
आज के समय में किसान अधिक पैदावार के लालच में जरूरत से 3-4 गुना ज्यादा केमिकल खाद का इस्तेमाल कर रहे हैं. बिना सोचे-समझे खेतों में खाद छिड़कने से न केवल खेती का खर्च बढ़ रहा है, बल्कि खेत की मिट्टी की सेहत भी खराब हो रही है. ज्यादा रसायनों की वजह से मिट्टी की प्राकृतिक उपजाऊ शक्ति खत्म हो रही है और जमीन पत्थर की तरह कठोर होती जा रही है.पारंपरिक तरीके से जब हाथों से खाद छिड़की जाती है, तो वह पौधों की जड़ों तक सही मात्रा में नहीं पहुंच पाती और बर्बाद हो जाती है. इस गंभीर समस्या का समाधान निकाला है तेलंगाना के वल्लापुरम गांव के प्रगतिशील किसान तुम्मला राणाप्रताप ने. अपने 21 सालों के खेती के अनुभव से एक बहुत ही सस्ता और काम का 'फर्टिलाइजर डिस्पेंसर' (खाद डालने वाला यंत्र) तैयार किया है. यह छोटा सा आविष्कार खाद की बर्बादी को रोकता है और मजदूरों की कमी के बावजूद खाद को सीधे पौधों की जड़ों तक पहुंचाता है. इससे न केवल समय की बचत होती है, बल्कि किसान के हजारों रुपये भी बचते हैं और मिट्टी की गुणवत्ता भी सुरक्षित रहती है.
किसान राणाप्रताप का यह नवाचार स्थानीय रूप से उपलब्ध लोहे की चादरों से बना है. यह देखने में एक बड़ी कीप जैसा है, जिसकी क्षमता 15 किलोग्राम खाद रखने की है. इसे 'जद्दिगम' लकड़ी का पारंपरिक कृषि उपकरण और तीन दांतों वाले कल्टीवेटर के साथ जोड़कर चलाया जाता है. इसकी बनावट बहुत सरल है. ऊपर का घेरा 40 सेमी और नीचे का 8 सेमी है. इसमें एक कंट्रोलर लगा है, जिसकी मदद से किसान खाद की मात्रा को अपनी जरूरत के हिसाब से घटा या बढ़ा सकते हैं. यह यंत्र मात्र 15 मिनट में 15 किलो खाद का छिड़काव कर देता है.
इस मशीन की सबसे बड़ी खूबी यह है कि यह 'इंटर-कल्टिवेशन' यानि निराई-गुड़ाई और खाद डालने का काम एक साथ करती है. आमतौर पर पीक सीजन में मजदूरों की भारी कमी होती है, जिससे जड़ों के पास खाद डालना मुश्किल हो जाता है. लेकिन इस यंत्र की मदद से खाद सीधे पौधों की जड़ों में पहुंचती है. इससे न केवल खाद की उपयोगिता बढ़ती है, बल्कि मजदूरों पर निर्भरता भी कम होती है. अब किसान को खाद डालने के लिए अलग से मेहनत नहीं करनी पड़ती, जिससे खेती का प्रबंधन आसान हो गया है.
आर्थिक नजरिए से यह यंत्र किसी वरदान से कम नहीं है. इस यंत्र को बनाने की लागत मात्र 4,500 रूपये है. राणाप्रताप का दावा है कि इसके उपयोग से प्रति एकड़ ₹6,000 से 7,000 रूपये की बचत होती है. खाद की बर्बादी रुकने और मजदूरी खर्च घटने से किसानों का मुनाफा बढ़ जाता है. यह यंत्र मिर्च के अलावा कपास और मक्का जैसी फसलों के लिए भी बेहद उपयोगी है. इसकी मजबूती और उपयोग में आसानी इसे छोटे और बड़े दोनों तरह के किसानों के लिए आकर्षक बनाती है.
राणाप्रताप के इस स्वदेशी उपकरण में अपार संभावनाएं हैं. हालांकि इसे स्थानीय स्तर पर सराहा जा रहा है, लेकिन इसके व्यापक प्रसार के लिए इसकी गुणवत्ता जांच, स्थायित्व और एर्गोनोमिक मूल्यांकन अनुकूल बनावट की वैज्ञानिक पुष्टि जरूरी है. अगर इसे उचित तकनीकी सहयोग मिले, तो यह देशभर के मिर्च और कपास उगाने वाले किसानों की किस्मत बदल सकता है. यह कहानी साबित करती है कि अगर किसान अपनी समस्याओं का समाधान खुद खोजने पर आए, तो वह आधुनिक तकनीक से भी बेहतर और किफायती रास्ता निकाल सकता है.
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