हम यहां बात कर रहे हैं विलायती बाबुल की. आपने भी इसके पौधे खूब देखे होंगे. ग्रामीण क्षेत्रों में इसकी तादाद अधिक देखी जाती है. क्या आपको पता है कि इस बाबुल को लगाने के लिए सरकार को बहुत मेहनत करनी पड़ी है. इसके लिए पूरे देश में एक बहुत बड़ा अभियान चलाया गया था. यहां तक की हवाई जहाज से इसके बीजों का छिड़काव भी किया गया था ताकि अधिक संकया में इसके पौधे उग सकें. उस वक्त मिट्टी की बरबादी को रोकने का लक्ष्य था लेकिन अब यही बाबुल हमारे लिए मुसीबत बनता जा रहा है. क्या है वो समस्या आइए जानते हैं.
कंटीला बबूल पर्यावरण को प्रदूषित करने के साथ-साथ पशु-पक्षियों को भी घायल करता है. बबूल के नीचे पेड़ होना तो अलग बात है, उसके नीचे घास भी नहीं उग पाती. इससे पर्यावरण को भी नुकसान होता है. इसका कांटा बहुत तेज होता है. कुछ समय पहले तक पहाड़ी इलाकों में जानवरों को चरने के लिए छोड़ दिया जाता था, तब लोगों के जानवर उन इलाकों में घास चरकर अपना पेट भरते थे. लेकिन जब से पहाड़ों में जंगली बबूल की झाड़ियों का आक्रमण पहाड़ों पर हुआ है, तब से घास भी खत्म हो गई है. इन झाड़ियों के नीचे अन्य छोटे चरने वाले पौधे भी नष्ट हो जाते हैं. पहाड़ों में रहने वाले तेंदुए के बच्चे भी इनके कारण घायल हो जाते हैं. नीलगाय भी जब इन अंग्रेजी बबूल के पेड़ों के झुरमुट से निकलती है तो ये नुकीले कांटे उनके शरीर को भी चीर देते हैं.
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यह पेड़ सबसे अधिक कार्बन डाइऑक्साइड छोड़ता है. यह ग्राउंड वॉटर के लिए भी खतरनाक है. जहां अंग्रेजी बबूल होता है वहां पानी का स्तर जमीन से काफी नीचे चला जाता है. इसकी जड़ें जमीन में कई मीटर गहराई तक जाती हैं और पानी को सोख लेती हैं. ऐसे में जहां भी ये पेड़ बहुतायत में हैं, वहां लोगों को पानी की समस्या का सामना करना पड़ता है. यह एक पौधा है जिसे विशेषज्ञ रक्तबीज भी कहते हैं. यदि एक पौधा कहीं लगाया जाए तो कुछ ही वर्षों में वहां सैकड़ों बबूल के पेड़ उग आते हैं. विशेषज्ञों का कहना है कि बबूल एक ऐसा पौधा है जो अपने आसपास दूसरे पौधों को पनपने नहीं देता. इतना ही नहीं इसकी वजह से कई पौधों का भविष्य संकट में होता दिखाई दे रहा है.