जून के महीने में अचानक बढ़ी गर्मी और तापमान के अचानक बढ़ोतरी से खरीफ की कई सब्जियों वाली फसलों पर बुरा असर पड़ा है. खासकर भिंडी की फसल पीला मोजेक, चूर्णिल फफूंदी, फल छेदक और कटुवा कीट जैसे रोगों से प्रभावित हो रही है, जिससे किसानों को भारी नुकसान उठाना पड़ रहा है. दरअसल, अधिक गर्मी पड़ने से भिंडी की फसल पीला पड़ने लगी है. ऐसे में कृषि विशेषज्ञों का कहना है कि अगर इन रोगों का समय पर प्रभावी नियंत्रण नहीं किया जाए, तो किसानों को भारी नुकसान का सामना करना पड़ रहा है. ऐसे में आइए जानते हैं कि भिंडी की फसल को रोग से कैसे बचाएं.
पीला मोजैक रोग भिंडी की फसल में आम तौर पर सफेद मक्खी के कारण फैलता है. इससे पत्तियों की नसें पीली हो जाती हैं और धीरे-धीरे पूरा पौधा पीला पड़ जाता है. इसकी रोकथाम के लिए किसान इमिडाक्लोप्रिड 2 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें. फिर 15 दिन बाद थायमेथाएट 2 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी में घोलकर दोबारा छिड़काव करने से रोग पर प्रभावी नियंत्रण पाया जा सकता है.
फली तना छेदक कीट फलियों में छेद कर अंदर बीज को नुकसान पहुंचाते हैं. इससे फली खाने योग्य नहीं रहती है. ये कीट पौधे की अंतिम शाखाओं तक छेद कर देते हैं. इससे पौधे का ऊपरी हिस्सा मुरझा जाता है. इस कीट को नियंत्रित करने के लिए एमामेक्टिन बेंजोएट 2 ग्राम/10 लीटर या स्पिनोसैड 1 मि.ली. 3 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें और अंडा परजीवी ट्राइकोडर्मा खेत में डालने से इस कीट का प्रकोप काफी कम हो जाता है. इसके अलावा भिंडी की पत्ती को काटने वाले कीट को मारने के लिए साइपरमेथ्रिन 0.5 मि.ली./लीटर पानी में घोलकर 15 दिनों के अंतराल पर छिड़कना चाहिए. इससे फली तना छेदक कीट नियंत्रित रहते हैं.
विशेषज्ञों ने किसानों से अपील की है कि वे समय-समय पर अपने खेतों का निरीक्षण करें और किसी भी प्रकार के रोग या कीट के लक्षण दिखने पर तुरंत उपयुक्त कीटनाशकों का प्रयोग करें. साथ ही प्राकृतिक तरीकों को भी अपनाएं, ताकि पर्यावरण के साथ-साथ फसल भी सुरक्षित रहे. इसके अलावा जून महीने में किसानों को 10-12 दिनों के अंतराल पर भिंडी की सिंचाई करनी चाहिए. इससे पौधों का विकास तेजी से होता है. वहीं, किसान बातों का भी ध्यान रखें कि इन सभी कीटनाशकों के छिड़काव के बाद भिंडी की तुड़ाई के दौरान सावधानी बरतें.