राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (NCP) प्रमुख शरद पवार द्वारा अनुवांशिक रूप से परिवर्तित (जेनेटिकली मॉडिफाइड या जीएम) फसलों की वकालत करने पर उन्हें अखिल भारतीय खाद्य तेल व्यापारी महासंघ ने आड़े हाथों लिया है. संगठन के राष्ट्रीय अध्यक्ष शंकर ठक्कर ने कहा कि अनुवांशिक रूप से संशोधित फसलों को अनुमति देने से देश की जमीन, पर्यावरण एवं उपभोक्ताओं पर पढ़ने वाले दुष्प्रभाव का परीक्षण किए जाने के बाद ही इस पर विचार होना चाहिए. अन्यथा देश की फसलें और आने वाली नस्लें दोनों बर्बाद हो सकती हैं. उन्होंने कहा कि जीएम फसलों से किसानों को नहीं बल्कि बीज बनाने वाली कंपनियों को फायदा पहुंचेगा.
पवार ने अमरावती में आयोजित एक प्रेस कांफ्रेंस में कहा था कि जीएम फसलों के परीक्षण पर प्रतिबंध है, जबकि देश में ऐसी कृषि उपज के आयात पर कोई पाबंदी नहीं है. भारत में ऐसे परीक्षणों पर रोक है, इसलिए देश जीएम फसलों के संबंध में आगे नहीं बढ़ पा रहा है. इसे लेकर सुप्रीम कोर्ट द्वारा पहले कुछ फैसले लिए गए थे और उनके दुष्प्रभाव आज देखे जा सकते हैं. इन्हें बदलने की जरूरत है. पवार के इस बयान पर अखिल भारतीय खाद्य तेल व्यापारी महासंघ ने उनका कड़ा विरोध जताया है.
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शंकर ठक्कर ने कहा अगर खाद्य तेलों में भारत को आत्मनिर्भर बनाना है तो जीएम फसलों की बजाय किसानों को उनकी उपज का सही दाम देकर ऐसा किया जा सकता है. उन्हें एमएसपी या उससे ऊपर भाव मिलेगा तो अपने आप तिलहन फसलों का विस्तार होगा. जैसा कि पिछले तीन साल से सरसों के मामले में देखने को मिल रहा था. देश में सरसों की बुवाई का क्षेत्र आमतौर पर 70 लाख हेक्टेयर होता था जो तीन साल के अंदर बढ़कर 98 लाख हेक्टेयर से अधिक हो गया. इसके पीछे एक ही वजह थी कि किसानों को सरसों का दाम अच्छा मिल रहा था.
जीएम फसलों की वकालत सिर्फ ज्यादा उपज के लिए हो रही है. जबकि सरसों की 27 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक की उपज देने वाली किस्में पहले से ही मौजूद हैं. जबकि अभी औसत उपज 16 क्विंटल तक की है. ऐसे में देसी तरीके से जो नई किस्में विकसित की गई हैं उन्हें बढ़ावा देने की जरूरत है. भारत मजबूरी में अनुवांशिक रूप से परिवर्तित सूरजमुखी तेल आयात करता है. बाकी तो ज्यादातर हिस्सा पाम ऑयल का है, जो जीएम क्रॉप नहीं है. हम जान-बूझकर ऐसे रास्ते पर न जाएं जिसके बारे में कुछ स्पष्ट नहीं है कि इसका नुकसान क्या है.
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