
जब किसान कपास की खेती करते हैं, तो उनके सामने सबसे बड़ी चुनौती 'खरपतवार' की होती है. बारिश के मौसम में खेत में चौड़ी और संकरी दोनों तरह की घास उग आती है, जो फसल को बर्बाद कर देती है. आमतौर पर इसकी सफाई के लिए मजदूरों से निराई-गुड़ाई करवानी पड़ती है, जो न केवल बहुत खर्चीला काम है, बल्कि इसमें समय भी बहुत लगता है. कई बार तो समय पर मजदूर भी नहीं मिलते.
इसी समस्या को देखते हुए राजस्थान के भीलवाड़ा जिले के आसिंद ब्लॉक के चोटियास गांव के रहने वाले किसान महावीर कुमावत ने बाजार से महंगी मशीन खरीदने के बजाय, खुद कुछ करने की ठानी. उन्होंने अपने आसपास मौजूद बेकार पड़े सामान और लोहे के पुर्जों का इस्तेमाल करके एक ऐसा 'पावर टिलर कम वीडर' बना डाला, जिसने खेती का तरीका ही बदल दिया है.
महावीर द्वारा डिजाइन की गई यह मशीन 'लोकल फॉर वोकल' और भारतीय 'जुगाड़' तकनीक का एक बेहतरीन उदाहरण है. यह मशीन 5 हॉर्स पावर के सिंगल सिलेंडर डीजल इंजन से चलती है. मशीन की बनावट की बात करें तो यह 6 फीट लंबी, 2.5 फीट चौड़ी और 4 फीट ऊंची है. इसका वजन लगभग 150 किलोग्राम है, जो इसे खेत में चलाने के लिए संतुलित बनाता है.
इसमें 4 पहिए लगे हैं - आगे के पहिए 16 इंच के और पीछे के 18 इंच के हैं. सबसे खास बात यह है कि इसमें आगे और दोनों गियर हैं और इसे मोड़ने के लिए एक मैनुअल रॉड स्टीयरिंग लगी है. खेत की जुताई और घास निकालने के लिए इसमें 5 दांतें लगे हैं, जो दो कतारों में सेट हैं. इसे चलाने वाला व्यक्ति पैर के लीवर से इसे आसानी से कंट्रोल कर सकता है.
बाजार में अगर आप इसी तरह की निराई-गुड़ाई वाली मशीन खरीदने जाएं, तो उसकी कीमत 80,000 रुपये से भी ज्यादा होती है. लेकिन महावीर कुमावत ने अपनी सूझबूझ से इस मशीन को मात्र 30,000 रुपये में तैयार कर लिया है. यह मशीन न केवल सस्ती है, बल्कि काम करने में भी बहुत किफायती है. यह एक लीटर डीजल में लगभग आधा एकड़ खेत की निराई कर देती है. अगर हम प्रति एकड़ खर्च का हिसाब लगाएं, तो पारंपरिक तरीके से मजदूरों द्वारा निराई करवाने में किसान के लगभग 5000 रुपये खर्च हो जाते हैं.
वहीं, इस मशीन से वही काम मात्र 400 रुपये में हो जाता है. इसका मतलब है कि किसान को सीधे-सीधे 4500 रुपये प्रति एकड़ की बचत होती है, जो किसी भी किसान के लिए बहुत बड़ी राहत है.
यह मशीन उन सभी फसलों के लिए वरदान है जो कतारों में बोई जाती हैं. खास तौर पर कपास, सोयाबीन और मक्का की खेती होती है, और यह मशीन इन फसलों के लिए एकदम सटीक है. इसके अलावा, इसका इस्तेमाल सब्जियों की खेती में भी किया जा सकता है. यह मशीन उन भारी मिट्टियों के लिए भी बहुत उपयोगी है, जहां बारिश के बाद बड़े ट्रैक्टरों के पहिए धंस जाते हैं और काम नहीं कर पाते.
चूंकि यह मशीन हल्की है, यह गीली मिट्टी में भी आसानी से काम करती है. भविष्य में इस मशीन को और बेहतर बनाने की गुंजाइश है जो बड़ी कंपनियों की मशीनों को टक्कर दे सकती है.
महावीर कुमावत का यह आविष्कार साबित करता है कि ग्रामीण भारत में प्रतिभा की कोई कमी नहीं है. हालांकि, इस मशीन को बड़े स्तर पर ले जाने के लिए अभी थोड़े सहयोग की जरूरत है. अगर कृषि वैज्ञानिक इस मशीन की कार्यक्षमता और लागत का सही तरीके से सत्यापन करें, इससे महावीर जी को न केवल पहचान मिलेगी, बल्कि किसी अच्छी कंपनी के जरिए इस मशीन का बड़े स्तर पर निर्माण भी हो सकेगा. ताकि भीलवाड़ा जिले से निकलकर यह सस्ती तकनीक पूरे देश के किसानों तक पहुंच सके और उनकी खेती की लागत कम कर सके.