
भारत में हर साल 23 दिसंबर को पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह के जन्मदिवस को 'किसान दिवस' के रूप में मनाया जाता है. उन्होंने अपने जीवन में किसानों के लिए जमीनी स्तर पर बहुत काम किया था, यही वजह है कि वह ‘किसानों के मसीहा’ के रूप में जाने जाते हैं. ऐसे में जब भी किसानों की बात होती है तो चौधरी चरण सिंह का नाम बड़े ही सम्मान के साथ लिया जाता है. इस बार ‘किसान दिवस स्पेशल’ में हम आपको करवा रहे हैं दुनियाभर के खेतों की सैर और दुनियाभर के किसानों की इनोवेशन के बारे में बता रहे हैं. आज इस खास पेशकश में जानिए चीन के युन्नान प्रांत के किसानों की कहानी, जो यह बताती है कि कैसे जमीन के छोटे-छोटे हिस्सों से, कठिन हालात में भी अच्छे से टिकाऊ पैदावार ली जा सकती है…
दक्षिण चीन के युन्नान प्रांत में जब पहाड़ों की ढलानों पर नजर जाती है तो वहां खेत नजर नहीं आते, बल्कि सीढ़ियों जैसी अनगिनत परतें दिखती हैं. इन परतों में पानी चमकता है और उसी पानी में लहलहाती है धान की फसल. यह कोई आधुनिक इंजीनियरिंग प्रोजेक्ट नहीं है, बल्कि 1300 साल से चली आ रही किसानों की समझ का नतीजा है. यही वजह है कि युन्नान प्रांत की ‘हानी राइस टैरेस’ को यूनेस्को (UNESCO) ने विश्व धरोहर स्थल (World Heritage Site) का दर्जा दिया है.
UNESCO ने इस क्षेत्र को ‘कल्चरल लैंडस्केप ऑफ होंगहे हानी राइस टैरेस’ (Cultural Landscape of Honghe Hani Rice Terraces) के नाम से विश्व धरोहर घोषित किया है. UNESCO के मुताबिक, यह इलाका सिर्फ खेत नहीं है, बल्कि जंगल, पानी, गांव और खेती का एक जुड़ा हुआ सिस्टम है, जहां करीब 1300 साल से लगातार खेती की जा रही है.
खास बात यह है कि यह किसी एक दौर या योजना की देन नहीं, बल्कि पीढ़ी दर पीढ़ी विकसित हुआ खेती का एक शानदार मॉडल है. यहां पर खेती न रुकी, न बदली, बल्कि समय के साथ खुद को ढालती चली गई.
अक्सर ऐसी ऐतिहासिक धरोहर या विरासत को किसी राजा या डायनेस्टी से जुड़ा हुआ पाया जाता है, लेकिन हानी राइस टैरेस की कहानी अलग है. इसे किसी सम्राट या राजवंश ने शुरू नहीं किया. इस खेती की नींव ‘हानी समुदाय’ ने रखी. हानी समुदाय के लोग सदियों पहले युन्नान के पहाड़ी इलाकों में आकर बस तो गए, लेकिन उनके सामने सबसे बड़ी चुनौती अनाज उगाने की थी, क्योंकि वहां न खेती के लायक ज्यादा समतल जमीन थी और ऊपरे से भारी बारिश भी बड़ी चुनौती थी.
ऐसे में वे न खेत छोड़ सकते थे, न ही पहाड़. इसी मजबूरी से सीधी नुमा खेतों का इनोवेशन हुआ. लोगों ने पहाड़ों को काटकर सीढ़ीनुमा खेत बनाए और इसमें धान की खेती शुरू की. अलग-अलग चीनी राजवंश आते-जाते रहे, लेकिन यह खेती किसानों के हाथ में ही रही. किसी शासन ने इसे शुरू नहीं किया, बस यह मॉडल चलता रहा और आज भी यहां हजारों लोग खेती कर अपना पेट भर रहे हैं.
हानी राइस टैरेस आज भी ज्यादातर बिना मशीन के संचालित होती है. इसकी सबसे बड़ी वजह है- खेतों की ढलान और उनका आकार. छोटे-छोटे टैरेस पर ट्रैक्टर या बड़ी मशीन चला पाना संभव ही नहीं है. इसलिए यहां धान की रोपाई और कटाई हाथ से ही होती है. साथ ही गांव के लोग मिलकर मेड़ों की मरम्मत करते हैं.
यहां खेती अकेले किसान का काम नहीं, बल्कि सामूहिक जिम्मेदारी है. जब नहर टूटती है या पानी का रास्ता बिगड़ता है तो पूरा गांव उसे ठीक करता है. यही सामूहिक श्रम इस खेती को जिंदा रखता है.
हानी टैरेस की सबसे बड़ी ताकत है इसका- जल प्रबंधन. इस सिस्टम की शुरुआत पहाड़ों के ऊपरी हिस्सों में मौजूद जंगलों से होती है. ये जंगल बारिश के पानी को रोकते हैं, जिससे पानी सीधे बहकर खत्म नहीं होता, बल्कि धीरे-धीरे नीचे की ओर रिसता है.
इसके बाद पानी पतली नालियों और चैनलों के जरिए टैरेस तक पहुंचता है. पूरी सिंचाई गुरुत्वाकर्षण के सहारे होती है.
यहां न पंप, न बिजली, न मोटर- किसी उपकरण का इस्तेमाल नहीं होता. यहां हर टैरेस में पानी रुकता भी है और आगे भी बढ़ता है. इससे नीचे के खेतों तक भी बराबर पानी पहुंचता है. यह व्यवस्था मिट्टी के कटाव को रोकती है और बाढ़ या सूखे दोनों से सुरक्षा देती है. आज जब पानी का संकट दुनियाभर में बड़ा मुद्दा है, तब यह 1300 साल पुराना सिस्टम जल संरक्षण की अनोखी सीख देता है.
अब तक बात हुई कि क्षेत्र में कब से खेती शुरू हुई और कैसे इसका विकास हुआ. अब जानते हैं कि आखिर इस इलाके में किस तरह की धान किस्में उगाई जाती हैं. Food and Agriculture Organization (FAO) की 2010 में बनी Globally Important Agricultural Heritage Systems (GIAHS) रिपोर्ट के मुताबिक, हानी टैरेस में पहले 195 स्थानीय धान की किस्में पाई जाती थीं. लेकिन इनमें से लगभग 48 किस्में आज भी यहां उगाई जाती हैं. यहां मुख्य रूप से लाल चावल की पारंपरिक किस्में उगाई जाती हैं, जाे पोषण से भरपूर मानी जाती हैं. इनमें आयरन और फाइबर ज्यादा होता है. ये किस्में स्थानीय जलवायु के हिसाब से विकसित होने के कारण कम संसाधनों में भी अच्छी पैदावार देती हैं.
हानी राइस टैरेस हजारों हेक्टेयर में फैली हुई है और यहां हजारों की संख्या में किसान परिवार सीधे तौर पर खेती पर निर्भर हैं. आज भी धान यहां की स्थानीय अर्थव्यवस्था का आधार है. हाल के वर्षों में यहां पर्यटन भी बढ़ा है.