Mango Story: आम की बागवानी करने वालों के लिए खबर काफी महत्वपूर्ण है. आम की खेती भारत में अग्रणी व्यावसायिक खेती में से एक है. यह अपनी खुशबू और मीठे स्वाद के लिए काफी मशहूर है. इस क्रम में पिछले दिनों भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद से जुड़े केंद्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान (ICAR-CISH) रहमानखेड़ा (लखनऊ) द्वारा मलिहाबाद के गांव ढकवां में आम के मध्यम उम्र के बागों में संस्थान द्वारा सेंटर ओपेनिंग और हल्की काट छांट के बारे में 50 से अधिक किसानों को जानकारी दी गई. इस अवसर पर परियोजना के मुख्य अन्वेषक डॉ. मनीष मिश्र ने बताया कि जो बागवान पहले से ही अपने बागों की उचित काट-छांट करते हैं, उनके बाग जंगल का रूप नहीं लेते हैं और लंबे समय तक अच्छी फलत देते रहते हैं. वहीं, संस्थान के प्रधान वैज्ञानिक डॉ. सुशील कुमार शुक्ल ने किसानों के समक्ष सेंटर ओपेनिंग तकनीक प्रदर्शन किया और इसके बारे में विस्तार से चर्चा की.
उन्होंने बताया कि मलिहाबाद क्षेत्र में आम के बाग धीरे- धीरे जंगल का रूप ले रहे हैं. पुराने समय में आम के बागों में किसी तरह की काट-छांट अनावश्यक समझी जाती थी, लेकिन बीते वर्षों के शोध में यह पाया गया कि अगर हम आम के बागों में समय समय पर थोडी काट छांट करते रहें, तो आम के वृक्षों की न केवल उत्पादकता और फलों की गुणवत्ता अच्छी रहती है बल्कि हमारे वृक्ष जंगल का रूप भी नहीं लेंगे.
डॉ. सुशील कुमार शुक्ल के बताते हैं कि आम के मध्यम उम्र के (15 से 30 वर्ष) के बीच के बागों में सेंटर ओपेनिंग एवम हल्की कटाई-छंटाई कर के सफलता पूर्वक छत्र प्रबंधन किया जा सकता है. इस तरह की काट-छांट का उचित समय वर्षा ऋतु के बाद से दिसंबर महीने तक है. इस में हम वृक्ष की बीचोबीच स्थित ऐसी शाखा जो कि सीधी ऊपर की ओर बढ़ रही हो और वृक्ष की ऊंचाई के लिये जिम्मेदार हो, को उसके उत्पत्ति के स्थान से निकाल देते हैं. इसके बाद छत्र के बीच में स्थित एक या दो शाखायें या उनके वृक्ष के केंद्र में स्थित कुछ अंश का विरलन कर इस प्रकार से निकालते हैं कि वृक्ष के छ्त्र के बीच में पर्याप्त रोशनी आ सके.
सीआईएसएच के वरिष्ठ वैज्ञानिक के मुताबिक, बगल के पेड़ से छूने वाली शाखओं की हल्की काट-छांट इस प्रकार से करते हैं कि वे बगल में उग रहे पेड़ों के सम्पर्क में न आयें. इस काट छंट से से 15-20 प्रतिशत तक पेड़ की ऊंचाई में कमी आ जाती है जिससे दवा के छिड़काव, फलों की तुड़ाई आदि में मदद मिलती है. पेड़ के अंदर तक प्रकाश की उपलब्धता से नये कल्ले आते हैं और फलों की गुणवत्ता बढ़ जाती है. आम के भुनगा, थ्रिप्स आदि कीटों को पेड़ के अंदर उचित वातावरण न मिलने से उनका प्रकोप कम होता है. बता दें कि सीआईएसएच एक प्रमुख आईसीएआर संस्थान है जो पिछले पांच दशकों से उपोष्णकटिबंधीय फलों की फसलों के सुधार पर काम कर रहा है.
आम उत्पादन के मामले में, यूपी देश के अन्य सभी राज्यों में अव्वल है. यहां की जलवायु और मिट्टी आम की खेती के लिए काफी अनुकूल है. इस वजह से सबसे अधिक आम उत्पादन यूपी में होता है. एग्रीकल्चर स्टेट बोर्ड और केंद्र सरकार के आंकड़ों के अनुसार देश में कुल उत्पादित होने वाले आम में यूपी अकेले 20.85 प्रतिशत का उत्पादन करता है.
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