फसलों का रक्षक, कीटों का भक्षक...विदेशों से आया क‍िसानों का मसीहा, ये है व‍िज्ञान की अद्भुत कहानी

फसलों का रक्षक, कीटों का भक्षक...विदेशों से आया क‍िसानों का मसीहा, ये है व‍िज्ञान की अद्भुत कहानी

Insect Import:  क्या आप जानते हैं क‍ि कृषि और क‍िसानों को बचाने के ल‍िए भारत समय-समय पर कीटों का भी आयात करता है. क‍िसान तक के पोडकास्ट 'अन्नगाथा' में जाने माने कीट विज्ञानी डॉ. सुभाष चंदर ने कीटों की रहस्यमयी दुन‍िया के बारे में व‍िस्तार से जानकारी दी. ज‍िसे आप हमारे यूट्यूब चैनल पर 8 स‍ितंबर 2025 को शाम 6 बजे से देख सकते हैं.  

जब भारत ने क‍िसानों के ल‍िए व‍िदेश से मंगाए थे कीट. जब भारत ने क‍िसानों के ल‍िए व‍िदेश से मंगाए थे कीट.
ओम प्रकाश
  • New Delhi ,
  • Sep 06, 2025,
  • Updated Sep 06, 2025, 2:19 PM IST

खेती-क‍िसानी की दुन‍िया बाहर से ज‍ितनी बोर‍िंग लगती है अंदर से उतनी ही द‍िलचस्प है. इसमें राजनीत‍ि, अर्थशास्त्र और व‍िज्ञान का जबरदस्त कॉकटेल है. कृष‍ि और क‍िसानों को बचाने के ल‍िए कुछ ऐसे काम भी होते हैं ज‍िसकी आम आदमी कल्पना भी नहीं करता. सरकार अनाज और फल-सब्ज‍ियों का उत्पादन बढ़ाने के ल‍िए बड़े पैमाने पर उर्वरकों का आयात करती है. लेक‍िन, आपने ऐसी कल्पना कभी नहीं की होगी क‍ि कीटों का भी आयात होता है. आप सोचेंगे कीटों का आयात क्यों? कीट तो खतरनाक होते हैं? असल में सभी कीट खेती के ल‍िए खतरनाक नहीं होते. अगर कोई कीट भारतीय कृष‍ि के ल‍िए खतरा बनने लगता है तो सरकार उसे कंट्रोल करने के ल‍िए उनके मूल देश या क्षेत्र से उनके प्राकृतिक शत्रु कीटों को इंपोर्ट करती है. दुश्मन को उसके सामने लाकर खड़ा कर देती है. नेचर का बनाया यह एक ऐसा खेल है क‍ि खेती के ल‍िए खतरनाक कीटों के प्राकृत‍िक शत्रु कीट उन्हें साफ कर देते हैं या पौधों के रास्ते से हटा देते हैं. 

क‍िसान तक के पोडकास्ट 'अन्नगाथा' में जाने माने कीट विज्ञानी डॉ. सुभाष चंदर ने कीटों की रहस्यमयी दुन‍िया के बारे में व‍िस्तार से जानकारी दी. ज‍िसे आप हमारे यूट्यूब चैनल पर 8 स‍ितंबर 2025 को शाम 6 बजे से देख सकते हैं. उन्होंने कहा क‍ि प्रकृत‍ि में हर कीड़े का शत्रु जीव मौजूद होता है. जब ये कीड़े दूसरे देश या अपने मूल न‍िवास से उड़कर या क‍िसी दूसरे तरीके से क‍िसी दूसरे देश या क्षेत्र में चले जाते हैं. तब इनके शत्रु पीछे छूट जाते हैं और इसल‍िए वो अपना पूरा व‍िस्तार करके फसलों को नुकसान करते हैं. इसील‍िए तमाम देशों में सरकारें उन्हें कंट्रोल करने के ल‍िए उनके शत्रुओं, शिकारियों या परजीवियों कीटों को आयात करती हैं. इस प्रक्रिया को क्लास‍िकल बायोज‍िकल कंट्रोल कहते हैं.

