क्या आपने किसानों की समस्याओं पर कभी रैप सुना है? शायद नहीं! लेकिन, जयपुर के कुछ थियेटर कर्मियों ने बेहद रोचक और नए तरीके के थियेटर की शुरूआत की है. नाटकों के इस नए फॉर्मेट का नाम है वॉक थियेटर. यानी चलता-फिरता थियेटर. इसमें कलाकार चलते-फिरते नाटकों का मंचन करते हैं. इसके लिए ना ऑटिटोरियम की जरूरत होती है और ना ही थियेटर में जरूरी समझे जाने वाले किसी और चीज की. बस जरूरत होती है तो सिर्फ एक आर्टिस्ट की जो अपनी प्रस्तुति से सड़कों पर चलते लोगों का ध्यान खींचता है. देखते-देखते आम लोग भी इनके ग्रुप में बतौर दर्शक शामिल हो जाते हैं.
वॉक थियेटर में कलाकार अपनी सोलो परफॉर्मेंस देते हैं. इस बार वॉक थियेटर में कई नाटक किसान और उनकी समस्याओं को लेकर प्रस्तुत किए गए. किसान तक इन अनोखी प्रस्तुतियों को आप दर्शकों तक लाया है.
वॉक थियेटर शुरू करने वाले जयपुर के युवा रंगकर्मी अभिषेक मुद्गल हैं. वे किसान तक से बताते हैं, "मैं एक फैलोशिप के तहत बीते महीनों नीदरलैंड गया था. वहां अपने रिसर्च के दौरान कई आर्ट कॉन्सेप्ट देखने को मिले, जो भारत में नहीं किए जाते. इन्हीं में से एक था वॉक थियेटर यानी घूम-घूम कर नाटकों का मंचन करना."
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अभिषेक का दावा है कि वॉक थियेटर भारत में नाटकों के मंचन का अपनी तरह की पहली कोशिश है. इससे भी बड़ी बात है कि यह दिल्ली या मुंबई से शुरू ना होकर जयपुर जैसे शहर से शुरू हुआ है. अभिषेक बताते हैं कि अभी भारत में थियेटर तक लोग आते हैं, जबकि वॉक थियेटर में हम रंगकर्मी लोगों के बीच जा रहे हैं.
30 जनवरी को हुए वॉक थियेटर में जयपुर के करीब 40 रंगकर्मी शामिल हुए. इनमें से 16 किलोमीटर वॉक कर के 16 परफॉर्मेंस की गईं.इन 16 परफॉर्मेंसे में से चार परफॉर्मेंस किसान और उनकी समस्याओं पर आधारित थी. इसमें पिछले साल हुए किसान आंदोलन, किसानों पर गीत और रैप प्रस्तुत किए गए. भारी बरसात के बीच भी थियेटरकर्मी अपना प्ले कर रहे थे और आम लोग भी इनके साथ जुड़ रहे थे.
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रंगकर्मी सुंधाशु शुक्ला ने जयपुर के हवामहल के सामने 'मैं हूं एक किसान' गीत गाया. साथ ही एक रैप 'दिन-रात मेहनत मैं करता ' से किसानों की समस्याओं को दर्शकों के सामने रखा. वहीं, युवा रंग कर्मी प्रीतम सिंह ने एक साल पहले हुए किसान आंदोलन और उस पर सरकारों की प्रतिक्रियाओं को लेकर एक नाटक प्रस्तुत किया.
प्रीतम किसान तक से कहते हैं कि किसानों को लेकर हमारे पास सिर्फ खबरें आती हैं, लेकिन इसके इतर कुछ और जानकारियां नहीं आतीं. इसीलिए मैंने प्ले के लिए काफी रिसर्च किया और फिर किसान क्या चाहते हैं? इस थीम पर एक प्ले तैयार किया.
इसी तरह सुधांशु कहते हैं कि हम रंगकर्मी हैं. समस्या हो या कुछ और हम उसमें मनोरंजन ढूंढते हैं. इसीलिए मैंने किसानों को लेकर एक गीत बनाया और उसी में एक रैप भी डाला ताकि किसानों की समस्याओं को लोग सुनें.
रंग मस्ताने थियेटर ग्रुप बनाने वाले रंगकर्मी अभिषेक मुद्गल किसान तक से बातचीत में कहते हैं कि सिनेमा एक गंभीर आर्ट है, जहां लोगों को मनोरंजन भी चाहिए,लेकिन, उसकी गंभीरता को बनाए रखते हुए हमें अपना काम करना पड़ता है. इसीलिए इस बार का वॉक थियेटर किसानों को ही समर्पित किया गया.
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