नेपाल से SAFTA (दक्षिण एशियाई मुक्त व्यापार क्षेत्र) समझौते के तहत जीरो ड्यूटी पर खाद्य तेल का आयात न केवल उत्तरी और पूर्वी भारत में समस्या बन रहा है, बल्कि ये अब दक्षिणी और मध्य भारत में दिक्कतें बढ़ा रहा है. इसी को लेकर कस्टम डिपार्टमेंट (सीमा शुल्क विभाग) द्वारा 18 मार्च को जारी अधिसूचना में निर्यातकों/आयातकों से रियायती शुल्क के तहत आयातित चीजों के लिए "मूल का सर्टिफिकेट" के बजाय "मूल का प्रमाण" देने को कहा है. इस अधिसूचना के बाद सॉल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (SEA) को उम्मीद है कि इससे नेपाल और अन्य सार्क देशों से खाद्य तेल के प्रवाह को कम करने में मदद मिलेगी.
SEA के सदस्यों को लिखे अपने मासिक पत्र में एसईए के अध्यक्ष संजीव अस्थाना ने कहा कि नेपाल से 'उत्पत्ति के नियमों' का उल्लंघन करते हुए भारत में रिफाइंड सोयाबीन तेल और पाम तेल की भारी मात्रा में आमद हो रही है. इससे घरेलू रिफाइनरों और तिलहन किसानों पर गंभीर प्रभाव पड़ रहा है, जिससे सरकार को राजस्व का बड़ा नुकसान हो रहा है. उन्होंने कहा कि जो कुछ धीरे-धीरे शुरू हुआ था, वह अब खतरनाक स्तर पर पहुंच गया है. इससे इन क्षेत्रों में वनस्पति तेल रिफायनिंग उद्योग के अस्तित्व को खतरा पैदा हो रहा है, बाजार विकृत हो रहे हैं और खाद्य तेलों पर उच्च आयात शुल्क का मकसद कमजोर हो रहा है.
एक अंग्रेजी अखबार 'द बिजनेस लाइन' की खबर के अनुसार, एसईए के अध्यक्ष संजीव अस्थाना ने कहा कि SEA ने प्रधानमंत्री और अन्य प्रमुख मंत्रियों से नेपाल और अन्य सार्क देशों से खाद्य तेलों के आयात को रेगुलेट करने के लिए हस्तक्षेप करने और जरूरी कार्रवाई करने का आग्रह किया है. उन्होंने कहा कि इसपर केंद्रीय वाणिज्य मंत्रालय ने सकारात्मक प्रतिक्रिया दी है और कार्रवाई का भी आश्वासन दिया है. अस्थाना ने कहा कि तिलहन आयात पर भारत की निर्भरता कम करने में रेपसीड और सरसों महत्वपूर्ण फसलें हैं. खाद्य तेलों में आत्मनिर्भरता हासिल करने और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा बताए गए ‘आत्मनिर्भर भारत’ के सपने को साकार करने के लिए विस्तार सेवाओं को मजबूत करना और सर्वोत्तम खेती के तरीकों पर किसानों को जागरूक करना जरूरी है.
उपज बढ़ाने के लिए SEA के सतत सरसों मॉडल फार्म (MMF) का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि 2020-21 में शुरू की गई यह पहल किसानों को उन्नत कृषि तकनीकों से लैस करने में सहायक रही है, जिससे उत्पादकता और लचीलापन बढ़ा है. भारत का सरसों उत्पादन 2020-21 में 86 लाख टन से बढ़कर 2023-24 में 116 लाख टन हो गया है. वहीं सरसों की खेती का रकबा भी सालाना बढ़ा है, जो 2020-21 में 67 लाख हेक्टेयर से बढ़कर 2023-24 में लगभग 94 लाख हेक्टेयर हो गया.
इस साल, सरसों मॉडल फार्म पहल का विस्तार मध्य प्रदेश में 750, उत्तर प्रदेश में 350 और राजस्थान में 900 खेतों में फ्रंटलाइन प्रदर्शनों के तहत 2,000 से अधिक खेतों तक हो चुका है. एमएमएफ ने बेहद अहम रूप से उपज में सुधार दिखाया है. अस्थाना ने कहा, "पारंपरिक खेती के तरीकों की तुलना में, बेहतर तकनीकों ने औसतन 20-25 प्रतिशत उपज में बढ़त दिखाई है. 2024-25 में लगभग 24 प्रतिशत की उपज में सुधार दर्ज किया गया है."
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