
चौधरी चरण सिंह वो शख्सियत रहे जिन्हें अक्सर “किसानों का नेता” तो कहा जाता है, लेकिन यह पहचान उन्हें किसी नारे या प्रचार से नहीं मिली. ये चौधरी साहब की पूरी जिंदगी की कमाई थी. वे भारत के सबसे महान किसान राजनेता, पांचवें और दुसरे गैर-कांग्रेसी प्रधानमंत्री रहे. गांधीवादी सांचे में ढले चरण सिंह सादगी, सदाचार और नैतिकता से ओतप्रोत व्यक्ति थे. आज चौधरी चरण सिंह की जयंती है. इस मौके पर हम आपको उनके जीवन से जुड़े एक रोचक किस्सा बता रहे हैं. चौधरी चरण सिंह की आत्मकथा “India’s Poverty and Its Solution” और उन पर लिखी दूसरी पुस्तकों में मिलता है, जो उनके सिद्धांतों और स्वभाव को बहुत साफ ढंग से सामने रखता है.
ये किस्सा उस समय का है जब चौधरी चरण सिंह उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री थे. एक दिन लखनऊ सचिवालय में बड़े-बड़े अधिकारियों की बैठक चल रही थी. एजेंडा था राज्य की कृषि नीति और नई सिंचाई परियोजनाएं. इस बैठक में मौजूद कई बड़े बाबू अंग्रेजी में फाइलें और आंकड़े तैयार करके लाए और उन्हें ही पढ़ रहे थे. बड़े-बड़े शब्द, जटिल योजनाएं और चमकदार प्रेजेंटेशन. इस बैठक में कागज पर सब कुछ बहुत सुंदर लग रहा था. लेकिन चरण सिंह पूरे ध्यान और खामोशी से सब सुनते रहे. बीच में उन्होंने किसी अधिकारी को नहीं टोका. अधिकारी भी शायद इस गलतफहमी में आ चुके थे कि चौधरी साहब उनकी बात से सहमत हैं.
लंबी बैठक के बाद जब सभी अधिकारी अपनी-अपनी बात रख चुके, तो चौधरी चरण सिंह ने बस एक लाइन कही, “इन फाइलों को बंद कर दीजिए और कल सुबह हम खेत चलेंगे.” अफसर हैरान थे. अगले दिन मुख्यमंत्री सच में उन अधिकारियों को लखनऊ से बाहर एक गांव ले गए. धूप तेज थी, खेतों में कीचड़ था और नहर किसी कच्ची रोटी की तरह अधूरी पड़ी थी. अब चौधरी चरण सिंह अपने ही अंदाज में बिना किसी औपचारिकता के एक किसान के पास जाकर बैठ गए. किसान का नाम रामदीन था. ये वही किसान था, जिसकी जमीन कागजों में ‘सिंचित क्षेत्र’ के रूप में दर्ज थी.
चरण सिंह ने उससे सीधा सवाल किया, “फसल कैसी है?”
रामदीन ने जवाब दिया, “साहब, फाइल में तो पानी है, खेत में नहीं.”
यह बात सुनकर चरण सिंह ने अधिकारियों की ओर देखा और कहा, “यही अंतर है आपके आंकड़ों और मेरी राजनीति में.” इस किस्से का जिक्र किताब में बहुत सादगी से आता है, लेकिन इसका असर गहरा है. चरण सिंह मानते थे कि भारत की असली गरीबी शहरों में नहीं, खेतों में बसती है और उसका हल भी वहीं से निकलेगा. वे अक्सर कहते थे कि अगर किसान मजबूत है, तो देश अपने आप मजबूत होगा. इसलिए वे उद्योग आधारित विकास मॉडल के बजाय कृषि आधारित अर्थव्यवस्था पर जोर देते थे.
चौधरी चरण सिंह ने भारत की सामाजिक और आर्थिक समस्याओं पर गहराई से सोचते हुए कई महत्वपूर्ण किताबें लिखीं. इन किताबों में उन्होंने खेती, छोटे किसानों, लघु उद्योगों और एक ज्यादा बराबरी वाले समाज की जरूरत को तर्क के साथ समझाया. अपनी सभी किताबों में चरण सिंह ने साफ कहा कि भारत की असली समस्या गरीबी है और इस गरीबी की जड़ गांवों में है. उन्होंने अधिकतर सारी किताबें अंग्रेजी भाषा में लिखीं. इसके पीछे उनका एक खास कारण था. वे चाहते थे कि उनके विचार देश के पढ़े-लिखे, शहरी और प्रभावशाली वर्ग तक पहुंचें, क्योंकि नीतियां बनाने का काम उसी वर्ग के हाथ में था. उनका मानना था कि अगर शहरी अभिजात्य वर्ग गांव और किसान की असली स्थिति को समझेगा, तभी नीतियों में बदलाव आएगा.
ये भी पढ़ें-