इस साल की बेमौसम भारी बारिश और विनाशकारी बाढ़ ने हमारी मेहनत पर पानी फेर दिया है. उत्तर भारत के कई राज्यों, खासकर पंजाब, हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर और राजस्थान में, खेतों में खड़ी हमारी खरीफ की फसलें पूरी तरह से तबाह हो गई हैं. कई-कई दिनों तक खेतों में पानी भरा रहने से पौधे गल गए और हमारी सारी उम्मीदें धुल गईं. ऐसे मुश्किल समय में निराश होना स्वाभाविक है. लेकिन हमें हिम्मत नहीं हारनी है. कृषि विशेषज्ञों का मानना है कि अगर हम सही योजना बनाकर और सूझबूझ से काम लें, तो इस भारी नुकसान की भरपाई कर सकते हैं. बाढ़ का पानी उतरने के बाद हमारे पास अभी भी इतना समय है कि हम कम अवधि में तैयार होने वाली कुछ खास फसलें लगाकर न केवल अपनी लागत निकाल सकते हैं, बल्कि अच्छा मुनाफा भी कमा सकते हैं. पंजाब कृषि विश्वविद्यालय, लुधियाना के वैज्ञानिकों ने इस मुश्किल घड़ी में किसानों की मदद के लिए एक योजना तैयार की है.
तिलहनी फसल तोरिया किस्म TL-17 को सितंबर के पहले 15 दिनों में बोया जा सकता है. यह बहुत ही कम समय में, लगभग 80-90 दिनों में पककर तैयार हो जाती है. इसकी पैदावार 4 से 5 क्विंटल प्रति एकड़ तक होती है. इसका सबसे बड़ा फायदा यह है कि तोरिया की कटाई के बाद आपका खेत रबी की मुख्य फसल, यानी गेहूं की बुवाई के लिए समय पर खाली हो जाएगा. इस तरह आप एक ही सीज़न में दो फसलों का लाभ ले सकते हैं. बाढ़ के बाद बाज़ार में सब्ज़ियों की भारी कमी हो जाती है, जिससे उनके दाम बहुत अच्छे मिलते हैं. आप इस मौके का फायदा उठा सकते हैं. सितंबर के मध्य से अंत तक का समय अगेती आलू की बुवाई के लिए उत्तम है. आप कुफरी सूर्या जो गर्मी सहने वाली किस्म है या कुफरी पुखराज जैसी जल्दी तैयार होने वाली किस्मों का चुनाव कर सकते हैं.
इसी तरह, मटर की 'मटर अगेती-7' किस्म भी सितंबर के अंत में बोई जा सकती है. यह सिर्फ 65-70 दिनों में पहली तुड़ाई के लिए तैयार हो जाती है और एक एकड़ में 30-32 क्विंटल तक हरी फली की पैदावार दे सकती है. इसके आलावा पंजाब माघरी ब्रोकली की किस्म पंजाब ब्रोकली-1 या, गाजर, मूली, शलजम और पालक जैसी सब्ज़ियां भी लगा सकते हैं. ये सभी फसलें 2 से 3 महीनों के अंदर तैयार हो जाती हैं और आपको जल्दी नकद आमदनी देती हैं.
जिनके पास पशु हैं, उनके लिए बाढ़ के बाद हरे चारे की समस्या खड़ी हो जाती है. आप इस समस्या का समाधान अपने खेत से ही कर सकते हैं. सितंबर के अंत तक आप पशुओं के लिए मकई, बाजरा और ज्वार जैसी फसलें बो सकते हैं. ये फसलें बहुत तेजी से बढ़ती हैं और पशुओं के लिए बहुत पौष्टिक होती हैं. इससे आपका बाजार से महंगा चारा खरीदने का खर्च बचेगा और आपके पशु भी स्वस्थ रहेंगे.
बाढ़ के बाद अगली फसल की जल्दबाजी करने से पहले खेत को तैयार करना सबसे जरूरी है. बाढ़ का पानी मिट्टी की ऊपरी परत को पत्थर जैसा सख्त बना देता है. इस परत को तोड़ने के लिए खेत की गहरी जुताई करें, ताकि मिट्टी फिर से नरम और भुरभुरी हो जाए और उसमें हवा आसानी से आ-जा सके. बाढ़ खेत के जरूरी पोषक तत्वों को भी बहा ले जाती है. मिट्टी की ताकत लौटाने के लिए उसमें अच्छी तरह सड़ी हुई गोबर की खाद या कम्पोस्ट डालें. इससे मिट्टी दोबारा उपजाऊ बनेगी. सबसे सटीक जानकारी के लिए अपनी मिट्टी की जांच ज़रूर कराएं. इससे आपको पता चल जाएगा कि खेत में किस खाद की कितनी ज़रूरत है, जिससे आपका पैसा भी बचेगा. जब खेत पूरी तरह तैयार हो जाए, तब आप सितंबर में अगली फसल की बुवाई करें.
यह समय मुश्किल ज़रूर है, लेकिन सही जानकारी और समय पर की गई मेहनत से हम इस आपदा के असर को कम कर सकते हैं और एक नई शुरुआत कर सकते हैं.