भारत में दिवाली को खुशियों का त्योहार माना जाता है. दिवाली की शुरुआत धनतेरस से होती है. हिंदू धर्म में धनतेरस को बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है. इस दिन लोग कुछ न कुछ जरुर खरीदते हैं. धनतेरस के दिन कुबेर देव और मां लक्ष्मी की पूजा करने की परंपरा है. हिंदू कैलेंडर के अनुसार, धनतेरस कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को मनाया जाता है. ऐसे में आइए जानते हैं कि इस साल धनतेरस कब है. साथ ही जानेंगे इस दिन का शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और महत्व.
पंडित शशि शेखर मिश्र के मुताबिक कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि 10 नवंबर, शुक्रवार को दोपहर 12:34 बजे शुरू होगी. वहीं अगले दिन 11 नवंबर शनिवार को दोपहर 1 बजकर 56 मिनट पर धनतेरस की तिथि समाप्त होगी. धनतेरस के दिन प्रदोष काल में कुबेर देव और मां लक्ष्मी की पूजा की जाती है. ऐसे में यह प्रदोष काल 10 नवंबर को शाम 5:29 बजे से रात 8:07 बजे तक रहेगा.
ये भी पढ़ें: Diwali 2023: दुनिया होती है दिवाली पर खुश, ये लोग मनाते हैं इस दिन शोक दिवस, क्या आप जानते हैं वजह?
धनतेरस के दिन पूजा का शुभ समय 10 नवंबर को शाम 5.46 बजे से 7.43 बजे तक है. इस अवधि में धनतेरस की पूजा करना सर्वोत्तम रहेगा. आप चाहें तो पूजा के समय घर में श्री, लक्ष्मी, गणेश, कुबेर आदि के यंत्र की भी पूजा कर सकते हैं.
पंचांग के अनुसार कार्तिक मास की त्रयोदशी तिथि 10 नवंबर, शुक्रवार को दोपहर 12:35 बजे शुरू हो रही है और अगले दिन 11 नवंबर को दोपहर 1:57 बजे समाप्त होगी. इस वजह से धनतेरस 10 नवंबर को ही मनाया जाएगा. इस बार धनतेरस के दिन कई योग बन रहे हैं. इस दिन हस्त नक्षत्र रहेगा जो अपार धन लाभ कराता है. हस्त नक्षत्र के स्वामी चंद्र देव हैं और शुक्र और चंद्रमा कन्या राशि में रहेंगे. हस्त नक्षत्र में खरीदारी करना बहुत शुभ माना जाता है. इसके अलावा धनतेरस पर शनि भी अपनी मूल त्रिकोण राशि कुंभ में मार्गी स्थिति में रहेंगे.
इस दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और फिर आसन पर बैठकर भगवान धन्वंतरि और मां लक्ष्मी का ध्यान करें. उनके मंत्रों का जाप करें. इसके बाद पूरे दिन आप जो भी शुभ वस्तु चाहते हैं उसे घर ला सकते हैं. शाम को प्रदोष काल में स्नान करके कपड़े बदलें और कुबेर देव (कुबेर की मूर्ति तिजोरी में रखें या नहीं) और मां लक्ष्मी की मूर्ति स्थापित करें. इसके बाद उन्हें गंगा जल से स्नान कराएं, नए वस्त्र पहनाएं, तिलक लगाएं और दोनों को फल, फूल, मिठाई, धूप, दीप, नैवेद्य आदि अर्पित करें. कुबेर देव और मां लक्ष्मी के स्तोत्र का पाठ करें. अंत में दोनों की आरती गाएं.