पर्यावरण को प्रदूषण से बचाने के लिए कई कदम उठाए जा रहे हैं, क्योंकि पर्यावरण को बचाने और इसे सुरक्षित रखने की आवश्यकता लगातार बढ़ती जा रही है. प्रदूषण अलग-अलग तरीकों से मानव स्वास्थ्य के साथ-साथ पृथ्वी के संतुलन को बिगाड़ने का काम कर रहा है जो आने वाले समय में हमारे लिए खतरा पैदा कर सकता है. इन जोखिमों को पहचानते हुए, सरकारें, संगठन और व्यक्ति प्रदूषण को कम करने और एक स्थायी भविष्य सुनिश्चित करने के उपाय लागू कर रहे हैं. पर्यावरण को बचाए रखने में एक महत्वपूर्ण कदम स्वच्छ ऊर्जा को अपनाना है. नवीकरणीय ऊर्जा जिसे आम बोलचाल की भाषा में हम रिन्यूएबल एनर्जी कहते हैं. यह जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता कम करती है और हानिकारक उत्सर्जन यानी कार्बन डाइऑक्साइड को कम करने में मदद करती है.
दुनिया भर में सरकारें नवीकरणीय ऊर्जा (Renewable energy) के बुनियादी ढांचे में निवेश कर रही हैं, इसके उपयोग को प्रोत्साहित कर रही हैं और कार्बन उत्सर्जन पर सख्त नियम लागू कर रही हैं. ऐसे में भारत द्वारा भी कई कदम उठाए जा रहे हैं. पहले इलेक्ट्रिक वाहन और अब इथेनॉल का इस्तेमाल वाहनों को चलाने के लिए किया जा रहा है. आपको बता दें कि यह पर्यावरण के लिए पूरी तरह से सुरक्षित है. ऐसे में आइए जानते हैं कि इथेनॉल कैसे बनता है और इसमें गन्ने का क्या योगदान है.
इथेनॉल एक प्रकार का ईंधन है, जिसका इस्तेमाल गाड़ियों को चलाने में किया जाता है. इथेनॉल का उपयोग प्रदूषण को कम करने के लिए किया जाता है. बढ़ते प्रदूषण को देखते हुए यह कदम उठाया गया है. यानी इसके उपयोग से वाहन भी चलाए जा सकते हैं और पर्यावरण को होने वाले नुकसान को भी कम किया जा सकता है. इथेनॉल, जिसे एथिल अल्कोहल या अनाज अल्कोहल के रूप में भी जाना जाता है. ईंधन के रूप में इसके उपयोग होने वाले जैव ईंधन को बनाने के लिए इथेनॉल को अक्सर गैसोलीन के साथ मिलाया जाता है. ये मिलावट उचित मात्रा जैसे E10 (10% इथेनॉल और 90% गैसोलीन) या E85 (85% इथेनॉल और 15% गैसोलीन तक), और फ्लेक्स फ्यूल तकनीक से लैस कुछ वाहनों में इस्तेमाल किया जा सकता है. इथेनॉल को रिन्यूएबल एनर्जी के रूप में देखा जाता है क्योंकि इसे मकई, गन्ना या सेल्युलोसिक बायोमास जैसी कृषि फसलों से तैयार किया जा सकता है.
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इथेनॉल एक प्रकार का अल्कोहल है जिसे पेट्रोल के साथ मिलाकर वाहनों में ईंधन के रूप में उपयोग किया जा सकता है. इथेनॉल मुख्य रूप से गन्ने की फसल से तैयार किया जाता है लेकिन इसे कई अन्य चीनी फसलों से भी तैयार किया जा सकता है. इससे कृषि और पर्यावरण दोनों को लाभ होता है. चीनी के उत्पादन से बचा हुआ उप-उत्पाद इथेनॉल पेट्रोल का एक अच्छा विकल्प है. इसका उपयोग ईंधन के विकल्प के रूप में किया जाता है और यह लागत के हिसाब से सस्ता भी है. इसे घरेलू स्तर पर फसलों से उत्पादित किया जा सकता है (और कच्चे तेल की तरह आयात करने की आवश्यकता नहीं है) और इथेनॉल का एक निश्चित प्रतिशत पेट्रोल के साथ मिलाया जा सकता है. एक बार इथेनॉल का उत्पादन हो जाने के बाद, इसे गैसोलीन यानी पेट्रोल-डीजल के साथ मिलकर जैव ईंधन बनाया जा सकता है जिसे E10 (10% इथेनॉल युक्त) या E85 (85% इथेनॉल युक्त) के रूप में जाना जाता है. फ्लेक्स फ्यूल तकनीक से लैस वाहन E85 पर चल सकते हैं.
