भारत में करी पत्ते का चलन काफी ज्यादा है. दक्षिण से लेकर उत्तर, मध्य और पश्चिमी भारत तक इसका प्रयोग जमकर होता है. इसे कई जगहों पर मीठी नीम या कढ़ी पत्ता भी कहा जाता है. यह भोजन में स्वाद तो बढ़ाता ही साथ ही साथ इसमें कई औषधीय गुण भी होते हैं. हालांकि कई बार बालकनी में लगा करी पौधा खराब हो जाता है. असल में इस पौधे की सही देखभाल और पोषण के लिए प्राकृतिक खादों बहुत जरूरी होती हैं. आज हम आपको एक ऐसे उपाय के बारे में बताने जा रहे हैं जो आपके किचन में ही मौजूद है. इसका नियमित प्रयोग आपके करी पत्ते को घनी झाड़ी में बदल देगा.
यह उपाय कुछ और नहीं बल्कि छाछ या बटर मिल्क या फिर मट्ठा है. छाछ वह घरेलू और जैविक उपाय है, जो करी पत्ते के पौधे की सेहत को बेहतर बनाने में बेहद फायदेमंद साबित होता है. छाछ, दही से मक्खन निकालने के बाद बचा हुआ एक ऐसा लिक्विड होता है जो प्रोबायोटिक बैक्टीरिया, कैल्शियम, लैक्टिक एसिड, और बाकी पोषक तत्वों से भरपूर होता है. ये पोषक तत्व इंसानों के लिए फायदेमंद तो हैं ही साथ ही साथ पौधों को बढ़ने में भी मदद करते हैं.
छाछ का नियमित और सही प्रयोग मिट्टी की क्वालिटी को बेहतर बनाता है. यह मिट्टी में गुड बैक्टीरिया को बढ़ाता है जो मिट्टी की उर्वरता को बढ़ाते हैं. साथ ही इससे पौधे की जड़ें पोषक तत्वों को बेहतर तरीके से ऑब्जर्व कर पाती हैं. छाछ को पानी में मिलाकर उपयोग करने से यह एक प्रकार की तरल जैविक खाद का काम करती है. इसमें मौजूद लैक्टिक एसिड पौधे के लिए फायदेमंद बैक्टीरिया को बढ़ाने में मदद करते हैं.
वहीं छाछ में मौजूद बैक्टीरिया कुछ हानिकारक फफूंदों और कीटों को मारने में मदद करते हैं. इससे करी पत्ते के पौधे को फंगस की बीमारी से बचाया जा सकता है. नियमित अंतराल पर छाछ का प्रयोग करने से पत्तों का रंग ज्यादा हरा और चमकदार होता है. साथ ही पौधे की शाखाएं अधिक फैलती हैं.
एक भाग छाछ को तीन से चार भाग पानी में मिलाएं. इस घोल को सप्ताह में एक बार पौधे की जड़ों में डाल सकते हैं या पत्तों पर छिड़क सकते हैं. गर्मियों में छाछ का बहुत ज्यादा प्रयोग न करें नहीं तो बदबू आ सकती है और कभी-कभी फफूंदी भी लग सकती है. इसलिए सीमित मात्रा ही प्रयोग करें. छाछ के साथ नीम का तेल या हल्दी मिलाकर प्रयोग करने से कीट नियंत्रण और भी प्रभावी हो सकता है. छाछ को या तो सुबह प्रयोग करें या फिर शाम के समय में जब धूप बहुत ज्यादा तेज न हो.
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