Nano Urea: पारंपरिक यूरिया के लिए ठोकरें खाने को तैयार, मगर नैनो यूरिया से क्यों परहेज कर रहे किसान?

Nano Urea: पारंपरिक यूरिया के लिए ठोकरें खाने को तैयार, मगर नैनो यूरिया से क्यों परहेज कर रहे किसान?

Nano Urea: नैनो यूरिया का उद्देश्य पर्यावरण के अनुकूल और पारंपरिक यूरिया की खपत को कम करने वाला विकल्प बनना था, लेकिन भारत के किसानों में इसको लेकर अभी भी असंतोष बना हुआ है. एक तरह दूसरे देशों में नैनो यूरिया एक्सपोर्ट हो रहा है, वहीं खुद घरेलू बाजार में इसका इस्तेमाल कम से कम हो रहा है. आज नैनो यूरिया को लेकर इन्हीं चिंताओं पर हम बात करने वाले हैं.

नैनो यूरिया को बताया कृषि मंत्रालय ने किसानों के लिए प्रभावी नैनो यूरिया को बताया कृषि मंत्रालय ने किसानों के लिए प्रभावी
स्वयं प्रकाश निरंजन
  • Noida ,
  • Aug 12, 2025,
  • Updated Aug 12, 2025, 10:12 AM IST

साल 2022 में तत्कालीन रसायन और उर्वरक मंत्री डॉ. मनसुख मांडविया ने राज्यसभा कहा था कि नैनो यूरिया पूरी तरह से स्वदेशी रिसर्च है. यह हमारे देश के किसानों के लिए है और पूरी दुनिया इसकी तरफ देख रही है. मगर आज दुनिया तो नैनो यूरिया ले रही है, इसकी ड‍िमांड दूसरे देशों से भी आ रही है और इफको इसका बड़े स्तर पर एक्सपोर्ट भी कर रही है. मगर खुद हमारे ही देश के किसान नैनो यूरिया से कन्नी काट रहे हैं. ना तो किसान इसे इस्तेमाल में रहे हैं और ना ही इसकी प्रभावशीलता पर भरोसा कर पा रहे हैं. सवाल है कि आखिर भारत की इतनी बड़ी खोज जो कृषि जगत में किसी क्रांति की तरह देखी जाती है, वह अपने ही किसानों का भरोसा जीतने में कहां चूक गई, इसी बात का जवाब हम आज बता रहे हैं.

नैनो यूरिया की शुरुआत

दरअसल, इंडियन फार्मर्स फर्टिलाइजर कोऑपरेटिव लिमिटेड (IFFCO) ने नैनो यूरिया को विकसित किया है. इफको के पास इसका पेटेंट है. 31 मई 2021 को इफको ने नैनो यूर‍िया को भारत में लॉन्च क‍िया था. इसको लेकर दावा है क‍ि नैनो यूर‍िया की एक 500 मिली की बोतल में 40,000 पीपीएम नाइट्रोजन होता है. यानी कि आधा लीटर नैनो यूरिया एक सामान्य यूरिया की बोरी के बराबर नाइट्रोजन पोषक तत्व प्रदान करता है. इसे लॉन्च करते हुए इफको ने दावा क‍िया था कि इसे हर तरह की टेस्टिंग से गुजारा गया है. IFFCO के मुताबिक, नैनो यूरिया की प्रभावशीलता जांचने के लिए इसमें 94 फसलों पर लगभग 11,000 कृषि क्षेत्र परीक्षण (एफएफटी) किए गए. इन नतीजों के बाद उन फसलों की उपज में औसतन 8 प्रतिशत तक की वृद्धि देखने को मिली. IFFCO की एक रिपोर्ट के मुताबिक, 25 से अधिक देशों में नैनो यूरिया का एक्सपोर्ट हो रहा है. मगर घरेलू किसान इसको लेकर सवाल उठा रहे हैं.

नैनो यूरिया से क्यों बच रहे किसान?

  • जहां एक ओर IFFCO का ये दावा है कि नैनो यूरिया के इस्तेमाल से फसलों की उपज में औसतन 8 प्रतिशत की पैदावर बढ़ सकती है, वहीं दूसरी ओर पंजाब कृषि विश्वविद्यालय (PAU) ने जब नैनो यूरिया पर दो साल तक टेस्टिंग की तो पाया कि इससे गेहूं की पैदावार 21.6% और धान की उपज में 13% तक गिरावट आई है. इसके अलावा नैनो यूरिया के इस्तेमाल के कारण अनाज में नाइट्रोजन की मात्रा, जो प्रोटीन से जुड़ी है, वह भी घटी. ये गेहूं में 11.5% और चावल में 17% तक कम हुई है.
  • उपज के अलावा इसका दूसरा कारण है लागत. सच बात तो है कि भारतीय किसान खेती की लागत को लेकर बेहद संवेदनशील होता है. अब नैनो यूरिया इसी सबसे अहम कारण में पीछे रह जाता है. दरअसल, एक पारंपरिक यूरिया खाद की बोरी जितने की आती है, नैनो यूरिया की 500 एमएल की बोतल भी लगभग उसी दाम में आती है. नैनो यूरिया की 500 मिलीलीटर की एक बोतल की कीमत 240 रुपये है और पारंपरिक यूरिया के 45 किलो की बोरी भी लगभग 267 रुपये की पड़ेगी.
  • मगर नैनो यूरिया को खेत में डालने के लिए स्प्रे करना होगा. इसके लिए किसान को अतिरिक्त मजदूरी और श्रम लगाना पड़ेगा. ऐसे में एक दम नई चीज पर अतिरिक्त लागत और श्रम लगाने से किसान सीधे तौर पर परहेज करते हैं. जबकि, नैनो यूरिया से उपज में महज 5 से 8 प्रतिशत की ही बढ़त मिलने वाली है, जो कि साफ तौर पर पारंपरिक खाद के मुकाबले नैनो यूरिया की 10 गुनी महंगी कीमत को उचित नहीं ठहरा पाती.

किसानों के खराब अनुभव

मध्य प्रदेश, हरियाणा समेत कई राज्यों में नैनो यूरिया का इस्तेमाल कर चुके किसान बताते हैं कि इसके प्रयोग के बाद भी उपज में उन्हें कोई खास बढ़त नहीं दिखी. जिसके बाद आखिरकार वे पारंपरिक यूरिया पर ही लौटे. द प्रिंट की एक रिपोर्ट के मुताबाकि, हरियाणा के करनाल के 32 वर्षीय गेहूं किसान बलविंदर सिंह ने पिछले साल ही नैनो यूरिया का अपने खेत में उपयोग किया था. मगर उनकी गेहूं की फसल पर इसका कोई खास असर नहीं दिखा. ऊपर से उन्हें नैनो यूरिया का उपयोग करना भी महंगा पड़ा था. इतना ही नहीं कुछ समय पहले राजस्थान में भी किसान संघों ने नैनो यूरिया को लेकर आवाज उठाई थी. किसान संघ का कहना था कि किसानों को जबरदस्ती नैनो यूरिया खरीदना पड़ रहा है. इससे छोटे किसानों पर आर्थिक बोझ बढ़ रहा है.

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