कहते हैं कि अगर आपके इरादे मजबूत हों और काम करने की ईमानदारी हो तो कुछ भी असंभव नहीं होता है. मुंबई के 26 साल के यंग बिजनेसमैन प्रितेश मिश्री ने टमाटर के वेस्ट से एक अनोखा और टिकाऊ विकल्प खोज निकाला है. उनकी द बायो कंपनी (TBC) ने ऐसा बायोलेदर तैयार किया है. जो पूरी तरह वीगन, बायोडिग्रेडेबल और पर्यावरण के लिहाज से भी काफी बेहतर है, आइए जान लेते हैं टमाटर से जूते बनने के पीछे की कहानी क्या है?
भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा टमाटर उत्पादक देश है, लेकिन हर साल लगभग 30-35% टमाटर बर्बाद हो जाते हैं. प्रितेश ने इन्हीं बेकार छिलकों और बीज को बायो लेदर बनाने में इस्तेमाल किया. इनमें मौजूद पेक्टिन और नैचुरल फाइबर लेदर जैसी बनावट और मजबूती देते हैं.
प्रितेश ने बायोटेक्नोलॉजी की पढ़ाई के दौरान इसे फाइनल ईयर प्रोजेक्ट के रूप में शुरू किया था. कानपुर की टेनरियों में प्रदूषण और खेतों में भारी मात्रा में हो रहे खाद्य अपशिष्ट को देखकर उन्होंने इसका समाधान खोजने की ठानी. महीनों के प्रयोग के बाद उन्होंने बायोलेदर का पहला प्रोटोटाइप तैयार किया. आज उनकी कंपनी के पास इस तकनीक का पेटेंट भी है.
सूरत स्थित संयंत्र में TBC स्थानीय किसानों और प्रोसेसिंग यूनिट्स से टमाटर वेस्ट एकत्र करती है. इसे बायोपॉलिमर्स, पौधों से बने बाइंडर्स और नैचुरल फाइबर के साथ प्रोसेस किया जाता है. नॉन-टॉक्सिक तकनीक से इसे लेदर जैसी बनावट मिलती है और पौधों पर आधारित कोटिंग इसे वॉटर-रेज़िस्टेंट और टिकाऊ बनाती है.
आज बायोलेदर का इस्तेमाल बैग, जूते और जैकेट से लेकर ऑटोमोबाइल इंटीरियर तक में हो रहा है. कनाडा की Satuhati ब्रांड जैसी कंपनियां इसके उत्पाद तैयार कर चुकी हैं. ब्रांड की CEO नैटाशा मंगवानी कहती हैं कि “बायोलेदर पूरी तरह PU और PVC फ्री है और यही इसे पारंपरिक सिंथेटिक लेदर से अलग बनाता है.”
वर्तमान में TBC हर महीने करीब 5,000 मीटर बायोलेदर का उत्पादन कर रही है. कंपनी का कहना है कि मांग बढ़ने के साथ उत्पादन क्षमता भी बढ़ाई जाएगी, लेकिन गुणवत्ता और टिकाऊपन से समझौता नहीं होगा.(सिमर चावला का इनपुट)