अगर आप किसान हैं और अभी भी पुराने और पारंपरिक तौर-तरीकों से खेती करते हैं तो आप बिना रासायनिक दवा और खाद के भी मिट्टी की उत्पादक क्षमता बढ़ा सकते हैं. वहीं इसके बिना अपने बिना खेत को खरपतवारों से भी मुक्त रख सकते है. ऐसे में किसानों के लिए सबसे सस्ती और अच्छी तकनीक है मल्चिंग. मल्चिंग तकनीक खरपतवार नियंत्रण और पौधों को लंबे समय तक सुरक्षित रखने में बेहद कारगर होती है. इसे पलवार या मल्च भी कहते हैं.
वहीं आप अपने खेतों में इन्ही खरपतवारों और घास फूस का इस्तेमाल करके भी मल्चिंग कर सकते हैं. जी हां, जिस खरपतवार को दूर करने के लिए इस तकनीक का इस्तेमाल किया जाता है. वही खरपतवार आपके पैसे को भी बचाएगा. घास-फूस और खरपतवार से मल्चिंग बनाने से फसल में सिंचाई की भी कम जरूरत होती है. आइए जानते हैं कैसे घास-फूस और खरपतवार से बनाएं मल्चिंग.
घास-फूस और खरपतवार दूसरे मल्चिंग के अपेक्षा बेहतर माना जाता है. इस मल्चिंग का इस्तेमाल सभी तरह के फसलों में आसानी से किया जा सकता है. इसके इस्तेमाल से फल और फसलों के पत्ते मुलायम और बेहतर होते हैं. घास-फूस और खरपतवार से बनाए गए मल्च से मिट्टी और फसलों को पोषक तत्व भी मिलते हैं. इसके अलावा घास-फूस और खरपतवार से मल्चिंग बनाने के लिए किसानों को प्रति हेक्टेयर 8 से 10 टन सूखी घास की जरूरत होती है.
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फसलों में मल्चिंग करने के लिए किसानों को फसल अवशेष जैसे, मक्का, गेहूं, धान, पेड़ के पत्ते, भूसा और पुआल आदि का उपयोग करना चाहिए. दरअसल कई राज्यों के किसान अपने धान का पुआल और गेहूं के भूसे को जला या फेंक देते हैं. जबकि इस अवशेष का वह मल्चिंग में सफलतापूर्वक इस्तेमाल कर सकते हैं. साथ ही इन सभी चीजों के बने मल्चिंग का प्रयोग करने से फसलों में सिंचाई की बहुत कम जरूरत होती है.
मल्च एक ऐसी प्रक्रिया है जिसका उपयोग मिट्टी में नमी बनाए रखने, खरपतवारों को दबाने, मिट्टी को ठंडा रखने और सर्दियों में पाले की समस्या से पौधों को सुरक्षित रखने के लिए मल्चिंग किया जाता है. कार्बनिक मल्च धीरे-धीरे अपघटित होने के कारण मिट्टी की संरचना, जल निकासी और पोषक तत्वों को धारण करने की क्षमता में सुधार करने में भी मदद करती है.