Traditional v/s New Method: खेती की ये पारंपरिक तकनीक आज भी है कारगर, जानिए पुराने और नए सिस्‍टम में क्‍या है बदलाव

Traditional v/s New Method: खेती की ये पारंपरिक तकनीक आज भी है कारगर, जानिए पुराने और नए सिस्‍टम में क्‍या है बदलाव

Traditional v/s New Method: आज जरूरत है कि हम पारंपरिक ज्ञान और आधुनिक तकनीकों का संतुलन बनाएं. जहां एक ओर नई मशीनें और तकनीकें हमें तेज़ उत्पादन देती हैं, वहीं पारंपरिक तरीके खेती को टिकाऊ और प्राकृतिक बनाए रखते हैं. अगर हम दोनों को मिलाकर चलें तो खेती न सिर्फ लाभदायक होगी, बल्कि पर्यावरण के लिए भी बेहतर साबित होगी.

New and Old Farming TechniquesNew and Old Farming Techniques
प्राची वत्स
  • Noida,
  • May 28, 2025,
  • Updated May 28, 2025, 12:31 PM IST

भारत एक कृषि प्रधान देश है, जहां पीढ़ियों से खेती की जा रही है. समय के साथ खेती के तरीके जरूर बदले हैं, लेकिन कुछ पारंपरिक तकनीकें आज भी उतनी ही कारगर हैं, जितनी पहले हुआ करती थीं. इस ब्लॉग में हम जानेंगे कि वो पारंपरिक खेती की तकनीकें कौन सी हैं जो आज भी किसानों की मदद कर रही हैं और साथ ही समझेंगे कि नए सिस्टम में क्या बदलाव आया है.

1. देशी बीजों का उपयोग

पहले के किसान स्थानीय या देशी बीजों का उपयोग करते थे जो मौसम के अनुसार अनुकूल होते थे. ये बीज कम पानी में भी अच्छी पैदावार देते थे और रोगों के प्रति अधिक प्रतिरोधक क्षमता रखते थे. आज के समय में हाइब्रिड बीजों का चलन बढ़ा है, लेकिन कई किसान अब फिर से देशी बीजों की ओर लौट रहे हैं क्योंकि ये अधिक टिकाऊ होते हैं.

2. जैविक खाद और गोबर खाद का प्रयोग

पारंपरिक खेती में रासायनिक खादों का नहीं, बल्कि जैविक खाद और गोबर खाद का उपयोग किया जाता था. इससे मिट्टी की उर्वरता बनी रहती थी और फसलों में पोषण तत्व भरपूर होते थे. आज के किसान भी जैविक खेती की ओर बढ़ रहे हैं क्योंकि रासायनिक खादों के अत्यधिक उपयोग से मिट्टी की गुणवत्ता खराब हो रही है.

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3. मिश्रित फसलें और फसल चक्र

पुराने समय में किसान एक साथ कई प्रकार की फसलें उगाते थे जैसे गेहूं के साथ चना या सरसों. इसे मिश्रित फसल प्रणाली कहा जाता है. इससे मिट्टी में एकतरफा पोषण की कमी नहीं होती थी और जोखिम भी कम होता था. आज के समय में मोनो क्रॉपिंग (एक ही फसल बार-बार उगाना) आम हो गया है, जिससे मिट्टी पर असर पड़ता है.

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4. सिंचाई के पारंपरिक तरीके

पहले किसान बारिश के पानी को जमा कर खेतों में उपयोग करते थे या कुंए व तालाबों से सिंचाई करते थे. ये तरीके पर्यावरण के अनुकूल होते थे और पानी की बर्बादी भी नहीं होती थी. आज ड्रिप और स्प्रिंकलर सिस्टम जैसे आधुनिक तरीके आए हैं जो पानी बचाते हैं, लेकिन इनकी लागत ज्यादा होती है.

5. बैल की मदद से जुताई

पुराने समय में खेतों की जुताई बैल से की जाती थी, जिससे जमीन को गहराई तक नहीं खोदा जाता था और उसमें मौजूद जैविक तत्व सुरक्षित रहते थे. आज ट्रैक्टर और अन्य भारी मशीनों का प्रयोग हो रहा है जिससे समय की बचत तो होती है लेकिन जमीन की नमी और जीवांश घटते हैं.

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