कसावा मिलीबग का कंट्रोल 

अप्रैल, 2020 के दौरान, केरल के त्रिशूर में एक विदेशी आक्रामक कीट, कसावा मिलीबग (Cassava Mealybug) को देखा गया था. जिससे फसलों को भारी नुकसान होने की संभावना थी. कर्नाटक के बंगलुरु स्थ‍ित नेशनल ब्यूरो ऑफ एग्रीकल्चरल इंसेक्ट र‍िसोर्सेज (NBAIR) ने मई, 2020 के दौरान इसकी पहचान की. फ‍िर क‍िसानों को इस कीट के प्रति सतर्क क‍िया गया. इसके बाद, पूरे तमिलनाडु और केरल में टैपिओका (कसावा/साबूदाना) पर इसका संक्रमण देखा गया, जिससे कंद की उपज में भारी कमी आई. इसे कंट्रोल करने के ल‍िए भारत ने इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ ट्रोप‍िकल एग्रीकल्चर (IITA) और इसके बेनिन गणराज्य स्थित उप-केंद्र से कसावा मिलीबग के परजीवी एनागाइरस लोपेजी (Anagyrus Lopezi) का इंपोर्ट किया. आईसीएआर के अधीन आने वाले NBAIR को देश में विदेशी कीट आयात करने का अधिकार है.  

अफ्रीका में इस कीट से रुकी तबाही 

कसावा मिलीबग दुनिया में टैपिओका के सबसे विनाशकारी कीटों में से एक है. यह दक्ष‍िण अमेरिका का मूल निवासी है. जबक‍ि उसका प्राकृत‍िक शत्रु कीट एनागाइरस लोपेजी मध्य अमेरिका में पाई जाने वाली परजीवी ततैया की एक प्रजाति है. पूरी दुन‍िया में इसका इस्तेमाल कसावा मीलीबग के खिलाफ बायोलोज‍िकज कंट्रोल एजेंट के तौर पर किया जाता है. कसावा मिलीबग ने 1970 के दशक में अफ्रीका के कसावा की फसल को तबाह कर दिया था, जिससे उपज में भारी कमी आई थी और इससे लाखों लोगों की खाद्य सुरक्षा और आजीविका को खतरा पैदा हो गया था. इस समस्या का समाधान बड़े पैमाने पर एनागाइरस लोपेजी के जर‍िए क‍िया गया था. 

1930 में भी आयात हुआ था कीड़ा 

डॉ. सुभाष चंदर बताते हैं क‍ि 1930 के आसपास संतरे की फसल पर कॉटनी कुशन स्केल (Cottony cushion scale) नाम के कीट का अटैक हुआ था. उसे खत्म करने के ल‍िए भारत ने आस्ट्रेल‍िया से लेडी बर्ड बीटल (Ladybird Beetles/Rodolia Cardinalis) परजीवी का आयात क‍िया था. इस कीट के बायोलोज‍िकल कंट्रोल का तरीका 1880 के दशक के अंत में कैलिफोर्निया में विकसित और कार्यान्वित किया गया था. 

हालांकि कॉटनी कुशन स्केल के ख‍िलाफ बायोलोज‍िकल कंट्रोल यानी जैविक नियंत्रण की शुरुआती बड़ी सफलता 19वीं शताब्दी के अंत में मिली. भारत ने साल 1929-1931 के बीच कॉटनी कुशन स्केल को कंट्रोल करने के ल‍िए उसके शत्रु कीट लेडी बर्ड बीटल का आयात किया. कॉटनी कुशन स्केल लकड़ी के पौधों के 80 से अधिक परिवारों को खाता है, विशेष रूप से साइट्रस वाले प्लांट को. 

भारत में कैसे बची सेब की खेती? 

राष्ट्रीय एकीकृत कीट प्रबंधन संस्थान (NCIPM) के न‍िदेशक रह चुके डॉ. सुभाष चंदर बताते हैं क‍ि भारत में सेब के बागानों पर वुली एप्पल एफ‍िड (Woolly Apple Aphid) कीट का प्रकोप हुआ था. इसको कंट्रोल करने के ल‍िए यूके से एफेलिनस माली (Aphelinus Mali) नामक परजीवी कीट मंगाया गया था. साल 1936-37 में वुली एप्पल एफ‍िड से कुल्लू, कश्मीर घाटी, तमिलनाडु के कुन्नूर और शिलांग सहित सेब उत्पादक क्षेत्रों में नुकसान हुआ था. 

इसी तरह सेब के बागान को नुकसान पहुंचाने वाले सैन जोस स्केल (San Jose Scale) को कंट्रोल करने के ल‍िए यूके से एनकार्सिया पर्निसियोसी (Encarsia perniciosi) नामक परजीवी लाया गया था. कश्मीर में इसका इसका इस्तेमाल क‍िया गया. बहरहाल, डॉ. सुभाष का कहना है क‍ि अगर क‍िसी फसल में कोई कीट लग रहा है तो उन्हें खत्म करने के ल‍िए कीटनाशकों का इस्तेमाल अंत‍िम व‍िकल्प होना चाह‍िए, क्योंक‍ि जब आप जहरीले केम‍िकल का स्प्रे करते हैं तो म‍ित्र कीट भी मर जाते हैं और इस तरह आप एक नए संकट को जन्म दे रहे होते हैं.  

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