हरियाणा में पराली जलाने के मामलों में लगातार बढ़ोतरी हो रही है. ऐसे में पराली जलाने वाले किसानों ने अधिकारियों पर पराली प्रबंधन के लिए पर्याप्त मशीनें उपलब्ध न कराने का आरोप लगाया है. पराली जलाने पर रोक लगाने के सरकारी प्रयासों के बावजूद, किसानों का दावा है कि विकल्पों की कमी के कारण उनके पास कोई उपाय नहीं बचा है. किसानों ने पराली प्रबंधन मशीनों जैसे कि स्ट्रॉ बेलर, हैप्पी सीडर, पैडी स्ट्रॉ चॉपर, मल्चर, रोटरी प्लो, सुपर सीडर, जीरो-टिल ड्रिल, हे रेक और सेल्फ-प्रोपेल्ड क्रॉप रीपर आदि की कमी को जिम्मेदार ठहराया है जिसके कारण उन्हें अगले फसल की बुवाई के लिए अपने खेतों को खाली करने के लिए पराली जलाने के लिए मजबूर होना पड़ता है.
भारतीय किसान यूनियन के प्रदेश अध्यक्ष सेवा सिंह आर्य ने कहा कि किसानों के पास ऐसी मशीनें खरीदने के लिए पैसे की कमी है और सरकार ने पराली निपटान के लिए पर्याप्त मशीनें उपलब्ध नहीं कराई हैं. इस क्षेत्र में कई छोटे और सीमांत किसान हैं, जो महंगी मशीनें खरीदने में असमर्थ हैं. सरकार को इस महत्वपूर्ण मौसम में किसानों की सहायता के लिए गांव स्तर पर ये मशीनें उपलब्ध करानी चाहिए. उन्होंने आगे कहा कि बेलर और अन्य मशीनों की मौजूदा संख्या किसानों की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए कम है, जिससे अगली फसल की तैयारी में देरी हो रही है और किसानों के पास पराली जलाने के अलावा कोई विकल्प नहीं है.
इस मामले पर करनाल के स्थानीय किसान सुल्तान सिंह ने कहा कि धान की कटाई और अगली फसल की खेती के बीच हमारे पास बहुत कम समय होता है. धान की पराली का प्रबंधन एक लंबी प्रक्रिया है और उसके लिए हमारे पास पर्याप्त मशीनें नहीं हैं, जिससे हमारे पास पराली जलाने के अलावा कोई विकल्प नहीं है.
ये भी पढ़ें:- पराली मामले में दर्ज FIR से किसान नाराज, 28 अक्टूबर को पूरे हरियाणा में करेंगे विरोध प्रदर्शन
एक अन्य किसान राम कुमार ने भी पराली जलाने से पर्यावरण को होने वाले नुकसान के बारे में यही कहा. उन्होंने जोर देकर कहा कि उनके पास कोई विकल्प नहीं है. उन्होंने कहा कि पराली प्रबंधन के लिए जरूरी मशीनरी या तो उपलब्ध नहीं हैं या छोटे और सीमांत किसानों के लिए बहुत महंगे हैं. एक अन्य किसान राजिंदर ने बताया कि पहले हाथ से धान की कटाई के लिए पर्याप्त मजदूर थे, जिससे पराली चारे के लिए उपयोग हो जाती थी. वहीं अब मजदूरों की कमी के कारण, किसान फसल की कटाई के लिए कंबाइन पर निर्भर हैं. उन्होंने कहा कि जब बुवाई का मौसम इतना छोटा है, तो हम मशीनों के इंतजार में समय बर्बाद नहीं कर सकते.
एक अधिकारी ने दावा किया कि पराली निपटान के लिए लगभग 350 बेलर मशीनें और लगभग 8,000 अन्य मशीनों का उपयोग किया जा रहा है, लेकिन हर दिन लगभग 25,000 से 30,000 एकड़ धान की कटाई के साथ, पराली को प्रभावी ढंग से निपटाने के लिए लगभग 2,000 बेलर मशीनों की जरूरत है. अधिकारियों ने बताया किसान मिट्टी की उर्वरता बढ़ाने के लिए इन-सीटू प्रबंधन को भी अपना सकते हैं. इन-सीटू विधियों में फसल अवशेष प्रबंधन (सीआरएम) मशीनों का उपयोग करके पराली को मिट्टी में मिलाना शामिल है.
करनाल के आसपास के जिलों से भी किसानों के कई समूह पराली को संसाधित करने के लिए इस क्षेत्र में आते हैं. कई किसान स्ट्रॉ बेलर, हैप्पी सीडर, पैडी स्ट्रॉ चॉपर, मल्चर, रोटरी प्लो, सुपर सीडर, जीरो-टिल ड्रिल, हे रेक और सेल्फ-प्रोपेल्ड क्रॉप रीपर जैसी मशीनों का उपयोग करके पराली प्रबंधन से लाभ कमा रहे हैं.
कृषि उपनिदेशक डॉ. वजीर सिंह ने कहा कि चालू सीजन में करीब 1,600 किसानों को रियायती दरों पर नई मशीनें खरीदने के लिए परमिट दिए गए हैं. उन्होंने कहा कि हमने उद्योगों के लिए किसानों से पराली लेने के लिए बंदराला, अमुपुर, अगोंध, भंबरेहड़ी, जमालपुर, जुंडला, उपलानी, नीलोखेड़ी, इंद्री और अन्य स्थानों पर पराली संग्रह केंद्र बनाए हैं.