अक्सर हम लोग अमेरिका और इंग्लैंड की फिल्मों को एक ही मान लेते हैं क्योंकि, ज़ाहिर है, उनकी भाषा एक ही है –अंग्रेजी. लेकिन अमेरिका और इंग्लैंड की फिल्मों में न सिर्फ सांस्कृतिक और भाषा के लहजे का फ़र्क़ साफ नज़र आता है बल्कि इन दोनों देशों के फिल्म निर्माण की कला और सौंदर्यशास्त्र भी अलग-अलग है. हालांकि दुनिया का पहला सिनेमा 1888 में इंग्लैंड में ही बनाया गया लेकिन आगे चल कर अमेरिका की सुप्रसिद्ध हॉलीवुड इंडस्ट्री बाज़ी मार गयी और दुनिया की सबसे बड़ी और अमीर फिल्म इंडस्ट्री बनी और आज भी है. यूरोपीय सिनेमा हालांकि व्यावसायिक दृष्टि से उतना बड़ा कारोबार नहीं खड़ा कर पाया जितना कि हॉलीवुड, लेकिन यूरोपीय देशों का सिनेमा अक्सर ज़्यादा यथार्थ और ज़मीन से जुड़ा रहा. कहानी कहने की कला में इंग्लैंड और यूरोपीय फ़िल्मकारों ने अपनी एक खास पहचान बनाई है.
इंग्लैंड ने हमें बहुत से दिग्गज अभिनेता और निर्देशक दिए हैं, जिनमें चार्ली चैपलिन, अल्फ्रेड हिचकॉक, क्रिस्टोफर नोलन, रिडले स्कॉट कुछ जाने माने नाम हैं. हैरी पॉटर जैसे किरदार की रचना भी ब्रिटिश लेखिका जे के रौलिंग ने की जिसे बाद में एक यादगार फिल्म सिरीज़ की तरह तैयार किया गया और आज यह दुनिया भर में मशहूर है.
बहरहाल, आज हम बात करते हैं 2016 में रिलीज़ हुई ब्रिटिश फिल्म ‘द लेवेलिंग’ की. इस फिल्म की चर्चा इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि यह पिछले कुछ सालों में तेज़ी से बदलते हुई जलवायु और मौसम के बीच फंसे किसानों के हालात पर बात करती है . वैसे तो तकनीक और विज्ञान की मदद से यूरोप और अमेरिका के किसान भारत के किसानों से कहीं बेहतर स्थिति में हैं, फिर भी प्रकृति के आक्रोश के सामने मनुष्य के सारे प्रयास बेमानी से हो जाते हैं. फिर किसानी का काम तो प्रकृति के मिजाज पर बहुत निर्भर करता है. ‘द लेवेलिंग’ ऐसी ही एक आपदा से जूझते किसान की कहानी है.
दरअसल, वर्ष 2014 में दक्षिण पश्चिम इंग्लैंड के तटीय मैदान और वैटलैंड सोमेर्सेट लेवेल में ज़बरदस्त बाढ़ आई. सर्दियों में हुई ज़बरदस्त बारिश से आई इस बाढ़ से करीब 600 घर और 17,000 एकड़ खेत प्रभावित हुए थे. मवेशी पालने वाले किसान और पॉल्ट्री फ़ार्म्स को भी काफी नुकसान झेलना पड़ा. हालांकि इंग्लैंड का आपदा प्रबंधन बहुत प्रभावशाली है और पीड़ितों को तुरंत बचाने, सहायता देने का काम तत्काल किया गया और जलमग्न खेतों की ‘लेवेलिंग’ भी की गई. लेकिन प्रभावित किसानों की ज़िंदगियां हमेशा के लिए बदल गई.
इसी स्थिति को पृष्ठभूमि में रख कर बनाई गई फिल्म है ‘द लेवेलिंग’. यहां ये भी बताते चलें कि ‘लेवेलिंग’ का काम होता है, ज़मीन से पानी हटा कर उसे समतल और खेती योग्य बनाना. फिल्म के नाम में एक और उद्धरण है ‘लेवेलर्स’ का.17वीं सदी में इंग्लैंड में ‘लेवेलर्स’ एक राजनीतिक आंदोलन था जिसका लक्ष्य था समाज में बराबरी लाना और धार्मिक सहिष्णुता को प्रोत्साहित करना.फिल्म की कहानी प्रतीकात्मक रूप से न सिर्फ ज़मीन के ‘लेवेलिंग’ की बात करती है बल्कि परिवार और समाज में सभी सदस्यों के बराबरी के दर्ज़े की अहमियत को भी इंगित करती है. अब हम आते हैं इसकी कहानी पर.
क्लोवर एक युवा वेटरीनरी डॉक्टर है जो सालों बाद अपने भाई की मृत्यु होने पर सोमेर्सेट लेवेल में अपने घर आती है जहां कुछ ही महीनों पहले ज़बरदस्त बाढ़ ने खेतों को बर्बाद कर दिया है, मवेशी भी प्रभावित हुए हैं. घर पहुंच कर वह पाती है कि उसका पिता घर में नहीं बल्कि एक ट्रेलर में रह रहा है क्योंकि बीमा कंपनी ने मकान में बाढ़ से हुई क्षति का खामियाजा ही नहीं दिया है.
