
भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर (BARC) जब हम आपके सामने इसका जिक्र करते हैं तो आपके दिमाग में सबसे पहला ख्याल परमाणु हथियार का आता होगा या फिर न्यूक्लियर पावर प्लांट्स की तरफ ध्यान जाता होगा. लेकिन जब हम आपको यह बताएंगे कि इसी बार्क में अब वैज्ञानिक केले की किस्मों को डेवलप कर रहे हैं तो हो सकता है कि आपको कुछ सेकेंड के लिए हंसी आए या फिर आप हैरान रह जाएं और यह सच है. बार्क की तरफ से बुधवार को बताया गया है कि उसने ‘कावेरी वामन’ नामक भारत की पहली म्यूटेंट केला किस्म डेवलप की है. साथ ही सेंटर ने इस किस्म से किसानों को क्या फायदा होगा, इस बारे में भी सेंटर ने बताया है.
कावेरी वामन वह किस्म है जो आकार में छोटी है और यह तटीय क्षेत्रों में चलने वाली तेज हवाओं को सहने में सक्षम है. ट्रॉम्बे बनाना म्यूटेंट-9 (TBM-9) को हाल ही में भारत सरकार द्वारा ‘कावेरी वामन’ के तौर पर जारी करने का नोटिफिकेशन जारी किया है. बार्क की तरफ से जारी एक आधिकारिक बयान में कहा गया है, 'यह एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है क्योंकि कावेरी वामन न केवल भारत की पहली म्यूटेंट केला किस्म है, बल्कि BARC की तरफ से विकसित और जारी की गई पहली फ्रूट क्रॉप भी है.' कावेरी वामन के साथ बार्की की तरफ से जारी की गई उन्नत फसल किस्मों की कुल संख्या अब 72 हो गई है.
डॉक्टर अजीत कुमार मोहंती जो एटॉमिक एनर्जी विभाग के सेक्रेटरी और एनर्जी कमीशन के चेयरमैन हैं, उन्होंने कहा कि TBM-9 का जारी होना भारत में बागवानी फसलों के सुधार में आयोनाइजिंग रेडिएशन के प्रयोग के जरिये से एक क्रांतिकारी कदम है. वहीं बार्क के डायरेक्टर विवेक भासिन ने बताया कि गामा किरणों की तरफ से म्युटाजेनेसिस ने नई फसल किस्में विकसित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. यह सस्टेनेबल या टिकाऊ कृषि के लिए काफी जरूरी है. उन्होंने कहा कि TBM-9 का जारी होना उन किसानों के लिए एक वरदान साबित होगा, जो आर्थिक तौर पर महत्वपूर्ण ग्रांड नैने किस्म के केले की खेती करते हैं.
उन्होंने यह भी कहा कि यह विकास दर्शाता है कि BARC का म्यूटेशन ब्रीडिंग कार्यक्रम अब पारंपरिक फसलों से आगे बढ़कर फलों और बाकी वनस्पतिक रूप से प्रजनित पौधों तक विस्तार कर चुका है. तमिलनाडु के तिरुचिरापल्ली स्थित भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद–नेशनल रिसर्च सेंटर फॉर बनाना (ICAR-NRCB) के साथ एक सहयोगी साझेदारी में विकसित की गई ‘कावेरी वामन’ किस्म, लोकप्रिय और बड़े पैमाने पर उगाई जाने वाली केले की किस्म 'ग्रांड नेन' को गामा रेडिएशन से म्यूटाजेनाइज करके हासिल की गई है.
कई वर्षों की स्क्रीनिंग और कड़े फील्ड ट्रायल्स के बाद, टीबीएम-9, जिसने पैतृक किस्म की तुलना में कई बेहतर कृषि संबंधी विशेषताएं दिखाईं, को रिलीज के लिए चुना गया. BARC की तरफ से बताया गया है कि पैतृक किस्म की तुलना में, कावेरी वामन का एक मुख्य फायदा इसका छोटा कद है, जिससे ये पौधे झुकने (यानी तने का झुकना या टूटना) के लिए बहुत ज्यादा प्रतिरोधी होते हैं. यह समुद्र तट के किनारे हवा वाले इलाकों में उगने वाले लंबे केले के पौधों के साथ एक बड़ी समस्या है.
आम तौर पर, बांस या लकड़ी के डंडों का इस्तेमाल पेड़ को गिरने से बचाने के लिए सहारे के तौर पर किया जाता है. इसमें कहा गया है कि नई वैरायटी छोटी है और गिरने से रोकती है, इसलिए सहारे जरूरी नहीं हैं, जिससे इनपुट कॉस्ट में काफी कमी आती है. कावेरी वामन का मैच्योरिटी पीरियड पेरेंट वैरायटी से डेढ़ महीने कम है. इससे कम समय में कटाई हो जाती है. इन फायदों के अलावा, नई वैरायटी के केले के फल में पेरेंट ग्रांडे नाइन वैरायटी की सभी खास ऑर्गेनोलेप्टिक खासियतें बनी रहती हैं. साथ ही कावेरी वामन ज्यादा डेंसिटी वाले प्लांटेशन के साथ-साथ टेरेस गार्डनिंग के लिए भी सही है, ये खूबियां कमर्शियल और घरेलू खेती दोनों में मदद करती हैं.
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