अगले महीने से आम और लीची पर फूल यानी बौर आने का सिलसिला शुरू हो जाएगा. अधिकांश जगहों पर फरवरी के दूसरे हफ्ते से बौर आना शुरू हो जाता है. अगर मौसम ने साथ दिया और बेमौसम बारिश नहीं हुई तो इस बार आम और लीची पर जबर्दस्त बौर आएगी. हालांकि किसानों को भी खास सावधानी बरतने की जरूरत होती है ताकि पेड़ों पर फूल झड़ें नहीं. फरवरी से लेकर मार्च के महीने तक बौर लगने का क्रम शुरू होता है जिसके बाद फल बनने की प्रक्रिया शुरू हो जाती है.
बौर आने से पहले ही किसानों को कुछ बातों का ध्यान रखना चाहिए. जनवरी बीत गया और फरवरी आने को है. लिहाजा किसान बौर बनने की अवस्था में आम और लीची में कतई सिंचाई न करें. किसान उस समय सिंचाई करेंगे तो फायदा होने के बजाय बौर को भारी नुकसान हो जाएगा. इसके बाद आपको यह भी ध्यान रखना है कि बौर के बाद जब छोटे फल (अमिया या टिकोला) आने शुरू हो जाएं तो उसे गिरने से रोकने का पूरा इंतजाम होना चाहिए.
आम के साथ लीची में भी छोटे फलों के गिरने की भारी समस्या होती है. इससे लगभग हर किसान परेशान होता है. ऐसे में जब आम और लीची के फल मटर के दाने के बराबर हो जाएं तो प्लानोफिक्स दवा एक एमएल 3 लीटर पानी के साथ घोल बनाकर पेड़ों पर छिड़काव करना चाहिए. जब पेड़ों पर पूरी तरह से फल लग जाएं तभी किसान को सिंचाई शुरू करनी चाहिए.
आम और लीची में बौर आने के समय किसानों को कीटों की भी निगरानी करनी चाहिए. सबसे अधिक खतरा मिलीबग कीट से होता है. यह कीट आम या लीची के पेड़ न चढ़े, इसके लिए तनों के चारों तरफ पॉलीथीन बांध देना चाहिए. किसानों को सलाह दी जाती है कि वे इस कीट से बचाव के लिए जनवरी और फरवरी महीने में खास सावधानी बरतें. अगर सावधानी नहीं बरतेंगे और दवा नहीं डलेंगे तो कीट पेड़ पर चढ़ जाएंगे.
अगर मिलीबग कीट का हमला आम और लीची पर हो जाए तो किसान को हाईमेथोएट 30 ईसी या क्विनालफास 25 ईसी दवाई का 1.5 एमएल दवा मात्रा प्रति लीटर पानी में घोलकर पेड़ और डालियों पर छिड़काव करना चाहिए. ध्यान रखना है कि बौर निकल जाने और जब तक मटर के दाने के बराबर फल न बन जाए तब तक पेड़ों पर किसी भी केमिकल स्प्रे का छिड़काव नहीं करना है. यह भी ध्यान रहे कि बौर बनने और फल आने के समय मिट्टी में पर्याप्त नमी होनी चाहिए. किसान को मिट्टी में पर्याप्त नमी का ध्यान रखना चाहिए.