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अब घर में सिर्फ बाप-बेटी हैं. क्लोवर को पता चलता है कि उसके भाई ने एक पार्टी के दौरान खुद को गोली मार ली थी, लेकिन पिता औब्रे इस बात को स्वीकार ही नहीं करना चाहता कि उसके बेटे हैरी ने आत्महत्या की. वह बार-बार कहता है कि ये महज़ एक दुर्घटना थी. हैरी तो खुश था क्योंकि औब्रे (पिता) ने अपनी ज़मीन हाल ही में उसके नाम कर दी थी . क्लोवर औब्रे को झकझोरती है कि अब उसे अपने बेटे की आत्महत्या का सच स्वीकार कर लेना चाहिए.
व कर्जे में डूबा हुआ है और अपने मवेशियों को बेच कर कर्जा चुकाना चाहता है. फिर पता चलता है कि उसके मवेशी भी संक्रामक बीमारी से पीड़ित हैं. इन्हीं हालात के चलते हैरी ने आत्महत्या की थी. पिता को शिकायत है कि क्लोवर बाढ़ से जूझते अपने परिवार की मदद के लिए वापिस नहीं आई. यह सब जान कर क्लोवर फैसला करती है कि वो वापिस नहीं जाएगी और इस संकट से उबरने में अपने पिता की मदद करेगी.
फिल्म में न सिर्फ खेत और बाढ़ से ग्रसित ज़मीन एक किरदार के रूप में उभरती है बल्कि दो किरदारों के बीच मौन भी सबसे अभिव्यक्तिपूर्ण संवाद के तौर पर ज़ाहिर होता है. पिता और बेटी के बीच जो अनकहा है, वहीं उनका दर्द भी है . पशुओं, खासकर गायें और एक खरगोश की छवि बार-बार उभरती है और गांव-खेतों, जानवरों की आवाज़ें पार्श्व संगीत के साथ बहुत प्रभावपूर्ण तरीके से इस्तेमाल की गईं हैं.
फिल्म की निर्देशिका है होप डिकसन लीच. यह उनकी पहली फीचर फिल्म थी. ‘द लेवेलिंग’ के बनने की कहानी भी दिलचस्प है. होप शॉर्ट फिल्में बनाती थीं. विवाह के बाद दो बच्चों की मां होप डिकसन लीच को लगा कि अब वो फिल्में नहीं बना पाएंगी, तो उनके पति ने उन्हें प्रोत्साहित किया. बीबीसी की एक स्कीम के तहत उन्हें फंडिंग भी मिल गयी.
लेकिन गांव में मवेशियों के बीच शूट करना मुश्किल था. इसमें उनकी मदद की गांव वालों ने. एक दृश्य के लिए उन्होने एक गाय के नकली शव को रखा जिसके पास औब्रे को खड़ा होना था. लेकिन सभी गायें कैमरामैन को शूट ही न करने दें. वे सभी उस नकली शव के चारों ओर इकट्ठा हो गईं. तब कैमरामैन को गायों को हांक-हांक कर वह सीन शूट करना पड़ा ताकि गायें कैमरे में न झांकें और उस नकली शव से दूर खड़ी हों.
क्लोवर की भूमिका में थीं ‘गेम ऑफ थ्रोन्स’ से मशहूर हुई एली केंड्रिक. जानवरों के साथ काम करना, गाय का दूध दोहना, खेत की सफाई करना – यह सब एली के लिए नया था. उन्होने ये सब सीखा . नतीजा ये कि फिल्म के किरदार बिलकुल ग्रामीण लगते हैं. एक तनाव पूर्ण पारिवारिक रिश्ते के साथ-साथ फिल्म बाढ़ के बाद किसान के हालात और युवा पीढ़ी का कृषि से पलायन –इन दो महत्वपूर्ण मुद्दों को भी हाइलाइट करती है.
2016 में रिलीज़ हुई इस फिल्म को न सिर्फ समीक्षकों की सराहना मिली बल्कि अनेक पुरस्कार भी मिले. बॉक्स ऑफिस पर भी इसने ठीक-ठाक कारोबार किया. सबसे बड़ी बात ये कि इस फिल्म ने सोमेर्सेट लेवेल में आई बाढ़ के माध्यम से न सिर्फ इंग्लैंड के किसान बल्कि दुनिया भर के किसानों के हालात को बहुत मर्मस्पर्शी रूप से पेश किया.
निर्देशक होप लीच ने एक इंटरव्यू में बताया था कि वे फिल्म का अंत नकारात्मक रखना चाहती थीं. ‘क्योंकि हालात ही ऐसे थे. एक कर्ज़ में डूबा किसान जब अपने मवेशियों को भी बीमार पाता है, तो वह क्या कर सकता है?’ लेकिन मृत्यु और विनाश इस फिल्म के माहौल पर इस कदर हावी थे कि उन्होने अंत को बदल दिया. हालांकि अंत फिर भी उदासी से बोझिल है लेकिन उसमें एक उम्मीद भी है – कि औब्रे की बेटी क्लोवर अपने घर और फार्म की देखभाल करेगी तो शायद परिस्थितियां बेहतर हो जाए. ‘द लेवेलिंग’ अपनी चुप्पी और उदासी से बाढ़ पीड़ित किसानों के कष्टों को तो बयान करती ही है, साथ ही उनकी जीवटता और लगातार संघर्ष करते रहने के जज़्बे को भी भावपूर्ण तरीके से पेश करती है- फिर वह किसान दुनिया के किसी भी देश का क्यों ना हो.