण पर नियंत्रण की दिशा में उम्मीद जगाई है, वहीं उत्तर प्रदेश, खासकर पश्चिमी हिस्से, नए प्रदूषण हॉटस्पॉट के रूप में उभर रहे हैं. सरकारों और स्थानीय प्रशासन को यूपी में भी सख्त निगरानी और लगातार प्रयास सुनिश्चित करने होंगे, वरना आगामी धुंध के मौसम में उत्तर भारत की हवा फिर जहरीली हो सकती है.(पीयूष अग्रवाल की रिपोर्ट)