देश में उर्वरक संकट को देखते हुए केंद्र सरकार ने एक बड़ा फैसला किया है. आगामी रबी सीजन को देखते हुए कृषि मंत्रालय ने राज्यों से कहा है कि वह इस बात पर नजर रखें कि बहुत ज्यादा सब्सिडी वाले उर्वरकों का प्रयोग गैर-कृषि कार्यों में न हो और किसानों के लिए इसकी उपलब्धता सुनिश्चित की जाए. कृषि मंत्रालय ने राज्यों से कहा है कि रबी सीजन तीन स्तरीय कमेटी बनाएं और उर्वरकों के प्रयोग पर कड़ी नजर रखें.
इसके साथ ही केंद्र ने राज्यों से किसानों को उर्वरक बेचने वाली कंपनियों के सभी 3 लाख रिटेल दुकानों पर एडवांस्ड इलेक्ट्रॉनिक पॉइंट-ऑफ-सेल (पीओएस) मशीनें लगाने की अपील भी की है. अखबार फाइनेंशियल एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार केंद्र ने राज्यों से अनुरोध किया है कि वो बंदरगाहों और रेलवे से कंपनियों तक उर्वरक पहुंचाने वाले सभी वाहनों पर जीपीएस ट्रैकिंग सुनिश्चित करें ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि बहुत ज्यादा सब्सिडी वाले उर्वरक, यूरिया, डीएपी, नाइट्रोजन, फॉस्फोरस और पोटेशियम (एनपीके), और पोटाश - का औद्योगिक उपयोग के लिए उपयोग हरगिज न हो.
मंगलवार को रबी फसलों के लिए रणनीति तैयार करने के मकसद से आयोजित हुए राष्ट्रीय कृषि सम्मेलन में, उर्वरक विभाग के सचिव रजत कुमार मिश्रा ने इस बारे में विस्तार से जानकारी दी. उन्होंने बताया कि जियो-पॉलिटिक्स की वजह से पैदा हुए बाहरी झटकों से निपटने के लिए उर्वरकों के सही प्रयोग को बढ़ावा देना बहुत जरूरी है. उन्होंने बताया कि देश उर्वरक निर्माताओं और तैयार उत्पादों के लिए बड़ी मात्रा में कच्चा माल आयात करता है.
आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, अप्रैल से चालू खरीफ सीजन में, यूरिया, एनपीके और सिंगल सुपर फॉस्फेट (एसएसपी) जैसे उर्वरकों की खपत 2024 के खरीफ सीजन की तुलना में क्रमशः 0.8 मिलियन टन (एमटी), 1 मीट्रिक टन और 0.5 मीट्रिक टन बढ़ी है. सूत्रों के अनुसार मक्का, गन्ना और धान की बुआई ज्यादा होने की वजह से यूरिया की खपत 2024 के 17.4 मीट्रिक टन से बढ़कर चालू खरीफ सीजन में 18.2 मीट्रिक टन हो गई है. लेकिन बहुत ज्यादा सब्सिडी वाले यूरिया को गैर-कृषि उपयोग के लिए इस्तेमाल किए जाने की कई खबरें आई हैं.
आगामी रबी सीजन में उर्वरक और पोषक तत्वों की सप्लाई पर कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि बारिश और अन्य कारक अक्सर फसल पैटर्न में बदलाव का कारण बनते हैं. चौहान ने कहा, 'इस साल अच्छी बारिश के कारण बुआई क्षेत्र में इजाफा हुआ है जिससे उर्वरकों की मांग बढ़ सकती है.' उन्होंने आगे कहा कि उर्वरक मंत्रालय के सहयोग से, राज्यों की मांग के अनुसार मृदा पोषक तत्वों की पूरी आपूर्ति की जाएगी.
हालांकि हर साल यूरिया मांग का 87 फीसदी को स्थानीय स्तर पर पूरा किया जाता है. भारत यूरिया बनाने के लिए प्राकृतिक गैस की एक बड़ी मात्रा का आयात करता है क्योंकि 32 यूरिया इकाइयों में से 30 प्राकृतिक गैस का उपयोग करती हैं. हर साल 10-11 मीट्रिक टन डीएपी मांग में से 60 फीसदी आयात के माध्यम से पूरी की जाती है. डीएपी का घरेलू निर्माण भी आयातित रॉक फॉस्फेट पर निर्भर करता है. पोटाश का 100 फीसदी आयात किया जाता है. साल 2012 से यूरिया की खुदरा कीमत 242 रुपये प्रति 45 किलोग्राम बैग रही है जबकि उत्पादन लागत 2,600 रुपये प्रति बैग से ज्यादा है.
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