
केंद्र सरकार ने बदलती कृषि जरूरतों और किसानों की चिंताओं को ध्यान में रखते हुए Seeds Bill, 2025 का मसौदा तैयार किया है. कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय के तहत कृषि एवं किसान कल्याण विभाग ने इस विधेयक को व्यापक परामर्श के बाद ड्राफ्ट किया है, जिसमें किसान संगठनों समेत विभिन्न हितधारकों की आपत्तियों और सुझावों को शामिल किया गया है. ऐसे में इस बिल को लेकर विरोध भी तेज हो गया है. कई किसान संगठनों ने नए बिल को किसान विरोधी बताया है और लागू किए जाने पर आंदोलन की चेतावनी भी दी है.
इस बीच, सरकार ने साफ किया है कि यह विधेयक किसानों और किसानों की पारंपरिक किस्मों पर लागू नहीं होगा. कृषि एवं किसान कल्याण राज्य मंत्री रामनाथ ठाकुर ने मंगलवार को लोकसभा में लिखित जवाब में जानकारी देते हुए कहा कि बिल के तहत किसानों को अपने अधिकार पूरी तरह मिलते रहेंगे. इनमें फसल उगाना, बोना, बीज बचाना, आपस में अदला-बदली करना और खेत में बचाए गए बीजों को बेचने की आजादी शामिल है.
यह संरक्षण Plant Varieties and Farmers’ Rights Act, 2001 के अनुरूप रखा गया है. इसके अलावा Biological Diversity Act, 2002 और PPVFR Act, 2001 के प्रावधानों के जरिए सामुदायिक बीज उत्पादकों, पारंपरिक और स्वदेशी किस्मों को भी कानूनी सुरक्षा दी गई है. सरकार का जोर इस बात पर है कि बीज क्षेत्र में सुधार हो, लेकिन किसानों के पारंपरिक अधिकारों से कोई समझौता न किया जाए.
Seeds Bill, 2025 में बाजार में बिकने वाली सभी बीज किस्मों के अनिवार्य पंजीकरण का प्रावधान है. इसके साथ ही बीज उत्पादकों, प्रोसेसिंग यूनिट, बीज विक्रेताओं और पौध नर्सरियों का रजिस्ट्रेशन भी जरूरी होगा.
आपात स्थितियों में बीजों की बिक्री कीमत को नियंत्रित करने, बीजों की गुणवत्ता और प्रदर्शन की अनिवार्य लेबलिंग तथा SATHI पोर्टल पर ऑनबोर्डिंग जैसे नियम भी प्रस्तावित किए गए हैं. फिलहाल यह विधेयक प्री-लेजिस्लेटिव कंसल्टेशन चरण में है और इसे पब्लिक डोमेन में रखा गया है, ताकि किसान संगठनों समेत सभी संबंधित पक्ष अपने सुझाव दे सकें.
बता दें कि बीते हफ्ते किसान नेता राकेश टिकैत ने केंद्र के प्रस्तावित Seeds Bill 2025 को किसान विरोधी बताते हुए सरकार पर तीखा हमला बोला था. उन्होंने कहा कि यह विधेयक किसानों को कानून के शिकंजे में लाने की कोशिश है. टिकैत के मुताबिक, नए बिल में खराब बीज पर मुआवजे का प्रावधान नहीं है, बीजों की कीमत पर कोई सीमा नहीं होगी और कंपनियों को खुली छूट मिलेगी. उन्होंने आशंका जताई है कि इससे किसानों पर महंगे बीज थोपे जाएंगे, राज्यों की भूमिका कमजोर होगी और विदेशी कंपनियों का दबदबा बढ़ेगा.