जुलाई की शुरुआत के साथ ही किसानों ने खरीफ फसलों की प्रमुख फसलों धान, सोयाबीन, मक्का आदि की बुवाई तेज कर दी है. लेकिन इसमें रासायनिक खाद की इनपुट लागत ज्यादा आती है. ऐसे में आज हम आपको सामान्य डीएपी खाद की बजाय नैनो डीएपी खाद की लागत और इसके असर की जानकारी देने जा रहे हैं. किसान नैनो डीएपी के इस्तेमाल से खेती की इनपुट लागत को कम कर सकते हैं, साथ ही खेत में रसायन के इस्तेमाल को घटाकर मिट्टी की सेहत भी सुधार ला सकते हैं.
जबलपुर के कृषि उप संचालक डॉ. एस के निगम ने बताया कि ज्यादातर किसान दानेदार डीएपी का इस्तेमाल करते हैं, जिसकी सब्सिडी के बाद एक बोरी की कीमत 1350 रुपये होती है, जबकि किसान इससे आधी से भी कम कीमत पर आधा लीटर नैनो डीएपी खरीद सकते हैं, जिसकी कीमत 600 रुपये है. उन्होंने कहा कि किसान नैनो डीएपी का इस्तेमाल कर 750 रुपये की बचत कर सकते हैं. साथ ही बीजों का उपचार कर और फसलों पर छिड़काव कर बेहतर उत्पादन हासिल कर सकते हैं.
डॉ. एस के निगम ने बताया कि किसान कल्याण और कृषि विकास विभाग किसानों को अत्याधुनिक नैनो तकनीक पर आधारित नैनो डीएपी खाद के इस्तेमाल के लिए लगातार प्रोत्साहित कर रहा है. उन्होंने बताया कि नैनो डीएपी के कण 100 नैनोमीटर से भी कम होते हैं. ये पौधों के बीज, जड़ की सतह, पत्तियों के स्टोमेटा और अन्य छेदों के जरिए आसानी से पौधों में घुस जाते हैं.
कृषि उप संचालक ने बताया कि नैनो डीएपी के इस्तेमाल से पौधों की ओज शक्ति बढ़ती है और पत्तियों में क्लोरोफिल ज्यादा बनता है और प्रकाश संश्लेषण की क्रिया अधिक होती है. इससे फसल की क्वालिटी और पैदावार में बढ़ोतरी होती है. डॉ निगम के अनुसार, तरल नैनो डीएपी में 8 प्रतिशत नाइट्रोजन और 16 प्रतिश फॉस्फोरस की मात्रा होती है.
उन्हाेंने बताया कि परम्परागत दानेदार डीएपी का इस्तेमाल करने पर पौधे (फसल) नाइट्रोजन खाद का मात्र 30-40 प्रतिशत हिस्सा ही पोषण के लिए इस्तेमाल करते हैं. वहीं, बचा हुआ हिस्सा मिट्टी, हवा और पानी के प्रदूषण में भागीदारी निभाता है. उन्होंने कहा कि नैनो डीएपी का फसल पर सीधे इस्तेमाल करने से पर्यावरण को नुकसान नहीं पहुंचता है और पौधों को जरूरी पोषण मिलता है. नैनो डीएपी से बीजोपचार करने के बाद फसल विकास के महत्वपूर्ण चरणों में एक या दो पत्तियों में छिड़काव करने से परम्परागत डीएपी के प्रयोग में 50 प्रतिशत तक कटौती संभव है.