Agri Quiz: किस फसल को कहते हैं गोल्डन फाइबर, इसकी कब होती है खेती?

Agri Quiz: किस फसल को कहते हैं गोल्डन फाइबर, इसकी कब होती है खेती?

राष्ट्रीय जूट बोर्ड के अनुसार देश के करीब 40 लाख किसानों का नाता जूट की खेती से है. ये गंगा के तराई क्षेत्रों में उगाई जाने वाली रेशेदार उपज है. फ़ैशन के इस दौर में जूट से साड़ियां बनाई जा रही है. वहीं इससे कई अन्य सामान भी बनाए जा रहे हैं.

किस फसल को कहते हैं गोल्डन फाइबरकिस फसल को कहते हैं गोल्डन फाइबर
संदीप कुमार
  • Noida,
  • Oct 06, 2023,
  • Updated Oct 06, 2023, 12:00 PM IST

वर्तमान समय में लोग प्लास्टिक यूज करने से बच रहे हैं. इसके लिए लोग अलग-अलग प्रकार के तरीकों को अपना रहे हैं, जिससे प्लास्टिक के अधिक इस्तेमाल से बचा जा सके. अगर आप भी प्लास्टिक का कोई विकल्प ढूंढ रहे हैं तो इसका एक सस्ता, सुविधाजनक और टिकाऊ उपाय है जूट. इसे लोग जूट, पटसन, पटुआ या गोल्डन फाइबर के नाम से भी जानते हैं. जूट धीरे-धीरे प्लास्टिक की जगह लेता जा रहा है. जूट एक नकदी फसल है. ये रेशेदार उपज है.

जूट की वैश्विक पैदावार में से आधे से ज़्यादा का उत्पादन भारत में होता है. प्लास्टिक से पर्यावरण को हो रहे नुकसान को देखते हुए दुनिया भर के पैकेजिंग उद्योग में जूट की भारी मांग है. जूट का नाता देश के सबसे पुराने कृषि-उद्योग से भी है. 

इन राज्यों में होती है जूट की खेती

राष्ट्रीय जूट बोर्ड के अनुसार देश के करीब 40 लाख किसानों का नाता जूट की खेती से है. ये गंगा के तराई क्षेत्रों में उगाई जाने वाली रेशेदार उपज है. प्राकृतिक रेशेदार कृषि उत्पादों में कपास के बाद जूट का ही स्थान है. इसकी खेती पश्चिम बंगाल, असम, ओडिशा, बिहार, उत्तर प्रदेश, त्रिपुरा और मेघालय में अधिक मात्रा में होती है. वहीं पश्चिम बंगाल, देश का सबसे बड़ा जूट उत्पादक राज्य है जहां देश में पैदा होने वाले कुल जूट उत्पादन में आधे से ज़्यादा की पैदावार होती है.

जूट से बनाए जाने वाले प्रोडक्ट्स

परंपरागत तौर पर जूट के रेशों से बोरी, दरी, कालीन, तंबू, तिरपाल, टाट, रस्सी, कागज, सजावटी समान, फ़र्नीचर और कपड़े बनाए जाते हैं. इससे बनने वालों सामानों से सबसे अधिक लाभ ये है कि ये टिकाऊ और पर्यावरण हितैषी होता है.

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जूट से बनाई जा रही है साड़ी

फ़ैशन के इस दौर में जूट ने बाकी फैब्रिक के साथ कदमताल मिलाते हुए साड़ियां बनाने में भी अपना रोल निभा रहा है. कोलकाता समेत देश के कई हिस्सों में बुनकर जूट रेशों से आकर्षक साड़ियां तैयार कर रहे हैं. वहीं जूट से बनी साड़ियों को महिलाएं खूब पसंद कर रही हैं, क्योंकि ये फैशनेबल होने के साथ ही ज़्यादा टिकाऊ होती है. 

खेती के लिए मिट्टी और जलवायु

जूट की खेती के लिए हल्की बलुई और दोमट मिट्टी सबसे बेहतर मानी जाती है. जल भराव वाली भूमि में इसकी खेती नहीं करनी चाहिए क्योंकि अधिक समय तक पानी भरे रहने पर पौधे नष्ट होने लगते हैं. खेती के लिए मिट्टी सामान्य Ph मान वाली होनी चाहिए. वहीं जूट का पौधा नम और गर्म जलवायु में बढ़ता है. इस वजह से इसके पौधों को सामान्य बारिश की जरूरत होती है. जूट की पैदावार गर्मी और बारिश के मौसम में की जाती है. पटसन का पौधा 20 से 25 डिग्री तापमान अंकुरित होता है.

जानें कैसे करें  जूट की खेती

जूट की बुआई से पहले खेत की अच्छी तरह से जुताई करनी चाहिए. इसकी बुआई आमतौर पर छिटक विधि से की जाती है. हालांकि अब जूट की खेती के लिए किसान ड्रिल विधि अपनाने लगे हैं. इसके लिए किसानों को प्रति एकड़ तीन से 4.5 किलो बीज की जरूरत होती है. बीजों के लिए 10 से 15 सेमी का फासला होना चाहिए. बुआई के बाद फसल की हर दो-तीन हफ़्तों में सिंचाई करनी चाहिए.

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