
महाराष्ट्र में राज्य सरकार ने कृषि भूमि पर कब्जे और सड़क बंद होने के दावों को सुलझाने के लिए एक बड़ा फैसला किया है. सरकार ने अब ऐसे मामलों में टेक्नोलॉजी के प्रयोग करने का फैसल किया है. अब से, ऐसे सभी मामलों में एक फिजिकल सर्वे रिपोर्ट और किसान की एक जियो-टैग्ड फोटोग्राफ को शामिल करना अनिवार्य होगा. इस फैसले से यह सुनिश्चित होगा कि सड़क वास्तव में खुलने के बाद भी स्थायी रूप से खुली रहे. राजस्व विभाग में प्रक्रिया को और अधिक पारदर्शी और प्रभावी बनाने के लिए यह कदम उठाया गया है.
राज्य में जमीन से जुड़े विवादों में कोर्ट या राजस्व अधिकारी आदेश तो दे देते हैं लेकिन यह सुनिश्चित नहीं हो पाता कि उन्हें असल में लागू किया गया है या नहीं. नतीजतन, नागरिकों को दोबारा शिकायत करनी पड़ती है. इस समस्या के समाधान के तौर पर, राज्य सरकार ने अब हर आदेश को असल में लागू करने के लिए मौके पर ही जांच करने का निर्णय लिया है. मराठी मीडिया की रिपोर्ट के अनुसार अब से अधिकारी जगह का सर्वे करने के बाद पंचनामा तैयार करेंगे.
साथ ही उस पंचनामे के साथ 'जियो टैग' के साथ एक किसान की फोटो भी शामिल करेंगे. यह एंट्री ओरिजनल डॉक्यूमेंट्स में जोड़ना अनिवार्य होगा. इससे कागज पर आदेश जारी करके मामला बंद करने की परंपरा पर रोक लग सकेगी. साथ ही यह सुनिश्चित होगा कि सड़क वास्तव में नागरिकों के लिए खुली रहेगी.
पुणे डिविजनल कमिश्नर की अगुवाई में बनी एक रिसर्च कमेटी की तरफ से इस तरफ ध्यान आकर्षित किया गया था. कमेटी की रिपोर्ट के अनुसार कई बार अतिक्रमण हटाने या सड़कें साफ़ करने के आदेश तो दिए जाते हैं, लेकिन वास्तविक कार्रवाई का कोई आश्वासन नहीं मिलता. नई प्रक्रिया के तहत, मजिस्ट्रेट न्यायालय अधिनियम, 1906 (धारा 5) और महाराष्ट्र भूमि राजस्व संहिता, 1966 (धारा 143) के तहत दायर सड़क दावों के लागू होने के वैरीफिकेशन के लिए जियो-टैग की गई तस्वीरों से जुड़ा आदेश आया है.
इस नए नियम से ग्रामीण क्षेत्रों में सड़कों के स्थायी अधिकार सुनिश्चित होंगे. कार्यान्वयन स्थलों की जियो-टैग्ड तस्वीरें उपलब्ध होने से पारदर्शिता बढ़ेगी और भ्रष्टाचार पर अंकुश लगेगा् राज्य सरकार के इस निर्णय की सूचना राजस्व विभाग के उप सचिव संजय धारुरकर ने जारी की है. साथ ही ऐसे किसान जिनकी जमीन इन सब मसलों में फंस जाती है, उन्हें भी अब सुविधा हो सकेगी.
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