
प्रदूषण के लिए किसानों को पानी पी-पीकर कोसने वालों अब अपना दिमाग दुरुस्त कर लो. दिमाग में लगे जाले साफ कर लो. अपने अंदर झांको, दिल्ली के भस्मासुरों...अपनी गलतियों को स्वीकारो और उसे सुधारने के लिए काम करो...वरना यह शहर विस्फोटक स्थिति में पहुंच जाएगा. इस समय न तो दिवाली के पटाखे चल रहे हैं और न खेतों में पराली जल रही है. फिर क्यों एयर क्वालिटी इंडेक्स (AQI) 500 के पार है? फिर क्यों सासों पर जहरीली हवा का पहरा है? दरअसल, अब उन लोगों को 'सच का सामना' करने का वक्त आ गया है जो प्रदूषण के लिए पराली के बहाने किसानों को गुनहगार बताते आए हैं. जो पराली की आड़ में प्रदूषण फैलाने वाले अपने 'गुनाहों' को छिपाते आए हैं.
दिल्ली-एनसीआर में साल दर साल हवा खराब हो रही है, जबकि पराली जलाने की घटनाएं बहुत कम हो गई हैं. साल 2021 में 92,047 जगहों पर पराली जली थी, जबकि 2025 में ऐसे मामले महज 33,028 रह गए हैं. फिर भी प्रदूषण क्यों बढ़ रहा है? यह सोचने की जरूरत है. दिल्ली-एनसीआर में प्रदूषण पर सुप्रीम कोर्ट में चीफ जस्टिस सूर्यकांत का सवाल भी बेहद महत्वपूर्ण है, जिसमें उन्होंने पूछा था कि "कोविड में भी पराली जली, फिर भी आसमान नीला था...तो असली प्रदूषण कौन कर रहा है? उससे भी बड़ी बात यह है कि अब दिसंबर चल रहा है. इस समय पराली बिल्कुल नहीं जल रही और न पटाखे चल रहे हैं, फिर भी दिल्ली में इतना प्रदूषण क्यों है? इसलिए किसानों को कोसना बंद कीजिए. कड़वा सच यह है कि प्रदूषण दिल्ली के अपने घर की खेती है. किसान इसका जिम्मेदार नहीं है.
दिल्ली में बढ़ते प्रदूषण को लेकर यहां के नेता और लोग खासतौर पर पंजाब में जलने वाली पराली को जिम्मेदार बताते रहे हैं. इस थ्योरी को नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) के सदस्य रहे जस्टिस सुधीर अग्रवाल भी खारिज कर चुके हैं. उन्होंने जो सवाल पूछेउसका जवाब किसी के पास नहीं है.
हवा की दिशा और अच्छी गति के बिना पराली जलाने का धुआं पंजाब से दिल्ली तक कैसे पहुंच सकता है? पंजाब की पराली का धुआं हरियाणा में क्यों नहीं रुकता. जबकि हरियाणा दोनों के बीच स्थित है. क्या पंजाब में जलने वाली पराली के धुएं को राष्ट्रीय राजधानी यानी दिल्ली में पहुंचने का शौक है? कमाल ये है कि वो राजधानी से आगे भी नहीं बढ़ता.
दिल्ली की हवा में तैलीय तत्व (ऑयली कंटेंट) मिलता है, जबकि पराली बायोडिग्रेडेबल है. उसमें ऑयली कंटेंट नहीं है. दिल्ली में वायु प्रदूषण का असली कारण कुछ और है. इसके लिए किसानों पर मुकदमा चलाना पूरी तरह से गलत है.
पंजाब दिल्ली से काफी दूर उत्तर की तरफ स्थित है. ऐसे में वहां जलने वाली पराली का धुआं दिल्ली तक आने के लिए हवा का डायरेक्शन उत्तर से दक्षिण की तरफ होना चाहिए, जो कभी-कभी होता है. अगर हवा उत्तर-दक्षिण चलती नहीं है तो पंजाब से पराली का धुआं दिल्ली कैसे पहुंचता है?
