भारत में आलू की फसल फरवरी-मार्च में तैयार होती है, जिसके बाद गर्मी का मौसम शुरू हो जाता है. उचित भंडारण की व्यवस्था न होने के कारण आलू जल्दी खराब हो जाता है, क्योंकि इसमें लगभग 80 फीसदी पानी और 20 फीसदी ठोस पदार्थ होते हैं. आलू को लगभग पांच महीने तक स्टोर किया जा सकता है, लेकिन स्टोरेज की कमी के कारण किसान मजबूरी में कम दाम पर इसे बाजार में बेच देते हैं.
आलू की खुदाई के बाद देश में लगभग 15-20 फीसदी आलू खराब हो जाता है. इस समस्या का समाधान प्रसंस्करण (प्रोसेसिंग) के माध्यम से किया जा सकता है. अब आलू सिर्फ सब्जी तक सीमित नहीं है, बल्कि कई तरह के खानपान में इसका उपयोग बढ़ रहा है. आलू चिप्स, फ्रोजन फ्रेंच फ्राइज, फ्लेक्स, स्टार्च, कस्टर्ड पाउडर, सूप, आलू भुजिया, पापड़, सेवई, केक, बिस्किट, नानखटाई, आलू स्टिक्स, अचार, टिक्की, समोसा, इडली, वड़ा, आलू मसाला डोसा और आलू पराठा जैसे कई उत्पाद बाजार में उपलब्ध हैं. इन उत्पादों की बढ़ती मांग के बावजूद, जब किसान कच्चे आलू को बाजार में बेचते हैं, तो उन्हें बहुत कम कीमत मिलती है.
अगर किसान आलू को प्रोसेसिंग करके बेचें, तो उन्हें अधिक मुनाफा हो सकता है. इसमे आलू पाउडर की डिमांड तेजी से बढ़ रही है. आलू अनुसंधान केंद्र, शिमला के अनुसार, अगले 40 वर्षों में आलू प्रसंस्करण की मांग तेजी से बढ़ेगी. आलू उत्पादों में चिप्स: 4.5%, फ्रेंच फ्राइज: 11.6%, फ्लेक्स और पाउडर: 7.6% की अनुमानित मांग होगी. अगर किसान आलू को प्रसंस्करण करके बेचें, तो उनका मुनाफा दोगुना हो सकता है, क्योंकि प्रोसेस्ड आलू की शेल्फ लाइफ (भंडारण क्षमता) अधिक होती है. अगर किसान छोटी प्रोसेसिंग इकाई स्थापित करें, तो वे अपने आलू से बेहतर मुनाफा कमा सकते हैं.
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धीरे-धीरे भारत में भी आलू पाउडर की मांग बढ़ रही है. इसका एक बड़ा निर्यात बाजार है, विशेष रूप से यूरोप और एशिया में. इसके अलावा, घरेलू बाजार में भी आलू पाउडर की अच्छी खासी मांग है, जो किसानों और उद्यमियों के लिए एक लाभकारी अवसर प्रदान करता है. आलू पाउडर का उपयोग कई तरह के खाद्य उत्पादों जैसे स्नैक्स, सूप, सॉस और अन्य व्यंजनों में गाढ़ा करने वाले एजेंट के रूप में किया जाता है. यही कारण है कि होटल, रेस्तरां, कैफे, रिजॉर्ट और कैटरिंग सेवाएं इसे तेजी से अपना रही हैं. भारत से इज़राइल, ब्राज़ील और इंडोनेशिया सहित कई देशों में आलू पाउडर का निर्यात किया जा रहा है.
कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार, आलू पाउडर निर्माण व्यवसाय शुरू करने के लिए 15-20 लाख रुपये तक के शुरुआती निवेश की जरूरत हो सकती है. इसमें प्लांट की क्षमता, स्थान और उपकरणों की लागत शामिल होती है. इसके अलावा, कच्चे माल, श्रम और अन्य खर्चों के लिए वर्किंग कैपिटल की भी जरूरत होगी. इस व्यवसाय को शुरू करने के लिए इन उपकरणों की जरूरत होगी. पोटेटो पीलिंग मशीन, ग्राइंडिंग मशीन, पैकेजिंग मशीन, स्टीम एलसीडी इत्यादि.
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आलू पाउडर की कीमत 120-130 रुपये प्रति किलो होती है. इसकी शेल्फ लाइफ एक साल तक होती है. अगर किसान सिर्फ कच्चे आलू को बेचने के बजाय प्रोसेसिंग के माध्यम से उत्पाद तैयार करें, तो वे अपनी आय को दोगुना कर सकते हैं. आलू प्रसंस्करण की मांग लगातार बढ़ रही है, जिससे यह व्यवसाय किसानों और उद्यमियों के लिए एक बेहतरीन अवसर साबित हो सकता है.