देश के अधिकांश किसान संगठन स्वामीनाथन आयोग की तर्ज पर फसलों का दाम तय करने और न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) की गारंटी देने की मांग को लेकर सरकार के खिलाफ मोर्चा खोले हुए हैं. संयुक्त किसान मोर्चा-अराजनैतिक का 190 दिन से एमएसपी की लीगल गारंटी और दाम तय करने के मुद्दे पर ही शंभू और खनौरी बॉर्डर पर आंदोलन जारी है. संसद में भीइस मुद्दे को लेकर हंगामा हो चुका है. इस बीच केंद्र सरकार ने दावा किया है कि उसने स्वामीनाथन कमीशन की सभी 201 सिफारिशों को लागू कर दिया है. यह दावा भी लोकसभा में किया गया है. लेकिन क्या सरकार सच बोल रही है या फिर यह एक अर्धसत्य है. आखिर कौन सच बोल रहा है और कौन झूठ... आज इसकी पूरी पड़ताल करेंगे. जिसमें समझेंगे कि स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों को लेकर सरकार ने क्या कहा है और C2+50% का फार्मूला क्या है. अगर यह लागू होता है तो किसानों को कितना लाभ मिलेगा.
दरअसल, समाजवादी पार्टी के सांसद धर्मेन्द्र यादव ने लोकसभा में एक लिखित सवाल पूछा था कि क्या उत्पादन लागत पर 50 प्रतिशत लाभ देकर कृषि उत्पादों के लिए एमएसपी निर्धारित करने संबंधी एमएस स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों का अक्षरश: पालन किया जा रहा है? इस पर कृषि राज्यमंत्री रामनाथ ठाकुर ने 30 जुलाई को जवाब दिया है. यह जवाब उन सभी लोगों को हैरान कर रहा है जो लोग इस आयोग की रिपोर्ट को लागू करवाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं. वो लोग कह रहे हैं कि अगर कमीशन की रिपोर्ट लागू हो गई होती तो वो भला आंदोलन क्यों करते?
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कृषि राज्य मंत्री ठाकुर ने कहा है कि प्रो. एमएस स्वामीनाथन की अध्यक्षता में गठित राष्ट्रीय किसान आयोग (NCF) ने अन्य बातों के साथ-साथ यह सिफारिश की थी कि एमएसपी औसत उत्पादन लागत पर कम से कम 50 प्रतिशत से अधिक होना चाहिए. इस सिफारिश को प्रभाव में लाने के लिए, सरकार ने 2018-19 के अपने केंद्रीय बजट में एमएसपी को उत्पादन लागत के डेढ़ गुना के स्तर पर बनाए रखने की घोषणा की थी. इसके बाद एमएसपी में नोटिफाइड सभी रबी, खरीफ और अन्य फसलों की एमएसपी को, उत्पादन लागत पर कम से कम 50 प्रतिशत मुनाफे के साथ निर्धारित किया जाने लगा है.
जवाब में आगे कहा गया है कि स्वामीनाथन आयोग द्वारा प्रस्तुत 'नेशनल पॉलिसी फॉर फार्मर' के मसौदे के आधार पर सरकार ने '2007 में किसानों के लिए राष्ट्रीय नीति' (NPF-2007) को मंजूरी दी, जिसका मकसद खेती की आर्थिक व्यवहार्यता में सुधार करना और किसानों की आय में वृद्धि करना था. इन सिफारिशों के संबंध में वर्ष 2007 में एक अंतर-मंत्रालयी समिति का गठन किया गया, जिसने 201 कार्य बिंदुओं की सिफारिश की थी. इन सभी 201 कार्य बिंदुओं को कार्यान्वित किया जा चुका है.
वाजपेयी सरकार में कृषि मंत्री रहे सोमपाल शास्त्री का कहना है कि एमएसपी को लेकर केंद्र सरकार साफ-साफ झूठ बोल रही है. स्वामीनाथन कमीशन की रिपोर्ट में 201 सिफारिशें की गई थीं. जिनमें सबसे अहम C-2+50 फार्मूले के आधार पर फसलों का दाम तय करना है. सी-2 का मतलब कॉम्प्रिहेंसिव कॉस्ट है. जबकि सरकार ए2+एफएल यानी इनपुट कॉस्ट और पारिवारिक श्रम के साथ आने वाली लागत पर 50 प्रतिशत का लाभ जोड़कर पैसा दे रही है, जिससे किसानों से किया गया गया वादा पूरा नहीं होता. बीजेपी ने सत्ता में आने पर स्वामीनाथन कमीशन की रिपोर्ट लागू करने का वादा किया था. ए2+एफएल फार्मूले पर एमएसपी देने से यह वादा पूरा नहीं होता है?