फ्लेक्स-फ्यूल को पेट्रोल-डीजल के विकल्प के तौर पर देखा जा रहा है. यही कारण है कि इसे वैकल्पिक ईंधन भी कहा जाता है. इसे पेट्रोल और इथेनॉल के मिश्रण से तैयार किया जाता है. इसे अल्कोहल आधारित ईंधन भी कहा जाता है क्योंकि इसमें इथेनॉल का उपयोग किया जाता है, जो गन्ना, मक्का जैसी फसलों से तैयार किया जाता है. फ्लेक्स फ्यूल टेक्नोलॉजी, जिसे फ्लेक्सिबल फ्यूल टेक्नोलॉजी या एफएफवी (फ्लेक्सिबल फ्यूल व्हीकल) तकनीक के रूप में भी जाना जाता है. यह गैसोलीन और विभिन्न इथेनॉल के मिश्रण पर चलने के लिए एक ऑटोमोबाइल इंजन की क्षमता को दर्शाता है. फ्लेक्स फ्यूल वाहनों को विभिन्न इथेनॉल-गैसोलीन मिश्रणों के साथ चलने के लिए डिज़ाइन किया गया है.
गन्ना इथेनॉल उत्पादन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है क्योंकि यह इथेनॉल के उत्पादन के लिए उपयोग किए जाने वाले प्राथमिक कृषि उत्पादों में से एक है. गन्ना सुक्रोज, एक प्रकार की चीनी से समृद्ध है, जिसे इथेनॉल का उत्पादन करने के लिए आसानी से बदला सकता है. गन्ने में सुक्रोज की उच्च मात्रा होती है, जो इसे इथेनॉल उत्पादन के लिए एक आदर्श कच्चा माल बनाती है. मिलिंग और क्रशिंग प्रक्रिया के माध्यम से गन्ने से चीनी निकाली जाती है, और परिणामस्वरूप रस को इथेनॉल में बदलने के लिए फीडस्टॉक के रूप में उपयोग किया जाता है. गन्ने से इथेनॉल उत्पादन बेहद कीमती और बायो प्रॉडक्ट है. गन्ने से रस निकालने के बाद बचा हुआ रेशेदार कचरे का उपयोग इथेनॉल उत्पादन प्रक्रिया के लिए बिजली और भाप उत्पन्न करने के लिए बायोमास ईंधन के रूप में किया जा सकता है.
इथेनॉल के बढ़ते इस्तेमाल से किसानों को भी इसका लाभ मिलता है. पेट्रोलियम मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने बताया कि 15 शहरों के 84 पेट्रोल पंप पर 20 फीसदी इथेनॉल वाले पेट्रोल की खुदरा बिक्री शुरू हो गई है. पेट्रोल में इथेनॉल के 20 फीसदी मिश्रण का पूर्व निर्धारित लक्ष्य 2030 का रखा गया था. साथ ही इथेनॉल उत्पादन कृषि फसलों के लिए बाजार में जरूरी मांग पैदा करता है जिनका उपयोग फ़ीडस्टॉक के रूप में किया जा सकता है, जैसे मक्का, गन्ना और अन्य बायोमास. इस बढ़ी हुई मांग से इन फसलों को उगाने वाले किसानों के लिए ऊंची कीमतें और बाजार स्थिरता आ सकती है. जिससे किसानों को उनकी उपज के लिए एक अतिरिक्त बाजार प्रदान करता है और आय को बढ़ाता है.