सोयाबीन एक महत्वपूर्ण खाद्य फसल है. इसे दलहनी फसल के बजाय तिलहनी फसल माना जाता है. शाकाहारी लोगों का मीट भी कहा जाता है क्योंकि इसमें बहुत अधिक प्रोटीन होता है. यह स्वास्थ्य के लिए अच्छा माना जाता है. सोयाबीन एक महत्वपूर्ण खाद्य स्रोत है. इसके मुख्य रूप से प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट और फैट की मात्रा पाई जाती है. सोयाबीन में 38-40 प्रतिशत प्रोटीन, 22 प्रतिशत तेल, 21 प्रतिशत कार्बोहाइड्रेट और 12 प्रतिशत नमी होती है. सोयाबीन आमतौर पर अधिकांश देशों में लगाया जाता है, जैसे जापान, भारत, चीन और ब्राजील आदि.
दुनिया का 60 प्रतिशत सोयाबीन अमेरिका में पैदा होता है. भारत में सोयाबीन मुख्य रूप से मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और राजस्थान राज्यों में एक प्रमुख फसल के रूप में उगाया जाता है. ऐसे में सोयाबीन की खेती कर रहे किसानों के लिए ये जानना बहुत जरूरी है कि फल-फूल बढ़ाने के लिए कितना जस्ता और गंधक डालने कि जरूरत है.
संतुलित उर्वरक प्रबंधन और मिट्टी के स्वास्थ्य के लिए, नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटाश जैसे प्रमुख तत्वों, सल्फर, कैल्शियम, मैग्नीशियम जैसे सेकेंडरी पोषक तत्वों और जस्ता, तांबा, लोहा, मैंगनीज, मोलिब्डेनम, बोरोन जैसे सूक्ष्म पोषक तत्वों के साथ-साथ पीएच, ईसी और कार्बनिक पदार्थों के लिए मिट्टी की जांच करवाएं.
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मिट्टी परीक्षण के अनुसार बताई गई मात्रा में जस्ता और गंधक के साथ जिंक सल्फेट 25 किग्रा प्रति हेक्टेयर डालें. सल्फर युक्त उर्वरक (सिंगल सुपर फास्फेट) का प्रयोग अधिक लाभकारी होगा. सुपर फास्फेट का प्रयोग न कर पाने की स्थिति में 2.50 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की दर से जिप्सम का प्रयोग करना सही और लाभकारी रहता है. इसके साथ ही सल्फर युक्त अन्य उर्वरकों का भी प्रयोग किया जा सकता है.
सोयाबीन की खेती के लिए प्रति हेक्टेयर 60-70 किलोग्राम छोटे दाने वाले बीज और 75-80 किलोग्राम बड़े दाने वाले बीज की आवश्यकता होती है. किसी भी किस्म का चयन करने के बाद बुवाई से पहले बीजों का अंकुरण प्रतिशत अवश्य जांच लें जो लगभग 70 परसेंट होना चाहिए. अंकुरण प्रतिशत कम होने पर बीज की मात्रा बढ़ाई जा सकती है.
अच्छी उपज पाने के लिए 10-20 टन/हेक्टेयर की दर से देशी खाद और 20 किलोग्राम नाइट्रोजन, 60-80 किलोग्राम फास्फोरस, 50 किलोग्राम पोटाश, 20 किलोग्राम सल्फर प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करें.