Ganoderma: फल के बाग में गैनोडर्मा का खतरा? जानिए रोकथाम और कारगर इलाज

Ganoderma: फल के बाग में गैनोडर्मा का खतरा? जानिए रोकथाम और कारगर इलाज

गैनोडर्मा फल के बागों का एक 'मौन हत्यारा' फफूंद है, जो पेड़ों को अंदर से सड़ा देता है. लेकिन सही जानकारी, समय पर पहचान और लगातार देखभाल से आप अपने कीमती बाग को इस मौन हत्यारे से बचा सकते हैं.

क‍िसान तक
  • New Delhi,
  • Aug 11, 2025,
  • Updated Aug 11, 2025, 6:27 PM IST

गैनोडर्मा एक ऐसी फफूंद (कवक) है जो लकड़ी को अंदर से गलाकर सड़ा देती है. वैसे तो दुनिया में इसे "रेशी" या "लिंग्ज़ी" नाम की एक महंगी औषधीय मशरूम के रूप में जाना जाता है, लेकिन किसानों के लिए यह फल के पेड़ों का एक बहुत बड़ा और छिपा हुआ दुश्मन है. यह फफूंद पेड़ को धीरे-धीरे खत्म कर देती है, जिससे भारी नुकसान होता है. गैनोडर्मा एक गंभीर समस्या है, लेकिन सही जानकारी, समय पर पहचान और लगातार देखभाल से आप अपने कीमती बाग को इस मौन हत्यारे से बचा सकते हैं. डॉ. राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय, पूसा समस्तीपुर, बिहार के पादप रोग विज्ञान एवं नेमेटोलॉजी विभाग के प्रमुख, डॉ एस.के. सिंह ने इस विषय पर विस्तार से जानकारी दी.

रोग की पहचान: पेड़ में कैसे दिखते हैं लक्षण?

डॉ एस.के. सिंह ने बताया कि यह रोग पेड़ की जड़ों और तने के निचले हिस्से से शुरू होता है और अंदर ही अंदर लकड़ी को खाने लगता है. इससे जड़ों से पत्तों तक पानी और भोजन का पहुंचना बंद हो जाता है. शुरुआत में इसे पहचानना मुश्किल होता है, लेकिन कुछ समय बाद यह लक्षण दिखाई देने लगते हैं इससे पत्तियां पीली पड़ने लगती हैं और मुरझा जाती हैं. और पेड़ की टहनियां सूखने लगती हैं. फलों का बनना कम हो जाता है या फल छोटे रह जाते हैं. पेड़ धीरे-धीरे पूरी तरह सूख जाता है. सबसे बड़ा संकेत है कि पेड़ के तने के निचले हिस्से या जड़ों के पास लकड़ी जैसा दिखने वाला मशरूम उग जाता है.

यह इतना खतरनाक क्यों है?

यह रोग बहुत धीरे-धीरे और अंदर ही अंदर फैलता है, इसलिए जब तक इसके लक्षण साफ़ दिखते हैं, तब तक बहुत देर हो चुकी होती है. गैनोडर्मा से कमजोर हुए पेड़ पर दूसरे कीड़े और बीमारियां आसानी से हमला कर देते हैं. एक बार यह फफूंद पेड़ की जड़ों और तने को पूरी तरह सड़ा दे, तो पेड़ को बचाना लगभग नामुमकिन हो जाता है.

बाग को कैसे बचाएं?

रोकथाम इलाज से हमेशा बेहतर है. अपने बाग को इस खतरनाक समस्या से बचाने के लिए पेड़ के तने के आसपास गिरी हुई पत्तियों, सड़े फलों और सूखी टहनियों को इकट्ठा करके नष्ट कर दें. इससे फफूंद को फैलने की जगह नहीं मिलती. पेड़ लगाते समय पंक्तियों के बीच पर्याप्त दूरी रखें ताकि अच्छी हवा का संचार हो और नमी न जमे. समय-समय पर पेड़ की सूखी, कमजोर और रोग लगी टहनियों को काटते रहें. खेत में निराई-गुड़ाई या किसी भी काम के दौरान पेड़ के तने और जड़ों को खरोंच या चोट लगने से बचाएं. इन्हीं घावों से फफूंद पेड़ के अंदर प्रवेश करती है. अगर कोई घाव हो जाए, तो उस पर तुरंत बोर्डो पेस्ट या कॉपर ऑक्सीक्लोराइड का लेप लगाएं.

क्या है इसका कारगर इलाज

बागों में गोबर की अच्छी सड़ी हुई खाद में ट्राइकोडर्मा मिलाकर पेड़ की जड़ों के पास डालें. यह गैनोडर्मा को बढ़ने से रोकता है. साल में दो बार (बरसात से पहले और बाद में) पेड़ के तने पर जमीन से 2-3 फीट ऊंचाई तक बोर्डो पेस्ट का लेप करें. अगर रोग का प्रकोप दिखे, तो किसी कृषि विशेषज्ञ की सलाह पर ही कवकनाशी का प्रयोग करें. हर 15-20 दिन में अपने बाग का चक्कर लगाएं और पेड़ों की जांच करें, खासकर तने के निचले हिस्से की. रोग का कोई भी लक्षण दिखने पर तुरंत किसी कृषि विशेषज्ञ से संपर्क करें.

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