खेसारी एक बहुत पुरानी और अहम दलहनी फसल है, जो मुख्य रूप से छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, बिहार और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में उगाई जाती है. इस फसल की सबसे बड़ी खूबी यह है कि यह बहुत खराब मौसम और मुश्किल हालात में भी अच्छी पैदावार दे सकती है, तब भी जब दूसरी फसलें फेल हो जाती हैं. पहले जो किसान वर्षा आधारित खेती के कारण खरीफ में सिर्फ धान ही ले पाते थे और रबी में उनके खेत खाली रह जाते थे, वे अब 'उतेरा विधि' से खेसारी उगाकर अपनी आमदनी बढ़ा सकते हैं.
खेसारी का उपयोग कई तरह से होता है. इसे दाल, साग और धान के पुआल के साथ मिलाकर पशुओं के चारे के रूप में भी इस्तेमाल किया जाता है. पहले इसमें 'न्यूरोटॉक्सिन' नाम का एक हानिकारक तत्व पाया जाता था, जिस वजह से इसका उपयोग कम होता था. लेकिन अब नई और सुरक्षित किस्मों के आने से यह समस्या भी खत्म हो गई है. इसलिए, 'उतेरा विधि' से इसकी खेती करना किसानों के लिए अब बेहद लाभ का सौदा बन गया है.
'उतेरा' या 'पैरा' खेती एक बहुत पुराना और असरदार तरीका है, जिससे किसान एक ही खेत में सालभर में एक से ज्यादा फसलें उगा पाते हैं. इस तरीके में, धान की फसल कटने से 15-20 दिन पहले ही, खेसारी के बीजों को उस खड़े धान के खेत में छिड़क दिया जाता है. यह विधि खास तौर पर झारखंड, बिहार, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में अपनाई जाती है. इसका सबसे बड़ा फायदा यह है कि धान कटने के बाद खेत में जो नमी बची रहती है, नई फसल उसी नमी का इस्तेमाल करके उग जाती है. इससे फसल को अलग से सिंचाई की जरूरत लगभग नहीं पड़ती और सिंचाई का खर्चा बच जाता है.
किसानों के लिए खेसारी की कई सुरक्षित और उन्नत किस्में मौजूद हैं, जो कम खतरे के साथ अच्छी पैदावार देती हैं. 'रतन' किस्म 105-115 दिनों में पक जाती है. 'प्रतीक' किस्म 110-115 दिनों में तैयार होती है. 'महातिवड़ा' एक जल्दी पकने वाली किस्म है, जो 95-105 दिनों में तैयार होती है. 'निर्मल' किस्म 105-110 दिनों तैयार होती है. वहीं, 'पूसा-110-115 दिनों में तैयार होती है.
उतेरा विधि से खेसारी की खेती के लिए, भारी मिट्टी वाली जमीन सबसे अच्छी मानी जाती है, क्योंकि यह मिट्टी लंबे समय तक नमी को पकड़कर रखती है. बुआई का सबसे सही समय धान की कटाई से 15-20 दिन पहले होता है, जब धान की बालियां पकने लगती हैं. कैलेंडर के हिसाब से, यह समय 15 अक्टूबर से 15 नवंबर के बीच पड़ता है. उतेरा विधि से छिड़काव कर देते हैं. अगर खेत में ज्यादा पानी भरा है, तो उसे निकाल देना चाहिए, वरना बीज सड़ सकते हैं. इस विधि के लिए, प्रति एकड़ 30-32 किलोग्राम बीज की जरूरत होती है.
उतेरा विधि में फसल मुख्य रूप से खेत में बची हुई नमी और पहले से मौजूद उर्वरता पर ही उगती है, इसलिए इसे अलग से बहुत ज्यादा खाद की जरूरत नहीं होती. फिर भी, अच्छी पैदावार सुनिश्चित करने के लिए प्रति एकड़ लगभग 8 किलो नाइट्रोजन, 20 किलो फास्फोरस, 12 किलो पोटाश और 8 किलो सल्फर की मात्रा का प्रयोग करने की सलाह दी जाती है. इसके अलावा, फसल की सेहत और विकास को बढ़ावा देने के लिए दो बार पत्तों पर छिड़काव करना बहुत फायदेमंद होता है.
उतेरा विधि से खेसारी की खेती करना किसानों के लिए बहुत किफायती सौदा है. इसमें प्रति एकड़ यह खर्चा सिर्फ 6,000 से 7,300 रुपये के बीच होता है. प्रति एकड़ लगभग 5 से 5.5 क्विंटल उपज मिलती है. अगर बाजार में 4,000 रुपये प्रति क्विंटल (40 से 50 रुपये प्रति किलो) का भाव मिलता है, तो सही तरीके अपनाने से प्रति एकड़ 13,000 से 15,000 रुपये से ज्यादा का शुद्ध मुनाफा कमा सकते हैं.