E 20: एक ही तरह के 'जुर्म' पर क्यों सिस्टम ने धान को विलेन बनाया और इथेनॉल को हीरो?

E 20: एक ही तरह के 'जुर्म' पर क्यों सिस्टम ने धान को विलेन बनाया और इथेनॉल को हीरो?

Ethanol Production: जब पानी बचाने को लेकर इतनी चिंता है तो इथेनॉल बनाने पर इतना जोर क्यों? वो भी तब जब कई सूबों में जल स्‍तर पाताल में चला गया है, जो भविष्‍य की खेती और पेयजल के लिए चिंता का सबब बना हुआ है. जान‍िए एक लीटर इथेनॉल बनाने में क‍ितना पानी खर्च होता है और क्या इथेनॉल भव‍िष्य में एक संकट बन जाएगा? 

ETHANOLETHANOL
ओम प्रकाश
  • New Delhi ,
  • Aug 12, 2025,
  • Updated Aug 12, 2025, 10:57 AM IST

इथेनॉल-मिश्रित पेट्रोल (E 20) इन द‍िनों चर्चा में है. केंद्र सरकार के कई मंत्री इथेनॉल के फायदे गिना रहे हैं. वो इसे ग्रीन ईंधन बता रहे हैं, लेकिन क्या सच में ऐसा है? यह सवाल इसलिए उठ रहा है क्योंकि इथेनॉल बनाने में भारी मात्रा में पानी खर्च होता है. इथेनॉल पर लहालोट मंत्री तो इस बात का जिक्र नहीं कर रहे हैं, लेकिन इसकी तस्दीक सरकार के थिंक टैंक नीति आयोग ने कर दी है. जिसकी एक रिपोर्ट में बताया गया है कि एक लीटर इथेनॉल बनाने में करीब 3000 लीटर पानी खर्च हो जाता है. इसका मतलब यह है कि इसे बनाने के लिए पानी का अंधाधुंध इस्तेमाल होगा, वो भी तब जब देश के कई सूबों में लोग गर्मी का सीजन आते ही जल संकट से त्राहिमाम-त्राहिमाम करते हैं. लोगों को पीने के लिए ट्रेन से पानी पहुंचाना पड़ता है. कुल मिलाकर इथेनॉल भू-जल दोहन के ल‍िहाज से महंगा सौदा साब‍ित हो सकता है. यही नहीं इथेनॉल, सरकार की उस मुह‍िम का बैंड बजा देगा ज‍िसमें खेती के जरिए पानी बचाने का ज्ञान द‍िया जा रहा है. 

सवाल यह भी है क‍ि पानी की खपत को लेकर सरकार किसानों और कंपन‍ियों में इतना भेदभाव क्यों कर रही है? एक किलो चावल पैदा करने में 3000 लीटर पानी खर्च होने की वजह से धान की खेती और किसान विलेन बना दिए गए हैं और 3000 लीटर पानी से ही एक लीटर बनने वाला इथेनॉल और उसे बनाने वाली चीनी मिलों को हीरो बना दिया गया है. एक तरफ सरकार धान की खेती कम करना चाहती है तो दूसरी ओर इथेनॉल को प्रमोट किया जा रहा है. क्या इससे भू-जल को लेकर च‍िंता और नहीं बढ़ेगी?

साइड इफेक्ट का जिम्मेदार कौन होगा?

कृष‍ि नीत‍ि व‍िशेषज्ञ देव‍िंदर शर्मा कहते हैं क‍ि जिस समय पंजाब-हरियाणा में धान नहीं होता था उस समय सरकार को धान की जरूरत थी, इसलिए किसानों को धान की खेती बढ़ाने के लिए मजबूर किया गया. लेकिन अब किसानों को दोष दिया जा रहा है कि इससे पानी का दोहन हो रहा है. ऐसे में उन लोगों को कब सजा होगी जिन्होंने धान की खेती को प्रमोट किया था. इथेनॉल के साथ भी ऐसा ही होने वाला है. जब इसके दुष्परिणाम सामने आएंगे तब मैं जानना चाहता हूं कि उसकी जिम्मेदारी कौन लेगा. तब किसको विलेन बनाया जाएगा. क्या तब कोई मंत्री या वैज्ञान‍िक इसके ल‍िए ज‍िम्मेदार बताया जाएगा. जब तक हम क‍िसी ऐसे प्रोडक्ट के दुष्परिणाम की जवाबदेही नहीं तय करेंगे तब तक ऐसा ही होगा कि पैसा कोई और कमाएगा, विलेन कोई और बनेगा. सरकार को बताना चाहिए कि इथेनॉल बनाने के लिए करोड़ों लीटर पानी कहां से आएगा?

