Chickpea Crop care: चने की फसल बोने के बाद सही देखभाल से पाएं ज्यादा पैदावार

Chickpea Crop care: चने की फसल बोने के बाद सही देखभाल से पाएं ज्यादा पैदावार

बुआई के कुछ दिनों बाद अंकुरण निकलने लगता है. इस दौरान खेत में खरपतवार सबसे बड़ी समस्या है. खरपतवार न केवल फसल की वृद्धि को रोकते हैं, बल्कि चने की पौध से पोषक तत्व और नमी भी छीन लेते हैं. इसलिए बुआई के 25 से 30 दिन के भीतर पहली गुड़ाई-निराई करना बहुत जरूरी है. अगर खेत में खरपतवार नियंत्रण सही समय पर हो जाए, तो फसल की वृद्धि तेज होती है और पौधे मजबूत बनते हैं. 

चना की उन्नत किस्मचना की उन्नत किस्म
क‍िसान तक
  • New Delhi ,
  • Oct 05, 2025,
  • Updated Oct 05, 2025, 6:30 AM IST

भारत में चना किसानों की एक प्रमुख नकदी फसल है, जो रबी सीजन में बड़े पैमाने पर बोई जाती है. यह दाल न केवल किसानों की आय बढ़ाने में मदद करती है, बल्कि मिट्टी की उर्वरता को भी सुधारती है. हालांकि अच्छी उपज लेने के लिए सिर्फ बुआई ही काफी नहीं होती, बल्कि बुआई के बाद खेत और फसल की देखभाल बेहद जरूरी है. यदि किसान कुछ महत्वपूर्ण बातों का ध्यान रखें, तो वे कम लागत में अधिक उत्पादन प्राप्त कर सकते हैं. 

पानी की निकासी का रखें ध्‍यान 

चना बोने के बाद सबसे पहली जरूरत है कि खेत में नमी का स्तर संतुलित बना रहे. चना अधिक पानी सहन नहीं कर पाता, इसलिए बुआई के बाद खेत में पानी का ठहराव नहीं होना चाहिए. जिन क्षेत्रों में हल्की वर्षा होती है, वहां एक बार हल्की सिंचाई पर्याप्त होती है, लेकिन अधिक बारिश वाले इलाकों में जल निकासी का ध्यान रखना बहुत जरूरी है. मिट्टी में अधिक नमी रहने पर पौधों की जड़ें गलने का खतरा बढ़ जाता है. 

निराई-गुड़ाई भी जरूरी 

बुआई के कुछ दिनों बाद अंकुरण निकलने लगता है. इस दौरान खेत में खरपतवार सबसे बड़ी समस्या है. खरपतवार न केवल फसल की वृद्धि को रोकते हैं, बल्कि चने की पौध से पोषक तत्व और नमी भी छीन लेते हैं. इसलिए बुआई के 25 से 30 दिन के भीतर पहली गुड़ाई-निराई करना बहुत जरूरी है. अगर खेत में खरपतवार नियंत्रण सही समय पर हो जाए, तो फसल की वृद्धि तेज होती है और पौधे मजबूत बनते हैं. 

इन बीमारियों से रखें दूर 

चने की फसल को बीमारियों और कीटों से भी बचाना जरूरी है. खासकर उखठा रोग, फ्यूजेरियम विल्ट और चने की फली छेदक कीट किसानों के लिए सबसे बड़ी चुनौती माने जाते हैं. इनसे बचाव के लिए खेत की नियमित निगरानी करनी चाहिए. पौधों में बीमारी के लक्षण दिखते ही तुरंत उपाय करना चाहिए. रोग नियंत्रण के लिए बीज उपचार और जैविक उत्पादों का प्रयोग बेहतर माना जाता है. वहीं कीट प्रबंधन के लिए फेरोमोन ट्रैप और जैविक कीटनाशकों का प्रयोग फायदेमंद होता है. 

उर्वरक प्रबंधन भी है जरूरी 

उर्वरक प्रबंधन भी फसल की सफलता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. बुआई के बाद शुरुआती अवस्था में चना अधिक खाद नहीं मांगता, लेकिन फूल आने और फलियां बनने के समय पौधों को अतिरिक्त पोषण की आवश्यकता होती है. इस दौरान डीएपी, जिंक और सल्फर जैसे पोषक तत्व देने से फली की संख्या और गुणवत्ता बेहतर होती है.अगर किसान जैविक खाद जैसे गोबर की खाद या वर्मी कम्पोस्ट का प्रयोग करते हैं, तो इससे मिट्टी की संरचना भी बेहतर बनी रहती है.

फसल की नियमित निगरानी 

बोने के बाद फसल की नियमित निगरानी करना भी किसान की जिम्मेदारी होती है. खेत में पौधों की वृद्धि समान रूप से हो रही है या नहीं, यह देखना जरूरी है. अगर कहीं पौधे सूखने लगें या वृद्धि रुक जाए तो उसका कारण समझकर समाधान करना चाहिए. कई बार मिट्टी में रोगजनक या अधिक नमी जैसी समस्याओं के कारण भी पौधों की बढ़वार रुक जाती है.

फसल को समय पर सिंचाई और सही देखभाल मिलने पर उसका उत्पादन दोगुना हो सकता है. खासकर फूल और फलियों की अवस्था में यदि पानी की कमी हो जाए तो पैदावार पर सीधा असर पड़ता है. इसलिए इस समय हल्की सिंचाई अवश्य करनी चाहिए. वहीं कटाई से लगभग 15 दिन पहले सिंचाई रोक देना चाहिए, ताकि दाने अच्छे से पक सकें और गुणवत्ता भी बढ़े.

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