Jeera Farming: जीरा-4 किस्म की खेती: 100–120 दिनों में लाखों कमाने का बेहतरीन मौका

Jeera Farming: जीरा-4 किस्म की खेती: 100–120 दिनों में लाखों कमाने का बेहतरीन मौका

कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार जीरा–4 किस्म जल्दी पकने वाली वैरायटी है, जो औसतन 100 से 120 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है. इसकी खासियत यह है कि यह रोगों के प्रति काफी हद तक प्रतिरोधी है जिससे फसल का जोखिम कम हो जाता है. जहां सामान्य किस्में 6–7 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक देती हैं, वहीं जीरा–4 किस्‍म करीब 8–10 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उत्पादन देने की क्षमता रखती है.

jeera-4 varietyjeera-4 variety
क‍िसान तक
  • New Delhi ,
  • Nov 26, 2025,
  • Updated Nov 26, 2025, 3:18 PM IST

जीरे की खेती हमेशा से किसानों के लिए फायदे का सौदा मानी जाती रही है, लेकिन हाल के वर्षों में जीरा–4 (RC-4) किस्म ने कम समय में अधिक उत्पादन और बेहतर बाजार भाव के कारण किसानों की आमदनी को कई गुना बढ़ा दिया है. यह किस्म न सिर्फ 100–120 दिनों में तैयार हो जाती है बल्कि इसकी पैदावार और गुणवत्ता दोनों ही उच्च स्तर की मानी जाती हैं. यह किस्‍म गुजरात और राजस्‍थान के किसानों के बीच खासी लोकप्रिय है. जीरे की खपत देश और विदेश दोनों में लगातार बढ़ रही है. मसाला इंडस्‍ट्री से लेकर दवा और फूड इंडस्‍ट्री तक में इसके प्रयोग के कारण जीरा–4 की मांग तेजी से बढ़ रही है. हाई क्‍वालिटी और तीखी खुशबू के कारण यह किस्म एक्सपोर्ट मार्केट में भी पसंद की जा रही है.  

कम समय में तैयार, ज्यादा उत्पादन

कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार जीरा–4 किस्म जल्दी पकने वाली वैरायटी है, जो औसतन 100 से 120 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है. इसकी खासियत यह है कि यह रोगों के प्रति काफी हद तक प्रतिरोधी है जिससे फसल का जोखिम कम हो जाता है. जहां सामान्य किस्में 6–7 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक देती हैं, वहीं जीरा–4 किस्‍म करीब 8–10 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उत्पादन देने की क्षमता रखती है. जीरा–4 किस्म खासतौर पर उन किसानों के लिए बेहतर विकल्प बनकर उभरी है जो कम समय में ज्यादा मुनाफा कमाना चाहते हैं. कृषि विशेषज्ञों का मानना है कि आने वाले समय में इस किस्म की लोकप्रियता और बढ़ेगी, जिससे किसानों की आय में भी उल्लेखनीय सुधार होगा. 

कम लागत, ज्यादा मुनाफा

जीरे की फसल में वैसे भी पानी की जरूरत बेहद कम होती है और जीरा–4 किस्म सूखा सहनशील भी मानी जाती है. जिन क्षेत्रों में सिंचाई सीमित होती है, वहां भी किसान इसे आसानी से उगा सकते हैं. एक हेक्टेयर में खेती की कुल लागत लगभग 25 से 35 हजार रुपये तक आती है, जबकि पैदावार और बाजार भाव को देखते हुए किसानों को 1 से 1.5 लाख रुपये तक की कमाई आसानी से हो सकती है. रबी सीजन में जीरे की कीमत अक्सर बढ़ जाती है, जिससे लाभ और भी अधिक मिलने की संभावना रहती है. 

रोगों से बचाव में सक्षम

जीरा–4 किस्म ठंडे और शुष्क मौसम में अच्छी तरह विकसित होती है. दोमट, बलुई दोमट और अच्छी जल निकासी वाली मिट्टी इसके लिए आदर्श मानी जाती है. बीज को बोने के लिए अक्टूबर से नवंबर का समय सबसे अच्छा होता है. किसान अगर संतुलित उर्वरक का उपयोग करें और हल्की सिंचाई करें तो फसल बेहतर गुणवत्ता के साथ तैयार होती है. जीरा–4 किस्म का सबसे बड़ा फायदा यह है कि यह ब्लाइट, मिल्ड्यू और फफूंद जनित रोगों के प्रति तुलनात्मक रूप से अधिक प्रतिरोधी है. इससे उत्पादन में गिरावट न के बराबर होती है और किसानों को फसल की निगरानी पर कम खर्च करना पड़ता है. 

सीड ट्रीटमेंट है बेहद जरूरी 

जीरा–4 किस्म की अच्छी और स्वस्थ फसल के लिए बीज उपचार बेहद जरूरी होता है. बोआई से पहले बीजों को फफूंदनाशक दवा जैसे थायरम या कार्बेन्डाजिम (2–3 ग्राम प्रति किलो बीज) से ट्रीटमेंट करना चाहिए, जिससे ब्लाइट और फफूंद जनित रोगों का जोखिम कम होता है. कुछ किसान ट्राइकोडर्मा जैसे बायो-ट्रीटमेंट का भी उपयोग करते हैं, जो मिट्टी जनित रोगों से प्राकृतिक सुरक्षा प्रदान करता है. बीज उपचार से अंकुरण दर बेहतर होती है और फसल की शुरुआती वृद्धि मजबूत होती है. 

एक हेक्‍टेयर में कितने बीज काफी 

एक हेक्टेयर क्षेत्र में जीरा–4 की खेती के लिए लगभग 10 से 12 किलोग्राम बीज पर्याप्त माना जाता है. अगर मिट्टी हल्की हो या बोआई लाइन ड्रिल विधि से की जा रही हो, तो बीज की मात्रा 8–10 किलोग्राम भी काफी हो सकती है. सही मात्रा में और समान दूरी पर बीज डालने से पौधों की वृद्धि बेहतर होती है, पौधों के बीच प्रतिस्पर्धा कम होती है और कुल पैदावार में बढ़ोतरी होती है.

यह भी पढ़ें- 

MORE NEWS

Read more!