Bamboo Farming in India: बांस की खेती बनी किसानों की पसंद, सरकार भी दे रही है सब्सिडी

Bamboo Farming in India: बांस की खेती बनी किसानों की पसंद, सरकार भी दे रही है सब्सिडी

कम मेहनत और लंबे दिनों तक आमदनी के कारण बांस की खेती तेजी से लोकप्रिय हो रही है. प्रति एकड़ सालाना 1 लाख रुपये तक की कमाई संभव, सरकार ‘राष्ट्रीय बांस मिशन’ के तहत पौधों की लागत पर 50% तक सब्सिडी दे रही है.

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रवि कांत सिंह
  • New Delhi ,
  • Nov 13, 2025,
  • Updated Nov 13, 2025, 3:53 PM IST

देश में बांस की खेती तेजी से लोकप्रिय होती जा रही है. इसकी वजह सिर्फ मुनाफा नहीं बल्कि इसका पर्यावरणीय लाभ और कम मेहनत वाली खेती का मॉडल भी है. बांस ऐसी फसल है जो न मौसम की मार झेलती है, न मिट्टी की क्वालिटी पर ज्यादा निर्भर होती है और न ही इसे बार-बार खाद या सिंचाई की जरूरत होती है. यही वजह है कि अब देशभर के किसान, खासकर पूर्वोत्तर और मध्य भारत के क्षेत्रों में बांस की खेती को बड़े पैमाने पर अपनाने लगे हैं.

कम लागत, ज्यादा मुनाफा

बांस की खेती को किसानों के लिए ‘लॉन्ग-टर्म इनकम’ (दीर्घकालिक आमदनी) का जरिया माना जा रहा है. विशेषज्ञों की मानें तो बांस के पौधों को पकने में तीन से पांच साल लगते हैं. इसके बाद प्रति एकड़ सालाना औसतन 1.5 लाख से 3 लाख रुपये तक की आमदनी संभव है.

कुछ सफल उदाहरणों में देखा गया है कि 10 एकड़ के बांस बागान से जीवनकाल में 60 से 80 लाख रुपये तक की कमाई हो सकती है. यह कमाई पौधों की किस्म, बाजार की मांग और भौगोलिक स्थिति के अनुसार बदल सकती है.

कैसे होती है कमाई?

खेती के शुरुआती 4 वर्षों में आमदनी कम रहती है, लेकिन पांचवें साल के बाद हर साल लगातार कटाई की जा सकती है.

  • एक एकड़ से औसतन 15 से 20 टन बांस की पैदावार होती है.
  • बांस का बाजार भाव क्वालिटी और क्षेत्र के हिसाब से 3,000 से 5,000 रुपये प्रति टन तक है.
  • अगर 4,000 रुपये प्रति टन का औसत और 15 टन की उपज मानी जाए तो प्रति एकड़ सालाना 60,000 रुपये से लेकर 1 लाख रुपये तक की कमाई आसानी से हो सकती है.
  • समय के साथ जैसे-जैसे पौधे पकते हैं, पैदावार और मुनाफा दोनों बढ़ते हैं.

कितनी होती है लागत?

बांस की खेती में शुरुआती निवेश बहुत ज्यादा नहीं है. एक एकड़ में लगभग 60,000 से 95,000 रुपये तक का खर्च आता है.

  • एक एकड़ में करीब 400 से 500 पौधे लगाए जाते हैं.
  • प्रति पौधा 50 से 100 रुपये तक की लागत आती है.
  • खेत तैयार करने, गड्ढे खोदने, मजदूरी और शुरुआती खाद पर खर्च जुड़कर यह राशि तय होती है.
  • पहले तीन सालों में थोड़ी देखभाल, सिंचाई और जैविक खाद की जरूरत होती है, लेकिन इसके बाद पौधे खुद ब खुद बढ़ते रहते हैं और बार-बार कटाई संभव होती है.

सरकारी मदद और योजनाएं

बांस की खेती को बढ़ावा देने के लिए केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय बांस मिशन (National Bamboo Mission) शुरू किया है. इस मिशन के तहत किसानों को पौधे लगाने के लिए आर्थिक सहायता और तकनीकी मदद दी जाती है.

  • सरकार पौधे की लागत पर 50% तक सब्सिडी देती है.
  • मिशन के तहत किसानों को प्रशिक्षण, बाजार से जोड़ने और बांस आधारित उद्योगों को प्रोत्साहन देने की व्यवस्था है.
  • विशेष रूप से पूर्वोत्तर राज्यों में यह योजना काफी सफल रही है, जहां बांस की खेती पारंपरिक रूप से प्रचलित है.

पर्यावरण के लिए वरदान

बांस को दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ने वाली घास माना जाता है. यह पौधा वातावरण से बड़ी मात्रा में कार्बन डाइऑक्साइड सोखता है और ऑक्सीजन छोड़ता है. पर्यावरण विशेषज्ञों के अनुसार, बांस की खेती कार्बन क्रेडिट और जलवायु संरक्षण के क्षेत्र में बड़ा योगदान दे सकती है.

साथ ही, यह मिट्टी के कटाव को रोकता है और बंजर भूमि को उपयोगी बनाता है. इस कारण सरकार भी इसे ‘ग्रीन इकॉनमी फसल’ (Green Economy Crop) के रूप में बढ़ावा दे रही है.

किसानों के लिए सुनहरा अवसर

विशेषज्ञों का मानना है कि बांस की खेती उन किसानों के लिए बेहतर विकल्प है जिनके पास कम उपजाऊ या अनुपयोगी जमीन है. यह एक कम मेहनत और ज्यादा रिटर्न वाला मॉडल है जो दशकों तक आमदनी देता है.

कृषि वैज्ञानिकों का कहना है, “अगर किसान बांस की सही वैरायटी चुनें और बाजार से जुड़ाव बनाए रखें, तो बांस खेती न सिर्फ आय का स्थायी स्रोत बन सकती है बल्कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था को भी नई दिशा दे सकती है.”

एक्सपर्ट की राय

एक्सपर्ट बताते हैं, कम लागत, लंबी अवधि की आमदनी, पर्यावरणीय फायदे और सरकारी मदद — इन सभी कारणों से बांस की खेती आज किसानों के बीच एक उभरता हुआ विकल्प बन चुकी है. आने वाले वर्षों में यह न सिर्फ किसानों की कमाई बढ़ाने में मदद करेगी, बल्कि भारत की ग्रीन ग्रोथ पॉलिसी को भी मजबूत आधार मुहैया करेगी.

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