देशभर में दिसंबर से लेकर फरवरी तक के महीने कड़ाके की ठंड के माने जाते हैं. हालांकि, इस बार ठंड ने देरी से दस्तक दी, जिससे अनुमान लगाया जा रहा था कि कई फसलें सामान्य से अधिक तापमान के कारण प्रभावित होंगी, लेकिन अब तेज सर्दी पड़ रही है. ठंड के दिनों में बागवानी फसलों जैसे फल, फूल आदि को खास देखभाल की जरूरत होती है, क्योंकि इस समय इनमें कई रोगों और कीटों के हमले का खतरा बढ़ जाता है. आज हम आपको आवंला के बाग-बगीचों की देखभाल के लिए सलाह देने जा रहे हैं. कृषि एक्सपर्ट्स ने सर्दियों के दौरान आंवला में होने वाले रोग और कीटों से बचाने के लिए कुछ उपाय बताए हैं, जिन्हें अपनाकर नुकसान से बचा जा सकता है.
दिसंबर से फरवरी के दौरान आंवले के पौधों और पेड़ में मृदु सड़न (फोमोप्सिस फाइलेन्थाई) रोग लगने का खतरा रहता है. इस रोग के कारण संक्रमित हिस्से पर जलसिक्त भूरे रंग के धब्बे बन जाते हैं, जो लगभग 8 दिनों में पूरे फल पर फैल जाता है और उसका आकार बिगाड़ देता है. यह रोग छोटे और तोड़ने योग्य पके हुए फल दोनों पर हमला करता है, लेकिन पके हुए फलों पर इसका प्रकोप ज्यादा देखने को मिलता है. इसलिए इस समय आंवला के बाग में गुड़ाई करना और थालें बनाना बेहद जरूरी है.
अगर आपके बाग में लगे पौधे एक वर्ष के हैं तो उनमें 10 किलोग्राम गोबर या कम्पोस्ट खाद, 100 ग्राम नाइट्रोजन, 50 ग्राम फॉस्फोरस और 75 ग्राम पोटाश दें. अगर पेड़ 10 साल या उससे ज्यादा उम्र के हैं तो उनमें 100 किलोग्राम गोबर या कम्पोस्ट खाद, 1 किलोग्राम नाइट्रोजन, 500 ग्राम फॉस्फोरस और 750 ग्राम पोटाश का इस्तेमाल करें.
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जून से जनवरी के दौरान गुठलीभेदक (करक्यूलिओ जाति) कीट सक्रिय रहता है, जो आंवला के फलों पर हमला करता है. इस कीट का प्रकोप हाेने पर सबसे पहले 0.2 प्रतिशत कार्बेरिल या 0.04 प्रतिशत मोनोक्रोटोफॉस या 0.05 प्रतिशत क्विनालफॉस कीटनाशी का छिड़काव फलों के मटर के दाने के बराबर की अवस्था में करें. अगर जरूरत पड़े तो 15 दिनों के अंतराल में कीटनाशी बदलकर दूसरा छिड़काव करें.
वहीं तुड़ाई के बाद फलों को डाइफोलेटॉन (0.15 प्रतिशत), डाइथेन एम-45 या बाविस्टीन (0.1 प्रतिशत) से उपचारित करके भंडारण करें. इससें इनमें रोग फैलने का खतरा नहीं रहता है, जिससे बाजार में इनकी कीमत भी सही मिलेगी.