किसान फसलों की खेती के अलावा सब्जियों की खेती करके अपनी आय में आसानी से बढ़ोतरी कर सकते हैं. अगर आप भी सब्जियों की खेती करने की सोच रहे हैं तो इस माह में करेले की खेती कर सकते हैं. करेले की खेती लगभग भारत के सभी राज्यों में की जाती है. वहीं करेले में कई प्रकार के औषधीय गुण पाए जाते हैं, जिस वजह से बाजारों में इसकी मांग हमेशा बनी रहती है. करेले के खेती की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि करेले की खेती में लागत के मुकाबले इनकम अधिक होती है. वहीं करेले की उन्नत किस्म 'पूसा विशेष' की खेती करके किसान प्रति एकड़ 60 क्विंटल तक पैदावार प्राप्त कर सकते हैं. ऐसे में आइए जानते हैं करेले की कुछ अन्य उन्नत किस्मों के बारे में -
भारत में ज्यादातर किसान करेले की खेती साल में दो बार करते हैं. वहीं सर्दियों के मौसम में किसान बोए जाने वाले करेले की किस्मों को जनवरी-फरवरी में बुवाई कर मई-जून में इसका उत्पादन प्राप्त कर लेते हैं, जबकि गर्मियों के मौसम में करेले की बुवाई जून और जुलाई में करने के बाद इसकी उपज दिसंबर तक मिल जाती है.
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करेले की कई ऐसी किस्में हैं जिनकी खेती करके किसान अच्छी उपज प्राप्त कर सकते हैं, लेकिन आज हम सिर्फ करेले की उन्नत किस्मों के बारे में बता रहे हैं जोकि निम्नलिखित हैं-
पूसा हाइब्रिड 1: करेले की ये किस्म देश के उत्तरी मैदानी क्षेत्रों में खेती करने के लिए उपयुक्त है. इसके फल हरे एवं थोड़े चमकदार होते हैं. वहीं इसकी खेती वसंत ऋतु, ग्रीष्म ऋतु एवं वर्षा ऋतु, तीनों ऋतुओं में आसानी से की जा सकती है. करेले की इस किस्म की पहली तुड़ाई 55 से 60 दिनों में की जा सकती है.
पूसा हाइब्रिड 2: करेले की इस किस्म की खेती बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश, पंजाब, छत्तीसगढ़, ओडिशा, आंध्र प्रदेश, राजस्थान, गुजरात, हरियाणा और दिल्ली में आसानी से की जा सकती है. वहीं इस किस्म के फलों का रंग गहरा हरा होता है. करेले की इस किस्म की पहली तुड़ाई 52 दिनों बाद की जा सकती है.
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पूसा विशेष: करेले की इस किस्म की खेती उत्तर भारत के मैदानी क्षेत्रों में फरवरी से जून माह तक होती है. वहीं इस किस्म के फल मोटे एवं गहरे चमकीले हरे रंग के होते हैं. अगर बात करें इसके उत्पादन की तो इस किस्म से प्रति एकड़ 60 क्विंटल तक पैदावार प्राप्त की जा सकती है.
अर्का हरित: करेला की इस किस्म के फल मध्यम आकार के होते हैं. हालांकि, अन्य किस्मों की तुलना में अर्का हरित करेले कम कड़वे होते हैं. वहीं इस किस्म के फलों में बीज भी कम होते हैं. इसकी खेती गर्मी और बारिश के मौसम में आसानी से की जा सकती है. वहीं प्रति एकड़ लगभग 36 से 48 क्विंटल तक पैदावार प्राप्त की जा सकती है.