पंजाब में चुकंदर की खेती...कैसे मिट्टी से निकल रही किसानों के लिए मुनाफे की नई राह

पंजाब में चुकंदर की खेती...कैसे मिट्टी से निकल रही किसानों के लिए मुनाफे की नई राह

पंजाब में लंबे समय से धान-गेहूं की दोहरी फसल प्रणाली अपनाई जाती रही है, जिससे मिट्टी की उर्वरता घट रही थी और भूजल स्तर लगातार नीचे जा रहा था. ऐसे में राज्य के कृषि विभाग और कई प्रगतिशील किसानों ने वैकल्पिक फसलों की ओर रुख किया. इनमें से चुकंदर सबसे प्रमुख बनकर उभरी है.

Beetroot seedsBeetroot seeds
क‍िसान तक
  • New Delhi ,
  • Nov 03, 2025,
  • Updated Nov 03, 2025, 6:05 AM IST

पंजाब, जिसे पारंपरिक रूप से धान और गेहूं की खेती के लिए जाना जाता है, अब धीरे-धीरे फसलों में विविधता की ओर बढ़ रहा है. किसानों के बीच अब एक नई फसल चर्चा में है, चुकंदर. यह फसल न केवल मिट्टी के लिए फायदेमंद साबित हो रही है, बल्कि किसानों के लिए बेहद मुनाफे का सौदा भी बनती जा रही है. पंजाब के किसान इस बात को बखूबी समझ गए हैं कि मुनाफा सिर्फ पारंपरिक फसलों में नहीं, बल्कि विविधता अपनाने में है. राज्‍य में फगवाड़ा और कपूरथला में हो रही चुकंदर की खेती ने साबित किया है कि कम लागत, कम पानी और ज्‍यादा उत्पादन के साथ यह फसल एक स्थायी विकल्प बन सकती है. 

धान-गेहूं के चक्‍कर से बाहर निकले! 

पंजाब में लंबे समय से धान-गेहूं की दोहरी फसल प्रणाली अपनाई जाती रही है, जिससे मिट्टी की उर्वरता घट रही थी और भूजल स्तर लगातार नीचे जा रहा था. ऐसे में राज्य के कृषि विभाग और कई प्रगतिशील किसानों ने वैकल्पिक फसलों की ओर रुख किया. इनमें से चुकंदर सबसे प्रमुख बनकर उभरी है. चुकंदर की खेती से न केवल किसान को अच्छी आमदनी होती है, बल्कि यह कम पानी और कम लागत में भी बेहतर उत्पादन देती है. इसके साथ ही इसकी फसल का इस्तेमाल चीनी उद्योग, एथेनॉल उत्पादन और पशु आहार के रूप में किया जा सकता है, जिससे बाजार में इसकी मांग लगातार बढ़ रही है. 

कम लागत, ज्‍यादा फायदा  

चुकंदर की खेती में प्रति एकड़ लागत करीब 20,000 से 25,000 रुपये आती है. वहीं प्रति एकड़ उपज 350 से 400 क्विंटल तक मिल जाती है. अगर बाजार में चुकंदर का की कीमत 400 रुपये से 500 रुपये प्रति क्विंटल रहती है तो किसान को एक एकड़ से करीब 1.5 से 2 लाख रुपये तक की आमदनी हो जाती है. इसके अलावा यह फसल 120 से 140 दिनों में तैयार हो जाती है, जिससे किसान उसी खेत में एक और फसल भी ले सकते हैं. यानी एक ही साल में दोहरी कमाई की संभावना बढ़ जाती है. चुकंदर की जड़ें मिट्टी को ढीला करती हैं, जिससे मिट्टी की संरचना सुधरती है और अगली फसल को बेहतर पोषक तत्व मिलते हैं. साथ ही यह फसल कम सिंचाई में भी बढ़ जाती है, जिससे भूजल दोहन पर नियंत्रण होता है. 

सरकार और इंडस्‍ट्री की मदद 

राज्य सरकार और कुछ निजी चीनी मिलें किसानों को बीज, तकनीकी मार्गदर्शन और फसल खरीद की गारंटी दे रही हैं.  इससे किसानों को बाजार की चिंता नहीं करनी पड़ती. जालंधर, कपूरथला, होशियारपुर और फगवाड़ा जैसे जिलों में किसान अब चुकंदर की ओर तेजी से रुख कर रहे हैं. पंजाब एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी (पीएयू) ने भी किसानों के लिए ‘CoBeet’ जैसी उन्नत किस्में विकसित की हैं जो स्थानीय मौसम के अनुकूल हैं और उच्च उत्पादन देती हैं. 

MORE NEWS

Read more!