ऐसे में अब सवाल यही उठता है कि आखिर दिल्ली में बढ़ते प्रदूषण का विलेन कौन है? इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नालॉजी (IIT), कानपुर ने 2016 में एक शोध किया था. इसकी रिपोर्ट दिल्ली सरकार और दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण कमेटी को सौंप दी गई थी. इसमें धूल, वाहनों और डीजी सेट और उद्योगों को इसका मुख्य कारण बताया गया था.
रिपोर्ट के मुताबिक पीएम-10 में सबसे ज्यादा 56 फीसदी योगदान धूल का है. पीएम यानी पर्टिकुलेट मैटर, हवा में ये पार्टिकल होते हैं जिस वजह से प्रदूषण फैलता है. जबकि पीएम 2.5 में इसका हिस्सा 38 फीसदी है. पीएम 2.5 का मतलब है हवा में तैरते वह सूक्ष्म कण जिनका व्यास 2.5 माइक्रोन से कम होता है.
दिल्ली में प्रदूषण बढ़ने की एक बड़ी वजह बेहिसाब बढ़ती गाड़ियां भी हैं. दिल्ली में साल 2000 में 34 लाख गाड़ियां थीं. जो अब बढ़कर 1 करोड़ 58 लाख से ज्यादा हो गई हैं. सड़क परिवहन मंत्रालय के आंकड़ों से पता चला है कि दिल्ली में रजिस्टर्ड वाहनों की संख्या कोलकाता, मुंबई और चेन्नई जैसे तीन महानगरों में रजिस्टर्ड वाहनों की कुल संख्या के बराबर है. इसलिए यहां जाम और वायु प्रदूषण से लोग जूझ रहे हैं.
पहले लोगों के पास छोटी गाड़ियां थीं जो एक लीटर डीजल या पेट्रोल में 15 से 20 किलोमीटर तक का सफर करवाती थीं, जबकि अब सड़कों पर ऐसी बड़ी गाड़ियों की भरमार है जो प्रति लीटर महज 5 से 7 किलोमीटर तक ही चल रही हैं. ऐसी गाड़ियां न सिर्फ सड़कों की धूल को धुएं के साथ मिलाकर हवा को और खतरनाक बना रही हैं बल्कि कम एवरेज की वजह से डीजल-पेट्रोल भी ज्यादा फूंककर हवा को जहरीला कर रही हैं.
पराली नहीं जलनी चाहिए, जबकि जलती है, यह एक कड़वी सच्चाई है. लेकिन उससे भी बड़ा सच यह है कि दिल्ली के प्रदूषण में पराली का योगदान महज 4-5 फीसदी ही होता है. जिसके लिए आप किसानों को जी भर कर गाली देते हैं. जबकि ये वही किसान हैं जो ग्रीन रिवॉल्यूशन के हीरो रहे हैं. जिन्होंने अपनी मेहनत से भारत को भुखमरी के मुंह से बाहर निकाला. बहरहाल, इन किसानों ने बात मानी और पराली जलाना लगभग बंद कर दिया है. वो अब पराली से पैसे बनाने लगे हैं. लेकिन दिल्ली वाले जिनका प्रदूषण में 95 फीसदी का योगदान है, वो न तो अपनी गलती मानने को तैयार हैं और न सुधरने को.
दिल्ली में प्रदूषण सिर्फ नवंबर-दिसंबर में नहीं होता. यहां की हवा बाकी दिनों में भी खतरनाक ही होती है. कभी थोड़ा कम और कभी थोड़ा ज्यादा. aqi.in के मुताबिक साल 2022 में सिर्फ 3 दिन दिल्ली की हवा गुड कैटेगरी में थी. जबकि 2023, 2024 में मात्र दो-दो दिन और 2025 में 17 दिसंबर तक एक दिन भी हवा अच्छी नहीं थी. बहरहाल, दिल्ली सरकार जिस तरह से काम कर रही है और दिल्ली वालों का जो रवैया है उससे ये तय है कि प्रदूषण कम नहीं होगा. हो सकता है कि आने वाले दिनों में और ज्यादा हो.
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