नीति आयोग के सदस्य प्रो. रमेश चंद ने भारतीय उद्योग जगत के सामने यह सवाल उठाया है कि क्यों पश्चिमी देश कृषि रसायन से हटकर बायो-पेस्टीसाइड की ओर रूख कर रहे हैं. उन्होंने कहा, ‘मैंने कई देशों में ऐसा देखा है. नीदरलैंड अब न के बराबर कृषि रसायन बेचता है. पूरा पश्चिमी क्षेत्र इसी दिशा में रुख कर रहा है. मेरा मानना है कि लंबी अवधि में भारतीय उद्योग को भी इसी पहलु पर ध्यान केंद्रित करना होगा. संभवत: उद्योग जगत को पेस्टीसाइड की बजाय पेस्ट-कंट्रोल (कीटनाशकों के बजाय कीट नियंत्रण) पर ध्यान देना होगा. इंटीग्रेटेड पेस्ट मैनेजमेंट के लिए समाधान खोजने होंगे.
प्रो. चंद एग्रो कैम फेडरेशन ऑफ इंडिया (ACFI) की नई दिल्ली में आयोजित सालाना आम बैठक के दौरान एक पैनल चर्चा में अपने विचार व्यक्त कर रहे थे. उन्होंने सलाह दी कि भारतीय उद्योगों को ईएसजी (पर्यावरण, सामाजिक एवं प्रशासन) से जुड़े मुद्दों का अनुपालन करते हुए ज़िम्मेदारी से कारोबार करना होगा. प्रदूषण कम करने के लिए इनोवेशन पर ध्यान केंद्रित करना होगा.
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नीति आयोग के सदस्य ने कहा कि आने वाले समय में भारत का कृषि-रसायन उद्योग मौजूदा दर की तुलना में अधिक गति से आगे बढ़ेगा. पिछले 5 साल में इस उद्योग की विकास दर 9 फीसदी पर पहुंच गई है. साल 2016 के बाद से कृषि-रसायन सेक्टर की विकास दर उछाल के बाद 8-9 फीसदी पर पहुंच गई है. एग्रो केमिकल उद्योग 10 फीसदी विकास दर तक पहुंच सकता है. इसे चमत्कारिक विकास दर कहा जा सकता है. क्योंकि इसमें से ज़्यादातर बढ़ोतरी कोविड-19 महामारी के वर्षों के दौरान हुई है, जब उत्पादन गतिविधियां गंभीर रूप से बाधित थीं. चूंकि चीन से प्रतिस्पर्धा के और कम होने की संभावना है, ऐसे में कृषि-रसायन उद्योग काफी अधिक दर से आगे बढ़ सकता है.
कृषि-रसायन क्षेत्र के विकास में कृषि क्षेत्र की भूमिका पर रोशनी डालते हुए प्रो. चंद ने कहा पिछले 10 साल में कृषि क्षेत्र में अभूतपूर्व विकास हुआ है. हमने वाजपेयी जी के कार्यकल में कृषि क्षेत्र में 4 फीसदी विकास दर का लक्ष्य तय किया था, लेकिन, देश के सात प्रमुख राज्यों में 7 फीसदी से भी अधिक बढ़ोतरी दर्ज की गई है. उत्पादन, सेक्टर की आय एवं किसानों की आय में इस तरह की बढ़ोतरी स्वतन्त्र भारत के इतिहास में कभी 7 या 10 साल की किसी भी अवधि में नहीं हुई है. उन्होंने कृषि-रसायन उद्योग का आह्वान किया कि जहां तक हो सके कच्चे माल के लिए आयात पर निर्भरता कम करने के लिए अवसरों का उचित उपयोग करें.
प्रो. चंद ने कहा कि आयात दो प्रकार होते हैं. एक, जो निर्यात को समर्थन देने के लिए बेहद ज़रूरी है. दूसरा- जैसे हम बहुत अधिक मात्रा में खाद्य तेल का आयात करते हैं, जिसे कम करने के लिए हम इस्तेमाल न की गई जमीन का उपयोग कर सकते हैं. जब प्रधानमंत्री मोदी आत्मनिर्भरता के बारे में बात करते हैं, उनका यह तात्पर्य नहीं होता कि आपको सभी प्रकार के आयात रोक देने चाहिए. कृषि रसायन क्षेत्र में कुछ आयात ज़रूरी हैं.
पब्लिक डोमेन में उपलब्ध आंकड़ों की बात करें तो भारत 14000 करोड़ रुपये कीमत के कच्चे माल सहित कृषि रसायनों का आयात करता है. जबकि 43000 करोड़ रुपये का निर्यात किया जाता है. इस तरह का आयात हमारे लिए हानिकारक नहीं है, लेकिन, चीन की वर्तमान स्थिति हमें आयात को कम करने के अच्छे अवसर प्रदान करती है.
पैनल में शामिल एसीएफआई के चेयरमैन परीक्षित मुन्ध्रा ने कहा कि हमारा संगठन उच्च गुणवत्ता के कृषि रसायनों को किफ़ायती दाम पर उपलब्ध करवाकर किसानों की आय बढ़ाएगा. संगठन के महासचिव अभिजीत बोस ने कहा कि एग्रो केमिकल उद्योग को भारत के कृषि उत्पादन को बढ़ाने और आयात पर निर्भरता कम करने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए. इससे पहले एसीएफआई के महानिदेशक डॉ. कल्याण गोस्वामी ने कहा कि हम कृषि रसायनों के निर्यात को बढ़ावा देंगे.
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