शास्त्री का कहना है कि स्वामीनाथन कमीशन की रिपोर्ट लागू करवाने को लेकर जब सर्वोच्च न्यायालय में एक जनहित याचिका दायर की गई थी तब उसके उत्तर में वर्तमान सरकार ने खुद ही यह कह दिया था कि केंद्र के पास जितने वित्तीय संसाधन उपलब्ध हैं, उसमें सी-2 वाली बात व्यवहारिक नहीं है. इसे किया नहीं जा सकता.
अगर C-2+50 फार्मूले के आधार पर एमएसपी लागू होता तो आज धान का सरकारी भाव 2300 की बजाय 3012 रुपये प्रति क्विंटल होता. इसी तरह मीडियम स्टेपल कपास का एमएसपी 7121 रुपये की जगह 9345 रुपये होता. गेहूं का एमएसपी 2275 की बजाय 2478 और चने का एमएसपी 5440 रुपये की बजाय 6820.5 रुपये प्रति क्विंटल होता. A2+FL और C-2+50 फार्मूले में इतना अंतर है. अगर स्वामीनाथन कमीशन की सिफारिश पर आधारित C-2+50 वाले फार्मूले के आधार पर फसलों की लागत तय हो तो किसानों की आय बढ़ जाएगी. यह रिपोर्ट पूरी तरह से लागू नहीं है इसलिए किसानों को भारी आर्थिक नुकसान हो रहा है.
सरकार राज्य सरकारों और संबंधित केंद्रीय मंत्रालयों के विचारों को जानने के बाद कृषि लागत एवं मूल्य आयोग (सीएसीपी) की सिफारिशों पर विभिन्न कृषि फसलों की एमएसपी तय की जाती है. एमएसपी की सिफारिश करते समय, सीएसीपी उत्पादन की लागत और मांग-आपूर्ति की स्थिति, घरेलू और अंतरराष्ट्रीय कीमतों में रुझान, कृषि और गैर-कृषि क्षेत्रों के बीच व्यापार की शर्तें, उपभोक्ताओं और अर्थव्यवस्था पर एमएसपी के संभावित प्रभाव के साथ भूमि और पानी जैसे दुर्लभ प्राकृतिक संसाधनों के तर्कसंगत उपयोग जैसे कई कारकों पर विचार करता है.
किसानों के हालात सुधारने के लिए 18 नवंबर 2004 को केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय किसान आयोग (एनसीएफ) का गठन किया था, जो आगे चलकर स्वामीनाथन आयोग के नाम से लोकप्रिय हो गया. आयोग ने दो साल में सरकार को पांच रिपोर्ट सौंपी. जिसमें 201 सिफारिशें थीं. लेकिन सबसे चर्चित सिफारिश न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) से संबंधित थी. जिसमें किसानों को 'सी2+50% फॉर्मूले' पर एमएसपी देने की बात कही गई थी. जिसमें संपूर्ण लागत आती है.
एनपीएफ के मसौदे के आधार पर सरकार ने राष्ट्रीय किसान नीति, 2007 (NPF-2007) को मंजूरी दी थी, जिसका उद्देश्य खेती की आर्थिक व्यवहार्यता में सुधार करना और किसानों की शुद्ध आय में वृद्धि करना था. लेकिन गौर करने वाली बात है कि इस सिफारिश को यूपीए सरकार ने राष्ट्रीय किसान नीति में शामिल नहीं किया था.
जब आयोग की रिपोर्ट आई तब कांग्रेस का शासन था. उसने 2006 से 2014 तक इसे नहीं लागू किया, जिसका वो खामियाजा उठा रही है. अब बीजेपी की अगुवाई वाली एनडीए सरकार सदन में दावा कर रही है कि स्वामीनाथन आयोग की सभी 201 सिफारिशों को लागू कर दिया गया है, लेकिन यह पूरा सच नहीं है. यह एक अर्धसत्य है.आयोग ने सी-2 यानी संपूर्ण लागत पर 50 फीसदी मुनाफा जोड़कर एमएसपी तय करने की सिफारिश की थी, लेकिन अभी तक सरकार ने इस फार्मूले को लागू नहीं किया है.
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