धान बदनाम, क्या करे किसान

पंजाब, हरियाणा सहित कई सूबों में भू-जल स्तर लगातार नीचे जा रहा है. इसके लिए धान की खेती को जिम्मेदार बताया जा रहा है. इसलिए बीजेपी के शासन वाले हरियाणा में बाकायदा 'मेरा पानी-मेरी विरासत' नामक एक स्कीम चल रही है, जिसके तहत धान की खेती छोड़ने पर किसानों को 8000 रुपये प्रति एकड़ की दर से मुआवजा दिया जा रहा है. जल संकट से जूझ रहे पंजाब ने भी इसी तर्ज पर एक स्कीम शुरू की है. सवाल यह है कि जब पानी बचाने को लेकर इतनी चिंता है तो इथेनॉल बनाने पर इतना जोर क्यों? वो भी तब जब कई सूबों में जल स्‍तर पाताल में चला गया है, जो भविष्‍य की खेती और पेयजल के लिए चिंता का सबब बना हुआ है. 

इथेनॉल पर नीति आयोग की रिपोर्ट

नीत‍ि आयोग ने 'रोडमैप फॉर इथेनॉल ब्लेंडिंग इन इंडिया 2020-2025' नामक एक रिपोर्ट तैयार की है, जिसमें इथेनॉल बनाने में पानी के इस्तेमाल का जिक्र है. इसमें कहा गया है कि गन्ना एक जल-प्रधान फसल है. औसतन, एक टन गन्ने से 100 किलोग्राम चीनी और 70 लीटर इथेनॉल प्राप्त किया जा सकता है. गन्ने से एक किलोग्राम चीनी बनाने के लिए 1600 से 2100 लीटर पानी की जरूरत पड़ती है. इसी तरह चीनी से एक लीटर इथेनॉल बनाने के लिए 3000 लीटर पानी की आवश्यकता होती है. अनुमान है कि गन्ना और धान मिलकर देश के 70 फीसदी सिंचाई जल का उपयोग करते हैं.

पानी बचाने की जरूरत को ध्यान में रखते हुए, किसानों को उचित प्रोत्साहन देकर गन्ने के कुछ क्षेत्र को कम जल-प्रधान फसलों की ओर शिफ्ट करने की सलाह दी जाती है. रिपोर्ट में यह भी साफ क‍िया गया है कि इथेनॉल के लिए चीनी अभी भी सबसे लाभदायक खाद्य फसल बनी हुई है, भले ही इसमें प्रति एकड़ पानी की खपत सबसे अधिक होती है. जबकि अनाजों में, मक्का इथेनॉल उत्पादन के लिए सबसे कम पानी की खपत वाली फसल है. 

सरकार ने गिनाए फायदे

लोकसभा सदस्य बाबू सिंह कुशवाहा के एक सवाल के जवाब में पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस राज्य मंत्री सुरेश गोपी ने इथेनॉल को ग्रीन ईंधन बताते हुए कहा कि यह विदेशी मुद्रा की बचत करते हुए कच्चे तेल पर आयात निर्भरता को कम करता है. साथ ही घरेलू कृषि क्षेत्र को बढ़ावा देता है. उन्होंने इसके फायदे गिनाए हैं. 

  • इथेनॉल ब्लेंडिंग पेट्रोल (ईबीपी) कार्यक्रम की वजह से इथेनॉल आपूर्ति वर्ष 2014-15 से जून 2025 तक 1,40,000 करोड़ रुपये से अधिक की विदेशी मुद्रा की बचत हुई.
     
  • लगभग 717 लाख मीट्रिक टन शुद्ध सीओ 2 में कमी आई और 238 लाख मीट्रिक टन से अधिक कच्चे तेल के रिप्लेसमेंट के अलावा किसानों को 1,21,000 करोड़ रुपये से अधिक का शीघ्र भुगतान हुआ है.

कब समझेंगे पानी की कीमत?

बहरहाल, अगर एक लीटर पानी की वैल्यू को 10 पैसे ही माना जाए तो भी एक लीटर इथेनॉल बनाने में 300 रुपये का पानी खर्च हो रहा है. जबक‍ि इतने कीमती पानी से बनने वाले इथेनॉल की वैल्यू अधिकतम 65 रुपये प्रत‍ि लीटर ही है. जब पानी मुफ्त में म‍िल रहा हो तो प्रकृत‍ि की फ‍िक्र भला कौन करेगा. पानी बचाने का भाषण दूसरे लोगों के ल‍िए तैयार होगा. असल में पानी की कीमत तो महाराष्ट्र के उन गांवों में रहने वालों को पता होगी जहां एक घड़ा भरने के ल‍िए मह‍िलाओं को पैदल दो-दो क‍िलोमीटर दूर जाना पड़ता है.

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