Smart Farming: ग्राफ्टिंग से उगाएं टमाटर और पाएं ज्यादा मुनाफा, जानें इसके बारे में सबकुछ 

Smart Farming: ग्राफ्टिंग से उगाएं टमाटर और पाएं ज्यादा मुनाफा, जानें इसके बारे में सबकुछ 

Smart Farming: दरअसल ग्राफ्टिंग एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें दो अलग-अलग पौधों के हिस्सों को जोड़कर एक नया पौधा तैयार किया जाता है. इसमें एक हिस्सा 'रूटस्टॉक' (जड़ और तना वाला पौधा) और दूसरा 'स्कियन' यानी उपज देने वाला हिस्सा होता है. टमाटर की खेती में आमतौर पर ऐसे रूटस्टॉक चुने जाते हैं जो रोगों और प्रतिकूल परिस्थितियों को सहन कर सकें. जबकि स्कियन उच्च गुणवत्ता और अधिक उपज देने वाली किस्मों से लिया जाता है. 

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क‍िसान तक
  • New Delhi ,
  • Jul 07, 2025,
  • Updated Jul 07, 2025, 6:50 AM IST

भारत में पारंपरिक खेती को आधुनिक और लाभकारी बनाने की दिशा में ग्राफ्टिंग तकनीक एक क्रांतिकारी कदम साबित हो रही है. खासकर टमाटर की खेती में इसका उपयोग किसानों को कम लागत में अधिक उत्पादन और मुनाफा देने की क्षमता रखता है. जलवायु परिवर्तन, कीटों का बढ़ता प्रकोप और मिट्टी की खराब होती गुणवत्ता, किसानों को नई तकनीकों को अपनाने के लिए मजबूर करने लगी है. कृषि विशेषज्ञों की मानें तो ग्राफ्टिंग तकनीक न सिर्फ उत्पादन बढ़ाती है बल्कि फसल को टिकाऊ और रोग-प्रतिरोधी भी बनाती है. आज के समय में जहां खेती जोखिम भरा काम बनती जा रही है, वहीं ग्राफ्टिंग तकनीक एक सुरक्षित और फायदेमंद विकल्प बन रही है. टमाटर जैसी नकदी फसल में इसका इस्तेमाल किसानों के लिए फायदेमंद हो सकता है. विशेषज्ञों के अनुसार अगर सही जानकारी और ट्रेनिंग हो तो यह तकनीक ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूती दे सकती है. 

ग्राफ्टिंग क्या है और टमाटर में इसका प्रयोग 

दरअसल ग्राफ्टिंग एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें दो अलग-अलग पौधों के हिस्सों को जोड़कर एक नया पौधा तैयार किया जाता है. इसमें एक हिस्सा 'रूटस्टॉक' (जड़ और तना वाला पौधा) और दूसरा 'स्कियन' यानी उपज देने वाला हिस्सा होता है. टमाटर की खेती में आमतौर पर ऐसे रूटस्टॉक चुने जाते हैं जो रोगों और प्रतिकूल परिस्थितियों को सहन कर सकें. जबकि स्कियन उच्च गुणवत्ता और अधिक उपज देने वाली किस्मों से लिया जाता है. 

कैसे करें ग्राफ्टिंग

सबसे पहले ऐसे बीज चुनें जो रोग प्रतिरोधक हों और स्थानीय जलवायु के अनुसार हों. 
रूटस्टॉक और स्कियन दोनों के लिए अलग-अलग बीज बोए जाते हैं. 
जब दोनों पौधे 3-4 इंच ऊंचाई तक बढ़ जाएं, तब 45 डिग्री कोण पर दोनों की कटाई करें. 
कटे हुए हिस्सों को एक-दूसरे से मिलाकर ग्राफ्टिंग क्लिप्स या टेप से मजबूती से जोड़ें. 
फिर इन्हें 7-10 दिन तक अंधेरी और नमी वाली जगह में रखें. 
धीरे-धीरे पौधों को धूप और खुले वातावरण में रखें. 
इसके बाद इन पौधों को खेत में रोप दिया जाता है.  

ग्राफ्टिंग के फायदे 

रूटस्टॉक की ताकत के कारण पौधा कई मिट्टीजनित बीमारियों से सुरक्षित रहता है. 
सूखा या अधिक तापमान होने पर भी पौधा जल्‍दी खराब नहीं होता है. 
सामान्य पौधों की तुलना में ग्राफ्टेड पौधे 25 से 30 फीसदी ज्यादा उपज देते हैं. 
कीटनाशक, उर्वरक और दवाइयों पर खर्च घटता है जिससे लागत कम होती है. 

मुनाफा कैसे बढ़ता है?

ग्राफ्टेड टमाटर की मांग बाजार में ज्यादा होती है क्योंकि ये आकार, रंग और स्वाद में बेहतर होते हैं. किसान इनसे प्रति एकड़ 20-25 क्विंटल तक अतिरिक्त उत्पादन ले सकते हैं. साथ ही, फसल की उम्र अधिक होने के कारण बार-बार खेती की जरूरत नहीं पड़ती. कई किसानों ने इस तकनीक को अपनाकर अच्‍छा-खासा मुनाफा कमाया भी है और कई इसके बारे में ट्रेनिंग ले रहे हैं. साफ है कि भारत में अब इस टेक्निक की मांग भी बढ़ने लगी है.

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