सब्जी की फसलों में बैंगन ही एक ऐसी फसल है जिसकी खेती में किसान को कई बड़ी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है. बैंगन की फसलों में फल और तना छेदक कीट किसानों के लिए बड़ी चुनौती हैं. इसके रोकथाम के लिए किसान भारी मात्रा में रासायनिक कीटनाशकों का प्रयोग करते हैं जो पर्यावरण अनुकूल नहीं है. भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिक मिर्जापुर के नक्कूपुर गांव में बैंगन के फल और तना छेदक कीडे़ को जैविक तरीके से खत्म करने पर काम कर रहे हैं. किसान लोलारक सिंह के खेत पर फेरोमोन ट्रैप लगाकर तना वेधक किट पर नियंत्रण के उपाय किए गए हैं. प्रधान वैज्ञानिक डॉ. सुदर्शन मौर्या ने बताया कि जैविक तकनीक के माध्यम से फसल सुरक्षा की जानकारी भी किसान को दी गई है. किसान को बिना रासायनिक दवाओं के छिड़काव से तना और फल छेदक कीट पर नियंत्रण के उपाय भी बताए गए.
ये भी पढ़ें : Dairy: एनालॉग पनीर खिलाकर वसूल रहे दूध से बने पनीर की कीमत, जानें डिटेल
बैंगन का तना और फल छेदक कीट सबसे बड़ा दुश्मन माना जाता है. इस कीट के चलते बैंगन की उपज कम ही नहीं होती है बल्कि फल की गुणवत्ता भी प्रभावित होती है. इसकी वजह से किसान को फसल का मूल्य भी कम मिलता है. बैंगन की फसल को तना वेधक कीट के लार्वा नुकसान पहुंचाते हैं. फरवरी और मार्च महीने में कीट के वयस्क मादा दूधिया रंग के अंडे को एक-एक करके पत्तियों की निचली सतह, तनों और फूलों की कलियों पर देते हैं जिसके कारण पौधे के तना मुरझा कर लटक जाते हैं और बाद में सुख जाते हैं. पौधों के फल आने पर लार्वा फलों में छेद बनाकर अंदर प्रवेश करके अपने मलमूत्र से उसे बंद कर देते हैं. कीट के द्वारा छिद्रों से फफूंद और जीवाणु फलों के अंदर प्रवेश करते हैं जिसके बाद फल में सड़न होने लगती है. पूरी तरीके से विकसित लार्वा गुलाबी और भूरे सर वाला होता है.