भारत को दलहन में आत्‍मनिर्भर बनाने के लिए नीति आयोग ने तैयार किया रोडमैप, सामने आई चौंकाने वाली जानकारी

भारत को दलहन में आत्‍मनिर्भर बनाने के लिए नीति आयोग ने तैयार किया रोडमैप, सामने आई चौंकाने वाली जानकारी

Pusles Production: भारत दुनिया का सबसे बड़ा दलहन उत्पादक और उपभोक्ता है. नीति आयोग की रिपोर्ट में बताया गया है कि उत्पादन 2015-16 के बाद बढ़ा है और आयात निर्भरता घटकर 10% रह गई है. अब आत्मनिर्भरता के लिए मिशन चलाया जा रहा है, जिसमें अरहर, काला चना और मसूर पर फोकस है.

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क‍िसान तक
  • Noida,
  • Sep 05, 2025,
  • Updated Sep 05, 2025, 8:44 AM IST

भारत दुनिया का सबसे बड़ा दलहन उत्पादक और उपभोक्ता देश है. खाद्य सुरक्षा, पोषण और पर्यावरणीय संतुलन के लिहाज से दलहन की भूमिका बेहद महत्वपूर्ण मानी जाती है. यही वजह है कि भारत दलहन में आत्‍मनिर्भरता के लिए मिशन चला रहा है, जिसे हासिल करने के लिए नीतिगत स्‍तर पर तेजी से लगातार काम चल रहा है. इसी क्रम में नीति आयोग ने दलहन उत्‍पादन को लेकर रिपोर्ट जारी की है, ताकि इसके विकास में तेजी लाई जा सके. इस रिपोर्ट का नाम है - "आत्मनिर्भरता के लक्ष्य की ओर दलहनों के विकास में तेजी लाने की रणनीतियां और मार्ग". रिपोर्ट में कई चौंकाने वाली जानकारी सामने आई है.

नीति आयोग के सदस्य प्रो. रमेश चंद ने यह अहम रिपोर्ट जारी की. इस मौके पर नीति आयोग के सीईओ बी.वी.आर. सुब्रह्मण्यम, कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय और कृषि अनुसंधान एवं शिक्षा विभाग के सचिव और आईसीएआर के महानिदेशक भी मौजूद थे. वहीं, नीति आयोग की वरिष्ठ सलाहकार डॉ. नीलम पटेल ने इस रिपोर्ट पर प्रजेंटेशन दी.

दलहन क्षेत्र की चुनौतियों और भविष्‍य की रूपरेखा तैयार

रिपोर्ट में भारत के दलहन क्षेत्र की वर्तमान स्थिति, चुनौतियां और भविष्य की संभावनाओं का विस्तृत खाका दिया गया है, जिसके अनुसार, देश का दलहन क्षेत्र लगभग 80 प्रतिशत बारिश आधारित क्षेत्रों पर निर्भर है और 5 करोड़ से अधिक किसानों की आजीविका का सहारा है. यह ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूती देने के साथ आत्मनिर्भरता के लक्ष्य में भी अहम योगदान करता है.

रिपोर्ट के मुताबिक, 2015-16 में देश में दलहन उत्पादन घटकर 16.35 मिलियन टन रह गया था, जिसके चलते 6 मिलियन टन आयात करना पड़ा. हालांकि, सरकार के ठोस हस्तक्षेपों के बाद 2022-23 तक उत्पादन 59.4% बढ़कर 26.06 मिलियन टन तक पहुंच गया. इसी अवधि में उत्पादकता में 38% की वृद्धि दर्ज की गई और आयात पर निर्भरता 29% से घटकर 10.4% रह गई.

12 दलहन फसलें तीनों सीजन के लिए उपयुक्‍त

इस प्रगति को आगे बढ़ाते हुए केंद्रीय बजट 2025-26 में "दलहन में आत्मनिर्भरता मिशन" की घोषणा की गई है, जो छह वर्ष की योजना होगी. इसमें अरहर, काला चना और मसूर पर विशेष ध्यान दिया जाएगा. रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत की विविध कृषि-जलवायु परिस्थितियां खरीफ, रबी और ग्रीष्म ऋतु (जायद सीजन) में 12 से अधिक दलहनी फसलों की खेती के लिए उपयुक्त हैं.

2030 तक इतना हो सकती है घरेलू सप्‍लाई

मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और राजस्थान देश के कुल उत्पादन में लगभग 55% योगदान करते हैं, जबकि शीर्ष 10 राज्य 91% से अधिक हिस्सा देते हैं. आयात पर निर्भरता कम करने और पोषण सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए इन क्षेत्रों की कमियों को दूर करना अनिवार्य है. रिपोर्ट के अनुसार, 2030 तक घरेलू दलहन आपूर्ति 30.59 मिलियन टन और 2047 तक 45.79 मिलियन टन तक पहुंचने की संभावना है.

दलहन आत्‍मनिर्भरता की रणनीति

आत्मनिर्भरता के लक्ष्य को पाने के लिए इसमें दो स्तंभों पर आधारित रणनीति बताई गई है. पहला है- क्षैतिज विस्तार, जिसके तहत चावल की परती जमीन जैसी अनुपयोगी भूमि पर दलहन की खेती बढ़ाई जाएगी. दूसरा है- ऊर्ध्वाधर विस्तार, जिसमें उन्नत तकनीक, नई किस्मों, बीज उपचार, वैज्ञानिक बुवाई और कीट-पोषण प्रबंधन के जरिए उत्पादकता बढ़ाने पर जोर रहेगा. इस रणनीति में "जिलावार चतुर्थांश दृष्टिकोण" को भी अहम माना गया है.

इसके जरिए उच्च संभावनाशील जिलों की पहचान की जाएगी और वहीं से उत्पादन बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित होगा. रिपोर्ट का आकलन है कि अगर इन सुझावों को सही ढंग से लागू किया गया तो घरेलू उत्पादन में 20.10 मिलियन टन की और बढ़ोतरी संभव है. इससे 2030 तक कुल आपूर्ति 48.44 मिलियन टन और 2047 तक 63.64 मिलियन टन तक पहुंच सकती है.

111 जिलों पर फोकस की जरूरत

रिपोर्ट की सिफारिशों में लक्षित फसल-वार क्लस्टरिंग, विविधीकरण, उच्च गुणवत्ता वाले बीज वितरण और राष्ट्रीय उत्पादन में 75% योगदान देने वाले 111 उच्च संभावनाशील जिलों पर विशेष ध्यान केंद्रित करने की बात कही गई है. इसके अलावा एफपीओ की मदद से "एक ब्लॉक-एक बीज ग्राम" मॉडल को अपनाने पर जोर दिया गया है.

रिपोर्ट यह भी बताती है कि जलवायु परिवर्तन के बढ़ते असर को देखते हुए सक्रिय अनुकूलन उपाय और डेटा आधारित निगरानी प्रणाली की जरूरत है. इन्हें अपनाने से दलहन क्षेत्र में दीर्घकालिक स्थिरता और आत्मनिर्भरता हासिल करना संभव होगा.

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