किसानों की आय में बढ़ोतरी कर खेती को मुनाफे का सौदा बनाने के लिए सरकार किसानों को खेती के तौर तरीके बदलने के लिए निरंतर प्रोत्साहित कर रही है. इसके तहत पारंपरिक तरीके से गेहूं और धान सहित अन्य फसलें उपजाने के साथ खेत में बागवानी को भी जगह दे कर सहफसली खेती के मॉडल को बढ़ावा दिया जा रहा है. गन्ना की खेती के लिए मशहूर पश्चिमी यूपी में गन्ना किसान अपने खेत में गन्ने के साथ सब्जी, दलहन, तिलहन, अनाज, मसाले व फूलों की भी सहफसली खेती कर रहे हैं. सरकार का दावा है कि इस मॉडल पर खेती करते हुए किसानों को 50 से 60 हजार रुपये प्रति हेक्टेयर की अतिरिक्त आय होने लगी है.
यूपी सरकार के चीनी उद्योग एवं गन्ना विकास विभाग की ओर से पश्चिमी यूपी के किसानों को सहफसली पद्धति पर गन्ना उपजाने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है. विभाग की ओर से बताया गया कि इस तकनीक के तहत अव्वल तो गन्ना की शरदकालीन बुआई की जाती है. ऐसा करने पर बसंतकाल में बुआई करने की तुलना में 15 से 20 प्रतिशत अधिक उपज होती है. साथ ही जल्दी गन्ना पकने से चीनी मिलों का संचालन समय से शुरू हो जाता है.
इस पद्धति में गन्ने की बुआई ट्रेंच विधि से की जाती है. ऐसा करने से गन्ने का जमाव अधिक होने से उपज में इजाफा होता है. ट्रेंच विधि के तहत खेत में गन्ने की 02 कतारों के बीच निश्चित अंतराल रखा जाता है. इससे किसानों के लिए अंतः फसली खेती करना आसान हो जाता है. इस विधि में गन्ने की दो कतारों के बीच किसान, सब्जी, दलहन, तिलहन व अनाज, मसाले या फूलों की मौसमी फसलें उगा लेते हैं. ऐसा करने से किसानों को लगभग 50 हजार से 60 हजार रुपये प्रति हेक्टेअर की अतिरिक्त आय हो जाती है.
ट्रेंच विधि से गन्ने की सहफसली खेती करने वाले किसानों को टपक पद्धति अर्थात ड्रिप सिस्टम से सिंचाई करने को प्रोत्साहित किया जा रहा है. इस पद्धति से पौधों को सीधे जल उपलब्ध कराकर गुणवत्तायुक्त उत्पादन के साथ-साथ श्रम, जल एवं ऊर्जा की बचत भी होती है. इससे किसानों की फसल लागत में कमी आती है.
ट्रेंच विधि में किसान गन्ने की कटाई करने के बाद फसल अवशेष काे खेत में जलाने के बजाय इसकी मल्चिंग कर देते है. इससे मिट्टी में कार्बनिक पदार्थों की पूर्ति होने से खेत की उर्वरा शक्ति बढ़ती है. साथ ही नमी संरक्षण से सिंचाई जल की बचत भी होती है.
एक अनुमान के आधार पर विभाग का दावा है कि प्रदेश में इस पद्धति से खेती कर रहे किसानों के कुल गन्ना फसल क्षेत्र में लगभग 8 लाख हेक्टेयर की वृद्धि हुई है. इसके साथ ही किसानों को प्रति हेक्टेयर 9.93 टन का अतिरिक्त उत्पादन भी मिलने लगा है. इसके फलस्वरूप किसानों को 34,656 रुपये प्रति हेक्टेयर की अतिरिक्त आमदनी होने लगी है. विभाग ने स्पष्ट किया है कि आय में हुआ यह इजाफा सिर्फ गन्ने की उपज से है, इसमें सहफसली उपज से होने वाली आय को जोड़ने पर यह 50 से 60 हजार रुपये प्रति हेक्टेयर हो जाता है.
गन्ना किसानों की आय में इजाफे के लिए सरकार ने इस पद्धति को पांच सूत्रीय कार्ययोजना के रूप में प्रचारित किया है. इसका मकसद गन्ना उत्पादकता बढ़ाना और उत्पादन लागत में कमी लाना है. विभाग ने इस पद्धति के 5 सूत्रों के तौर पर शरद कालीन गन्ना बुआई करने, सहफसली खेती करने, ट्रेंच विधि से बुआई करने, ड्रिप पद्धति से सिंचाई करने और पेड़ी प्रबंधन व ट्रैश मल्चिंग पर ध्यान देने को जरूरी बताया है.
गन्ना विकास विभाग का कहना है कि पश्चिमी यूपी की गन्ना बेल्ट में किसानों की एक यूनिट में पूरे परिवार को शामिल किया गया है. इसमें किसान परिवार के पुरुषों की आय के साथ महिलाओं की आय को भी ध्यान में रखा गया है. इसके लिए हर परिवार की महिलाओं को स्वयं सहायता समूहों से जोड़ने की मुहिम चलाई गई है. स्वयं सहायता समूह की महिलाएं गन्ने की बीज पौध तैयार कर इसे अपनी आय का जरिया बनाया है.
विभाग का दावा है कि पश्चिमी यूपी में 3166 महिला स्वयं सहायता समूह गन्ना की पौध तैयार कर रहे हैं. इससे इन समूहों की पिछले वित्त वर्ष में 88.15 लाख रुपये की आय हुई. इस प्रकार यह कार्यक्रम ग्रामीण महिलाओं को स्थानीय रोजगार उपलब्ध कराने एवं गन्ना की नई किस्मों का आच्छादन बढ़ाने में महत्वपूर्ण निभा रहा है.
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