केंद्र सरकार इथेनॉल के उत्पादन के लिए डिस्टिलरी को 28 रुपये प्रति किलो की दर से चावल बेचेगी. फूड कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया यानी कि FCI के जरिये डिस्टिलरी को चावल की खेपी दी जाएगी. दूसरी ओर सरकार को इथेनॉल का रेट अभी तय करना बाकी है. इथेनॉल के दाम 58.50 रुपये प्रति लीटर के दर में कुछ बदलाव होने की संभावना है और इसमें वृद्धि हो सकती है. इथेनॉल का मौजूदा रेट तब फिक्स किया गया था जब एफसीआई डिस्टिलरियों को सब्सिडी रेट 20 रुपये किलो की दर से चावल बेच रहा था.
इस मामले में एक विवाद तब देखा गया जब केंद्र सरकार ने कर्नाटक को चावल सप्लाई करने से मना कर दिया. इसी के साथ बिना किसी पूर्व घोषणा के इथेनॉल के लिए एफसीआई की सप्लाई भी रोक दी गई.
यहां ध्यान रखने वाली बात है कि डिस्टिलरी के लिए चावल का रेट ओपन मार्केट सेल स्कीम (OMSS) के मुताबिक निर्धारित किया गया है. हालांकि खरीदारों की अन्य श्रेणी जैसे कि प्राइवेट कंपनियां, कोऑपरेटिव, छोटे प्राइवेट व्यापारी, आंत्रप्रेन्योर, इंडिविजुअल, नेफेड, एनसीसीएफ, केंद्रीय भंडार और सामुदायिक किचन के लिए चावल का भाव 2400 रुपये से 2800 रुपये प्रति क्विंटल तक है.
आधिकारिक सूत्रों ने बताया कि मक्का की कीमतों में लगातार बढ़ोतरी और पोल्ट्री उद्योग द्वारा इस बारे में जताई गई चिंताओं के कारण अनाज से चलने वाली डिस्टिलरियों से एफसीआई चावल की मांग आ रही है. सूत्रों ने बताया कि सरकार डिस्टिलरी की ऑपरेशन क्षमता को लेकर भी चिंतित है, ताकि इथेनॉल ब्लेंडिंग का काम रुके नहीं. उन्होंने कहा कि एफसीआई ने 20 रुपये प्रति किलोग्राम की दर से चावल जारी करना बंद किया, उसके बाद कई डिस्टिलरियों ने जुलाई 2023 में ऑपरेशन बंद कर दिया था. इससे सरकार को इथेनॉल खरीद पर बोनस की घोषणा करने के लिए मजबूर होना पड़ा, ताकि वे अपनी डिस्टिलरियों को फिर से शुरू कर सकें.
अनाज आधारित इथेनॉल डिस्टिलरी के लिए मक्का (मकई) पर केंद्र सरकार के फोकस के कारण मोटे अनाज की कीमतें रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गईं. इसके बाद दो समस्याएं पैदा हुईं. एक, इससे पोल्ट्री और स्टार्च इंडस्ट्री के लिए इनपुट लागत बढ़ गई. दूसरा, इससे मक्का का निर्यात ठप हो गया. हालांकि इस बार उत्पादन को लेकर एक अच्छी खबर है कि मक्के की पैदावार बढ़ सकती है. इससे मक्के के भाव को नियंत्रित रखने में मदद मिलेगी.
चालू फसल वर्ष में जून तक खरीफ सीजन में मक्का का उत्पादन रिकॉर्ड 240 लाख टन (एमटी) से अधिक रहने का अनुमान है, जबकि 2024 में यह 220 लाख टन रहने का अनुमान है. पिछले फसल वर्ष में मक्का का उत्पादन घटकर 370 लाख टन रह गया था, जबकि 2022-23 में यह 380 लाख टन था. उत्पादन में गिरावट का असर मक्के के बढ़े रेट पर देखा जा रहा है.