देश में गेहूं की बुवाई लगभग पूरी हो चुकी है. मार्च के दूसरे सप्ताह से अर्ली बुवाई वाले गेहूं की कटाई शुरू हो जाएगी. लेकिन, अभी फसल पर विशेष ध्यान रखने की जरूरत है. क्योंकि गेहूं इस साल काफी महंगा है. कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि पीला रतुआ रोग (Yellow Rust Disease) गेहूं के सबसे खतरनाक रोगों में से एक है. यह उत्तरी पहाड़ी क्षेत्र और उत्तरी पश्चिमी मैदानी क्षेत्र का मुख्य रोग है. पीला रतुआ पत्तियों पर पीले रंग की धारियों (आमतौर पर नसों के बीच) के रूप में दिखाई देता है. संक्रमित पत्तियों को छूने पर उंगलियों और कपड़ों पर पीला पाउडर या धूल लग जाती है, तब जाकर समझिए कि पीला रतुआ लग चुका है.
भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान में प्लांट ब्रीडिंग के प्रिंसिपल साइंटिस्ट डॉ. राजबीर यादव का कहना है कि गेहूं में सिर्फ पीलापन होना ही पीला रतुआ रोग की निशानी नहीं है. ऐसा तो कई कारणों से हो सकता है. जैसे अगर आपने हरबीसाइड का इस्तेमाल किया तो उससे हल्का पीलापन आ जाता है. उससे डरने की जरूरत नहीं है. जो एरिया नहरों के साथ-साथ है वहां पर पीला रतुआ रोग का असर अधिक देखने को मिलता है.
हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय हिसार के कुलपति प्रो. बीआर कांबोज के मुताबिक तापमान में गिरावट के चलते गेहूं की फसल में पीला रतुआ रोग लगने की संभावना होती है. इसलिए किसान समय रहते सावधानी बरतें और वैज्ञानिक सलाह से इसका नियंत्रण करें. क्योंकि यदि समय पर रतुआ बीमारी का नियंत्रण नहीं कर पाए तो गेहूं की पैदावार में गिरावट आ सकती है. दिसंबर के अंत से मध्य मार्च तक गेहूं की फसल में रतुआ रोग के लक्षण दिखाई देते हैं, जब तापमान 10 डिग्री सेल्सियस से 15 डिग्री सेल्सियस तक रहता है.
पहले यह रोग खेत में 10-15 पौधों पर एक गोल दायरे के रूप में शुरू होकर बाद में पूरे खेत में फैलता है. इसलिए किसान भाई अपने खेतों की नियमित रूप से पीले रतुआ के लिए निगरानी करते रहें. पीले रतुआ रोग की पुष्टि होती है तभी दवा का इस्तेमाल करें. लक्षणों की पुष्टि के लिए गेहूं वैज्ञानिकों, विशेषज्ञों, विस्तार कार्यकर्ताओं को सूचित कर सकते हैं. क्योंकि कभी-कभी पत्तियों का पीलापन इस रोग के अलावा अन्य कारणों से भी हो सकता है.
यदि किसानों को अपने गेहूं के खेतों में पैच में पीला रतुआ मिला है तो सिफारिश किए फंगीसाइड यानी फफूंदनाशकों का छिड़काव करें. इसके लिए प्रोपीकोनाजोल @ 0.1 % (200 मिलीलीटर फफूंदनाशक 200 लीटर पानी में मिलाकर एक एकड़ में) छिड़काव किया जाना चाहिए. ताकि रोग का प्रसार न हो. जरूरत पड़ने पर 15-20 दिन के बाद छिड़काव दोहराया जा सकता है. यह बहुत इफेक्टिवली पीला रतुआ को कंट्रोल होता है. आमतौर पर सिंगल स्प्रे से कंट्रोल हो जाता है.